DRDE Gwalior: स्वदेशी तकनीक से बना केमिकल युद्धक डिटेक्टर सेना में शामिल, बढ़ी भारतीय सेना की ताकत

पहली बार भारत में डी.आर.डी.ई., ग्वालियर ने ऑटोमैटिक केमिकल एजेंट डिटेक्टर और अलार्म (ACADA) का विकास किया है, जिसमें 80% से अधिक स्वदेशी घटक इस्तेमाल हुए हैं।
drde gwalior  स्वदेशी तकनीक से बना केमिकल युद्धक डिटेक्टर सेना में शामिल  बढ़ी भारतीय सेना की ताकत

DRDE Gwalior: ग्वालियर। डीआरडीई, ग्वालियर द्वारा विकसित स्वचालित रासायनिक युद्धक अभिकारक डिटेक्टर (ACADA) सेना में शामिल हो रहा है। इसकी मदद से अब केमिकल अटैक को ऑन साइट पहचानने में मदद मिलेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि यह स्वदेशी भी है। उल्लेखनीय है कि आतंकवादियों द्वारा केमिकल अटैक का इस्तेमाल काफी किया जाता है।

कई देशों पर हो चुके हैं केमिकल अटैक

नाभिकीय, जैविक और रासायनिक युद्ध (N.B.C.) का खतरा महज एक कल्पना नहीं अपितु वास्तविकता है। पूर्व में भी विश्व के अनेक देशों में रासायनिक युद्धक अभिकारकों के इस्तेमाल की घटनायें देखने में आयी हैं। रासायनिक युद्धक अभिकारक (CWA) मानव निर्मित अत्यधिक विषैले रसायन होते हैं जो प्राणियों के संपर्क में आने पर तुरंत प्रभाव डालते हैं और कभी-कभी इनकी छोटी सी मात्रा भी प्राणियों के लिए घातक हो सकती है। दुश्मन देश और आतंकवादियों द्वारा इनके इस्तेमाल की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।

डिटेक्टर रासायनिक हमले को पहचानने में सक्षम

रासायनिक हमले की स्थिति में जानमाल की हानि कम करने के लिए इसकी तत्काल पहचान आवश्यक है। रासायनिक हमले की पहचान करने में रासायनिक अभिकारक डिटेक्टर्स एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अब तक भारतीय सशस्त्र बलों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को इन डिटेक्टर्स को दुनिया भर में उपलब्ध तीन निर्माताओं से आयात करना पड़ता था। इन उपकरणों के आयात में देश को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा व्यय करनी पड़ती थी। पिछले दो दशकों से कोई निर्माता भारत में इन उपकरणों के मरम्मत और रख-रखाव के लिए कोई तकनीकी इकाई स्थापित नहीं कर सका है। इसलिए इन उपकरणों को उनकी पूरी शेल्फ-लाइफ तक उपयोग करना एक कठिन कार्य रहा है।

DRDE Gwalior की बड़ी कामयाबी

आयन मोबिलिटी स्पैक्ट्रोमीटरी (IMS) आधारित इन रासायनिक अभिकारक डिटेक्टर्स को खरीदने में रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा निवेश करना पड़ता था। इसलिए लंबे समय से भारत में स्वदेशी डिटैक्टर्स का आवश्यकता महसूस की जा रही थी। पहली बार भारत में डी.आर.डी.ई., ग्वालियर ने ऑटोमैटिक केमिकल एजेंट डिटेक्टर और अलार्म (ACADA) का विकास किया है, जिसमें 80% से अधिक स्वदेशी घटक इस्तेमाल हुए हैं। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित (आई. डी.डी.एम.)’ नीति की दिशा में डी.आर.डी.ई., ग्वालियर का बड़ा योगदान है।

ऐसे लगाया जाता है केमिकल अटैक का पता

यह डिटैक्टर रासायनिक युद्धक अभिकारकों, विषैली गैसों और चयनित विषैले औद्योगिक रसायनों की ऑन-साइट पहचान करने में सक्षम है। ACADA प्रणाली में पर्यावरण से हवा का सैंपल लेकर रासायनिक युद्धक अभिकारकों का पता लगाया जाता है। यह उपकरण आयन मोबिलिटी स्पेक्ट्रोमेट्री के सिद्धांत पर काम करता है। यह अत्याधुनिक रासायनिक पहचान प्रौद्योगिकी (DRDE Gwalior) केवल कुछ विकसित देशों के पास ही उपलब्ध है। अकाडा (ACADA) एक स्थिर बिंदु पर उपयोग किया जाने वाला रासायनिक युद्धक अभिकारक डिटेक्टर है, जिसमें बैटरी होती है और इसे वाहन पर भी माउंट किया जा सकता है। डिटेक्टर में केंद्रीय निगरानी स्टेशन पर डेटा प्राप्त करने के लिए रिमोट अलार्म यूनिट होती है। इसमें नेटवर्किंग क्षमता भी है। यह उपकरण युद्ध और शांति दोनों समय उपयोगी है तथा सी.बी.आर.एन. रक्षा के क्षेत्र में अकाडा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।

