Susner Hospital MP: 5 डॉक्टरों के भरोसे पूरा अस्पताल, पोस्टमार्टम तक के लिए करना पड़ रहा है इंतजार
Susner Hospital MP: आगर मालवा। आगर मालवा जिले की सुसनेर विधानसभा क्षेत्र में आसपास के 122 गांवों एवं इंदौर-कोटा मार्ग पर आए दिन होने वाली दुर्घटनाओं में घायल होने वाले मरीजों की स्वास्थ्य सेवा करने वाले सुसनेर अस्पताल को लंबे एवं सतत प्रयासों से तत्कालीन विधायक राणा विक्रमसिंह ने सिविल अस्पताल का दर्जा दिलवाकर यहां 9 करोड़ की लागत से इसका नवीन भवन निर्माण की स्वीकृति करवा कर इस अस्पताल में उपचार के उपकरणों एवं संशाधनों की व्यवस्था करवाई थी। इससे पूर्व क्षेत्र के अनेक जनप्रतिनिधियों ने इस अस्पताल को सिविल अस्पताल का दर्जा दिलवाने के प्रयास किया था परन्तु उनको सफलता नही मिली थी। अब पूर्व विधायक राणा के प्रयासों से सिविल अस्पताल का दर्जा मिलने एवं सारी सुविधाएं दिलवाने के बाद उनके चुनाव हारते ही इस अस्पताल के बुरे हाल हो गए हैं।
अस्पताल में हैं सारी सुविधाएं लेकिन डॉक्टर नहीं
अब चाहे प्रशासन इस अस्पताल की व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर बेहतर सुविधाओं का ढिंढोरा भले ही पीट रहा हो, लेकिन धरातल पर हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। पूर्व विधायक राणा के प्रयासों से यहां करोड़ों रूपये खर्च कर कई संसाधन व सुविधाएं तो उपलब्ध कराई गई हैं लेकिन इन संसाधनों का उपयोग कर मरीजो को लाभ देने के लिए डॉक्टर न के बराबर हैं। ऐसे ही हालात जिले की सुसनेर विकास खंड में भी बने हुए हैं। शासन ने सुसनेर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को सिविल का दर्जा भले ही दे दिया हो, लेकिन सिविल अस्पताल सुसनेर आज भी डॉक्टरो की कमी से जूझ रहा है। डॉक्टर के आभाव में सारी सुविधाएं व संसाधन बेकार हैं। हालात ये हैं कि वर्तमान में सुसनेर सिविल अस्पताल में एक भी विशेषज्ञ डॉक्टर नही है।
डेढ़ लाख की आबादी सिर्फ 5 डॉक्टरों के भरोसे
विकास खंड के सवा सौ गांवों की डेढ़ लाख आबादी सिर्फ 5 डॉक्टरों के भरोसे है। यहां डॉक्टरों के करीब एक दर्जन पद स्वीकृत हैं परन्तु वर्तमान में सुसनेर सिविल अस्पताल (Susner Hospital MP) में मात्र 5 डॉक्टर तैनात हैं इनमें भी एक बीएमओ है जो कार्यालयीन कार्यो में व्यस्त है। शेष 4 डॉक्टर में से 2 महिला एवं 2 पुरूष डॉक्टर हैं जिनके ऊपर ही पूरे अस्पताल का भार है। सिविल अस्पताल में प्रतिदिन जिला अस्पताल के लगभग 350 से 400 मरीज ओपीडी में अपना उपचार कराने आते हैं। इनमें से 25 से 30 मरीज वार्ड में भर्ती रहते हैं। अस्पताल में एक्सीडेंट, मेडिकल, पोस्टमार्टम, इमरजेंसी, पुलिस कारवाई, एमएलसी आदि सारे काम इन 5 डॉक्टरों के जिम्मे हैं।
नाइट ड्यूटी और ओवर टाइम के बाद भी मरीजों का इलाज नहीं हो पाता
डॉक्टरो की कमी के चलते महिला डॉक्टरों को भी नाईट ड्यूटी करना पड़ रही है। हालात यह है कि डॉक्टर को ओवर टाइम भी काम करना पड़ रहा है फिर भी व्यवस्था बनाने में परेशानी आ रही है। अगर ऐसे में एक डॉक्टर भी अवकाश पर चला जाता है तो अस्पताल की व्यवस्थाएं पूरी तरह गड़बड़ा जाती हैं। लेकिन क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों व जिम्मेदार अधिकारियों का स्वास्थ सम्बन्धी जन समस्या की ओर कोई ध्यान नही है। मरीजों की सुने तो अस्पताल में समय पर डॉक्टर नही मिलते हैं, एक समय मे एक डॉक्टर के होने से उपचार के लिए लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है। इस दौरान अगर इमरजेंसी केस आ जाए तो घंटों इंतजार भी करना पड़ता है।
पोस्टमार्टम के लिए डेड बॉडी लेकर इंतजार करते रहे परिजन
हाल ही में कुछ समय पूर्व तहसील के डोंगरगढ़ गांव मे जनपद सदस्य देवीलाल पिता बालचंद गुर्जर के द्वारा घर में फांसी लगाकर आत्महत्या करने के मामले में पोस्टमार्टम के लिए परिजनों को घंटों इंतजार करना पड़ा था। डॉक्टरों की कमी और मरीजों की भीड़ के चलते पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल (Susner Hospital MP) में कोई डॉक्टर उपलब्ध नही हुआ था। ऐसे में जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप के बाद शव का पोस्टमार्टम हो सका था, जिसके बाद परिजनों को शव उपलब्ध हो पाया था। डॉक्टरों की कमी से पोस्टमार्टम में देरी के कारण अस्पताल में पदस्थ 2 डॉक्टरों को नोटिस की मार भी झेलनी पड़ी थी।
पत्रकारों के आंदोलन के बाद हुई थी व्यवस्था, फिर जस की तस
सुसनेर अस्पताल में डॉक्टर की समस्या शुरू से रही है। डॉक्टरों की समस्याओं को लेकर कई बार आंदोलन भी हुए है। मध्य प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ द्वारा डॉक्टरों की मांग को लेकर कई बार ज्ञापन, धरना प्रदर्शन, पुतला दहन सहित कई आंदोलन किए गए। इसके बाद अस्पताल में वैकल्पिक तौर पर डॉक्टरों का अटैचमेंट भी किया गया लेकिन कुछ दिनों बाद ही स्थित जस की तस बन जाती है। यह स्थिति आज भी ऐसी ही है। आज भी अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ा रहा है। संसाधन होते हुए भी मरीजों को अन्य शहरों में इलाज के लिए जाना पड़ रहा है जिससे मरीजों को पैसे और समय दोनों का नुकसान झेलना पड़ता है।
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