Harisingh Gour University: डॉ. हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी 13 सालों से बिना मान्यता दे रही कानून की डिग्री, हाईकोर्ट में हुआ खुलासा

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) से बिना वैध मान्यता लिए डॉ. हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी सागर में 13 सालों से न केवल कानून की पढ़ाई करवा रही थी, बल्कि हर साल परीक्षा पास करने वाले छात्रों को डिग्री भी प्रदान की जा रही है।
harisingh gour university  डॉ  हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी 13 सालों से बिना मान्यता दे रही कानून की डिग्री  हाईकोर्ट में हुआ खुलासा

Harisingh Gour University: जबलपुर। क्या आप सोच सकते हैं कि कानून की पढ़ाई बिना किसी वैध मान्यता के साथ कोई सरकारी यूनिवर्सिटी में भी संचालित हो सकता है। यही नहीं, बिना वैध मान्यता के यूनिवर्सिटी डिग्री भी बांट सकती है। जी हां, यह चौंकाने वाला खुलासा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर प्रिंसिपल पीठ में हाईकोर्ट जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डबल बैंच में सुनवाई के दौरान हुआ है।

इस खुलासे पर डबल बैंच ने हैरानी जताई कि आखिर कैसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) से बिना वैध मान्यता लिए डॉ. हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी सागर में 13 सालों से न केवल कानून की पढ़ाई करवा रही थी, बल्कि हर साल परीक्षा पास करने वाले छात्रों को डिग्री भी प्रदान की जा रही है। हाईकोर्ट जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डबल बैंच ने इस संदर्भ में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार, सेंट्रल यूनिवर्सिटी सागर, स्टेट बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआइ) को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। हाईकोर्ट में अब इस मामले में 18 नवंबर को सुनवाई की जायेगी।

खाचिका दायर कर किया खुलासा

मध्य प्रदेश की सबसे प्रतिष्ठित सरकारी यूनिवर्सिटीज में शामिल सागर स्थित डॉ. हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी (Harisingh Gour University) में 3 और 5 वर्षीय विधि पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कानून स्नातक छात्रों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार याचिका में कहा गया है, विश्वविद्यालय में तीन और पांच साल के कानून पाठ्यक्रमों के लिए विवि की संबद्धता 2005- 06 से 2010-11 तक वैध थी।

स्टेट बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन न होने से कॅरियर बाधित

याचिकाकर्ता आस्था चौबे ने हाईकोर्ट में बताया कि उसे आगामी अखिल भारतीय बार परीक्षा (एआइबीई) में शामिल होना है। परन्तु स्टेट बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन न होने के कारण वह परीक्षा में शामिल नहीं हो पायेगी, क्योंकि कुछ राज्यों में एक वकील के रूप में व्यावहारिक अनुभव की आवश्यकता होती है। इसी तरह एक अन्य याचिकाकर्ता आस्था साहू ने हाईकोर्ट को अवगत कराया कि उसका एक लॉ फर्म में नौकरी के लिए सलेक्शन हुआ है और उन्हें ऑफर लेटर की शर्तों के तहत स्टेट बार काउंसिल का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जमा कराना है।

Jabalpur High Court News, MP High Court Decision

स्टेट बार काउंसिल रजिस्ट्रेशन में फंसा पेंच

हाईकोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई में बताया गया कि स्टेट बार काउंसिल ने डॉ. हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी (Harisingh Gour University) सागर को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआइ) से वैध मान्यता नहीं होने के कारण उनका नामांकन करने से इनकार कर दिया है। ऐसे में उनका कॅरियर एवं जॉब प्रभावित हो रहा है, लिहाजा कानून स्नातकों ने बार काउंसिल में वकील के रूप में नामांकन के लिए दिशा-निर्देश भी मांगे।

स्टेट बार काउंसिल का तर्क

हाईकोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान स्टेट बार काउंसिल की ओर से जानकारी दी गई कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी सागर (Harisingh Gour University) की संबद्धता साल 2005- 06 से 2010-11 तक वैध थी, उसके बाद मान्यता रिन्यू नहीं हुई है, जिससे साल 2011 से 2024 तक डिग्री लेने वाले विधि छात्रों को बगैर वैध मान्यता के संचालित कोर्स के दौरान डिग्री दी गई है। हाईकोर्ट जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डबल बैंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि कानूनी शिक्षा के नियमों के अनुसार, कानून पाठ्यक्रम प्रदान करने वाले कॉलेज या विश्वविद्यालय को बीसीआइ से मान्यता प्राप्त होनी चाहिए, फिर यह समझना होगा कि वे कैसे पाठ्यक्रम संचालित कर रहे।

लिहाजा कोर्ट ने इस पूरे मामले पर केन्द्र सरकार, सेंट्रल यूनिवर्सिटी सागर, स्टेट बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआइ) को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। हालाकि इस दौरान सरकार ने हाईकोर्ट में जानकारी दी है कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी सागर के कानून विभाग द्वारा मान्यता नवीनीकृत की औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं और बीसीआइ ने निरीक्षण भी कर लिया है।

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