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Gwalior News: भ्रष्टाचारी जज के खिलाफ हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी, कहा- "पद के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी जुड़ी है"

Gwalior News: हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हैं। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार (Corruption in the Judiciary) अपनी व्यापक जगह बना चुका है। न्यायपालिका...
11:55 AM Aug 06, 2024 IST | MP First

Gwalior News: हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हैं। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार (Corruption in the Judiciary) अपनी व्यापक जगह बना चुका है। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से जुड़ा एक मामला ग्वालियर से आया है। यहां भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे एक अतिरिक्त जिला जज की बर्खास्तगी को लेकर कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने जज की बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए कहा कि इस पद के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी जुड़ी है और उन्हें अपने पद के अनुरूप आचरण करना चाहिए था। आइए इस खबर के बारे में और अधिक जानते हैं।

कोर्ट ने क्या कहा? 

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की पीठ ने 25 जुलाई को कहा, "न्यायिक अधिकारी निर्भय सिंह सुलिया (Nirbhay Singh Sulia) ने कानून के प्रावधानों के अनुरूप जमानत आवेदनों की कार्यवाही करने के लिए कर्तव्यबद्ध थे। उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कुछ आवेदकों को जमानत का लाभ दिया और उन फैसलों पर विचार किए बिना अन्य को जमानत देने से इनकार कर दिया। कुछ मामलों में प्रासंगिक प्रावधानों पर विचार किए बिना उदार तरीके से जमानत दी गई थी, जबकि अधिकांश मामलों में समान दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया, जो दोहरे मापदंड के आवेदन के बराबर है।"

जमानत आदेशों से पता चलता है...

कोर्ट ने इस मामले में आगे कहा, "भले ही न्यायिक आदेश द्वारा भ्रष्ट या अनुचित मकसद को दिखाने के लिए प्रत्यक्ष सबूत न हों, लेकिन जमानत आदेशों से पता चलता है कि उन्होंने इस तरह से काम किया है जिसे किसी भी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता के खिलाफ अनुचित मकसद और बाहरी विचार का अनुमान उचित रूप से लगाया गया था।"

सुलिया ने आरोपों का किया था खंडन

इस मामले में वर्ष 2013 में हाई कोर्ट ने 'कारण बताओ नोटिस' जारी किया था। हालांकि, सुलिया ने उन आरोपों को सिरे से नकार दिया था। इसके इतर जांच प्राधिकरण ने पाया था कि उनके खिलाफ जमानत आवेदनों पर निर्णय लेने में दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप एकदम सही सिद्ध हुआ है। इसके बाद प्राधिकरण ने रिपोर्ट हाई कोर्ट को भेज दी थी।

इस रिपोर्ट के बाद प्रशासनिक समिति (उच्च न्यायिक सेवा) ने उन्हें सेवा से हटाने की सिफारिश की। हाई कोर्ट ने इस इसका समर्थन किया था। इसके बाद राज्य के कानून और विधायी विभाग ने 2 सितंबर, 2014 को सुलिया को हटाने का आदेश जारी किया था। इसके बाद सुलिया ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल के समक्ष अपील के माध्यम से चुनौती दी थी। हालांकि, यहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी और उनकी प्रार्थना को खारिज कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने फिर कोर्ट में वर्तमान याचिका दायर की।

क्या है पूरा मामला? 

आपको बता दें कि 12 अगस्त, 2011 को एक शिकायत दर्ज की गई थी। उस शिकायत में निर्भय सिंह सुलिया पर मध्य प्रदेश आबकारी अधिनियम (Madhya Pradesh Excise Act) की धारा 34(2) के तहत अपराधों से उत्पन्न जमानत आवेदनों पर निर्णय लेने में एक स्टेनोग्राफर के सहयोग से भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया गया था। यह आरोप लगाया गया था कि सुलिया ने जब्त शराब की मात्रा 50 बल्क लीटर से अधिक होने के बावजूद चार जमानत आवेदनों को स्वीकार किया था। हैरान की बात यह थी कि जब्त शराब की मात्रा 50 बल्क लीटर से अधिक होने के कारण इसी तरह की प्रकृति के 14 जमानत आवेदनों को उन्होंने खारिज कर दिया था।

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