Jabalpur News: हाई कोर्ट ने डीएमई, हेल्थ कमिश्नर को नोटिस जारी कर पूछा मेडिकल डिग्री कम्पलीट होने के बाद नौकरी में देरी क्यों?
Jabalpur News: जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर प्रिंसिपल पीठ ने राज्य सरकार, हेल्थ कमिश्नर और डॉयरेक्टर मेडीकल एजुकेशन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। कोर्ट ने पूछा कि एमबीबीएस की डिग्री पूरी करने के बाद नौकरी देने में देरी क्यों की जा रही है? हाई कोर्ट जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डबल बैंच ने सरकार से इस बात का भी जवाब मांगा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने के सर्विस बॉन्ड का उल्लंघन होने पर 25 लाख रुपए पेनाल्टी लगाई जाना कितना जायज है?
डॉक्टर की अर्जी पर कोर्ट का सवाल
दरअसल, यह मामला मेडिकल की एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने और सरकारी डॉक्टर की नौकरी से जुड़ा है। हाई कोर्ट में इसके लिए याचिका भोपाल निवासी डॉक्टर अंश पंड्या की ओर से लगाई गई। इसमें कहा गया कि डॉक्टर को एमबीबीएस के बाद पोस्टिंग देने में डेढ़ साल तक की देरी की जा रही है। इसके अलावा रूरल सर्विस बॉन्ड का पालन न करने पर डॉक्टर पर 25 लाख रुपए की पेनाल्टी लगाई जा रही है, जो कि कैरियर की शुरूआत करने वाले डॉक्टरों के लिए मुश्किल भरी है।
सरकार से मांगा जवाब
मप्र हाई कोर्ट जबलपुर प्रिंसिपल पीठ के जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डबल बैंच ने डॉक्टर अंश पंड्या की याचिका पर सुनवाई की। साथ ही हेल्थ कमिश्नर और डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। कोर्ट ने कहा कि सरकार द्वारा डॉक्टरों की गांवों में पोस्टिंग देने में डेढ़ साल तक की इतनी देरी क्यों हो रही है और किसी कारण से मेडिकल छात्रों द्वारा ग्रामीण पोस्टिंग छोड़ने पर 25 लाख का भारी भरकम पेनाल्टी क्यों ली जा रही है?
मेडिकल के छात्रों के भविष्य से खिलवाड़
याचिकाकर्ता अंश पंड्या के अधिवक्ता आदित्य संघी ने हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान बताया कि ये सरकार की हठधर्मिता है। इसके लिए डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन और हेल्थ कमिश्नर जिम्मेदार हैं। मध्य प्रदेश सरकार में ये दोनों ही जवाबदेह अधिकारी मेडिकल छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। याचिका की सुनवाई में कहा गया कि डीएमई और हैल्थ कमिश्नर मेडिकल छात्रों के ग्रामीण क्षेत्रों में पोस्टिंग के नाम पर बॉन्ड भरवाकर यातनापूर्ण व्यवहार करते हैं।
ऐेसे में यदि कोई मेडिकल छात्रा, डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्र में काम नहीं करना चाहता तो उससे 25 लाख रूपए पेनाल्टी के तौर पर लिए जाते हैं। यह कैरियर शुरू होने से पहले ही खत्म करने जैसा है। जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डबल बैंच ने याचिका को गंभीर मानते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब तलब किया है।
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