MP Kisan News: संतरे ने बदली एमपी के किसानों की किस्मत, पैसा भी जेब में आने लगा

कई जगहों पर संतरे के दाम पिछले साल की तुलना में बेहतर रहे, जिससे किसानों को आर्थिक रूप से लाभ हुआ।इस वर्ष मध्यप्रदेश के किसानों को संतरे की फसल के अच्छे दाम मिले हैं। इसकी मुख्य वजह बाजार में बढ़ी हुई मांग, संतरे की बेहतर गुणवत्ता और उचित मौसम परिस्थितियां रहीं।
mp kisan news  संतरे ने बदली एमपी के किसानों की किस्मत  पैसा भी जेब में आने लगा

MP Kisan News: आगर-मालवा। इस वर्ष मध्यप्रदेश के संतरा किसानों के लिए खुशखबरी रही इन हरे भरे मीठे संतरो ने इस बार किसानों की किस्मत खोल दी है। किसानों का न केवल अच्छे दाम मिले, बल्कि मौसम भी अनुकूल रहा, जिससे फसल अच्छी हुई। मौसम की सही परिस्थितियों और किसानों की मेहनत के कारण संतरे की पैदावार बढ़िया रही। व्यापारियों और मंडियों में संतरे की अच्छी मांग बनी रही, जिससे किसानों को उचित मूल्य मिला। कई जगहों पर संतरे के दाम पिछले साल की तुलना में बेहतर रहे, जिससे किसानों को आर्थिक रूप से लाभ हुआ।इस वर्ष मध्यप्रदेश के किसानों को संतरे की फसल के अच्छे दाम मिले हैं। इसकी मुख्य वजह बाजार में बढ़ी हुई मांग, संतरे की बेहतर गुणवत्ता और उचित मौसम परिस्थितियाँ रहीं।

संतरा महंगा बिका तो किसानों को हुई आमदनी

मध्यप्रदेश के कई जिलों में संतरा उत्पादन प्रमुख रूप से होता है, और इस साल इन इलाकों के किसानों को संतरे के अच्छे दाम मिले हैं। व्यापारियों और थोक खरीदारों द्वारा बढ़ती मांग के कारण मंडियों में संतरे की कीमतें ऊँची बनी रहीं। आगर मालवा के किसान कहते हैं कि इस बार डिमांग अच्छी होने की वजह से दाम अच्छे मिल रहे है। आगर मालवा के एक किसान (MP Kisan News) सिद्धनाथ बताते है कि इस साल संतरे की फसल का अच्छा दाम मिल रहा है 35 से ₹40 प्रति किलो तक बिक रहा है तो किसानों को इतना पैसा मिले तब ही सही रहता है क्योंकि संतरों की फसल में लागत बहुत है।

पिछले साल लागत भी नहीं निकल पाई थी

वह आगे बताते हैं कि इस साल की तुलना में पिछले साल संतरों का दाम बहुत कम (10 से 15 रुपए प्रति किलो तक) मिल रहा था जिस वजह से खर्च हुई हमारी लागत भी नही निकल पा रही थी। लेकिन इस साल संतरा अच्छा बिक रहा है, संतरे की लेवाली अच्छी चल रही है. व्यापारी खरीददार बहुत आ रहे हैं और दाम भी अच्छे हैं। आगे किसान सिद्धनाथ बताते हैं कि संतरे की फसल में खर्च बहुत होता है, बार-बार दवाई स्प्रे करना रहता है, इसके साथ भी कई अन्य खर्चे होते हैं जिनकी वजह से यह महंगी फसल है।

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मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में होता है सबसे ज्यादा संतरा

आपको बता दें कि दाम अच्छे होने की वजह से बाहर से खरीददार भी आते हैं। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में संतरे की फसल अधिक होती है। इस साल संतरे का आकार और मिठास अच्छी रही, जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिला। ज्यादा बारिश न होने और सही समय पर ठंड आने से संतरे की फसल अच्छी हुई।अच्छी कीमत मिलने से किसानों (MP Kisan News) की आय में वृद्धि हुई। संतरा किसान काफी खुश हैं। कुल मिलाकर, इस साल संतरा किसानों के लिए लाभदायक साबित हुआ, जिससे वे आने वाले समय में और बेहतर उत्पादन की उम्मीद कर रहे हैं।

प्रकृति ने दिया साथ तो किसानों की मेहनत से भूमि ने उगला सोना

मध्यप्रदेश के संतरा किसानों को न केवल अच्छे दाम मिले, बल्कि मौसम भी अनुकूल रहा, जिससे फसल अच्छी हुई। मौसम की सही परिस्थितियों और किसानों की मेहनत के कारण संतरे की पैदावार बढ़िया रही। व्यापारियों और मंडियों में संतरे की अच्छी मांग बनी रही, जिससे किसानों को उचित मूल्य मिला। कई जगहों पर संतरे के दाम पिछले साल की तुलना में बेहतर रहे, जिससे किसानों को आर्थिक रूप से लाभ हुआ दाम सही मिलने की मुख्य वजह बाजार में बढ़ी हुई मांग, संतरे की बेहतर गुणवत्ता और उचित मौसम परिस्थितियाँ रहीं।मध्यप्रदेश के कई जैसे जिलों में संतरा उत्पादन प्रमुख रूप से होता है, और इस साल इन इलाकों के किसानों को संतरे के अच्छे दाम मिले हैं जो संतरा किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाता है।

पिछले वर्ष की तुलना में इस बार मिले ज्यादा दाम

किसान (MP Kisan News) जगदीश मंडलोई बताते हैं कि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष दाम अच्छे मिले हैं, डिमांड अच्छी है, व्यापारी भी संतरे खरीदने आ रहे हैं तो दाम भी इस साल 30 रुपये से 40 किलो तक मिल रहा है। पिछले साल काफी कम दाम था लगभग 10 से 15 रुपये किलो तक ही मिला था, जिस वजह से हमारी लागत भी नहीं निकल पा रही थी। संतरे की फसल में खर्च ज्यादा है, हर महीने 15 से 20 दिन में दवाई से स्प्रे होता है, खाद-पानी तथा अन्य बहुत सारे खर्चे होते हैं जिससे लागत बहुत ज्यादा हो जाती है तो पिछले साल हमारा खर्च भी नहीं निकल रहा था लेकिन इस साल दाम अच्छे हैं तो हमारे रेट से मिल रहे हैं, हम संतुष्ट हैं, इस बार प्रकृति हमारा साथ दिया है, अन्य सालों की अपेक्षा ओलावृष्टि से फसलों का नुकसान हो जाता था।

(आगर मालवा से संजय पाटीदार की रिपोर्ट)

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