इन जगहों पर किया गया परीक्षण

डी.आर.डी.ई., ग्वालियर ने वर्षों के अनुसंधान के बाद मेसर्स एल.एण्ड टी. के साथ उत्पादन साझेदारी करते हुए इस स्वचालित रासायनिक युद्धक अभिकारक डिटेक्टर (अकाडा) का विकास किया है। अन्य निजी उद्यमों को भी इसकी प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने पर भी विचार चल रहा है। डी.आर.डी.ई., ग्वालियर द्वारा विकसित ACADA का लाइव केमिकल एजेंट्स पर डी.आर.डी.ई., ग्वालियर और टी.एन.ओ. नीदरलैंड्स में परीक्षण किया गया है।

डिक्टेटर बनाने वाला भारत दुनिया का चौथा देश

डी.आर.डी.ई. (DRDE Gwalior) के निदेशक डॉ. मनमोहन परीडा ने बताया कि भारत दुनिया में ऐसा चौथा देश है, जिसके पास इस तरह की प्रौद्योगिकी है। स्वदेशी रूप से विकसित किए गए ACADA से जहां देश की सेनाओं और सुरक्षा बलों के अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति होगी, वहीं इसका लंबे समय तक इस्तेमाल, बेहतर रख-रखाव, स्पेयर पार्ट्स/एक्सेसरीज़ की आपूर्ति, आदि सुनिश्चित हो सकेगी। स्वदेशी रूप से विकसित किया गया यह उत्पाद आई.डी.डी.एम., ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्म निर्भर भारत’ मिशन की दिशा में एक लंबी छलांग है।

80 फीसदी सामग्री स्वदेशी

भारतीय सेना और अन्य अर्धसैनिक बलों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए एवं बड़े पैमाने पर ACADA के उत्पादन को सुनिश्चित करने के लिए इसकी प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण 14 दिसंबर 2021 को M/s L&T, बैंगलोर को किया गया था, जो आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान आयोजित हुआ था। यह हस्तांतरण माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह द्वारा किया गया था। उल्लेखनीय है कि ACADA में इस्तेमाल हुए लगभग 80% सामग्री स्वदेशी रूप से विकसित है।

DRDE ग्वालियर को 223 यूनिट का ऑर्डर

अकाडा के क्षेत्र मूल्यांकन समाप्त होने के बाद अब भारतीय सेना और वायु सेना ने अकाडा की 223 यूनिट की खरीद के लिए आर्डर दिया है। डी.आर.डी.ई. वर्षों के अनुसंधान और कठोर परीक्षण के उपरांत अस्तित्व में आए इस उत्पाद को विकसित करने वाली बृहद टीम के अभिन्न सदस्य एवं डी.आर.डी.ई. (DRDE Gwalior) के वैज्ञानिक डॉ. सुशील बाथम ने बताया कि ACADA के लिए कठोर क्षेत्र मूल्यांकन परीक्षण अगस्त 2022 से अप्रैल 2023 तक आयोजित किए गए थे। इनमें पर्यावरणीय तनाव स्क्रीनिंग परीक्षण, EMI/EMC परीक्षण, रख-रखाव मूल्यांकन परीक्षण, तकनीकी परीक्षण और लाइव एजेंट परीक्षण आदि थे।

अब भारतीय सेना और वायु सेना ने 80.43 करोड़ रुपये कीमत के 223 अकाडा की खरीद का अनुबंध 25 फरवरी 2025 को डी.आर.डी.ई. के उत्पादन साझेदार मेसर्स L&T बैंगलूरु के साथ किया है। उल्लेखनीय है कि विशेष अर्धसैनिक बलों एवं सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ACADA का उपयोग VVIP सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसके अलावा सुरक्षा एजेंसियों को विभिन्न प्लेटफार्मों जैसे कि नौसैनिक पोतों, बख्तरबंद वाहनों, विमान आदि के लिए डिटेक्टर्स की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। भविष्य में इस उत्पाद के अन्य देशों में भी निर्यात की संभावना है।

(ग्वालियर से सुयश शर्मा की रिपोर्ट)

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