Gangaur Festival MP: भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा का पर्व है गणगौर

गणगौर होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक लगातार 16 दिनों तक चलने वाला त्योहार है। यह माना जाता है कि माता गौरी होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा अठारह दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें फिर लेने के लिए आते हैं।
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Gangaur Festival MP: बैतूल। घोड़ाडोंगरी के सतपुड़ा अंचल बैतूल जिले में इन दिनों गणगौर उत्सव की धूम है। मारवाड़ी अग्रवाल समाज की नव विवाहिताये अपने विवाह के प्रथम वर्ष में कुंवारी कन्याओं के साथ मिलकर गणगौर पूजन कर रही हैं। गणगौर उत्सव मां पार्वती और भगवान शिव के मिलन का उत्सव है जिसे वैवाहिक और दाम्पत्य सुख का प्रतीकोत्सव माना जाता है। गणगौर हिंदू कैलेंडर के पहले महीने चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) के महीने में मनाया जाता है।

इस पर्व के दौरान महिलाएं प्रतिदिन सुबह खेड़ापति माता मंदिर में माता रानी को जल अर्पित करने के बाद परंपराओं के अनुसार गीत गाकर देवताओं का पूजन करती हैं। उसके उपरांत गणगौर माता का पूजन किया जा रहा है। गणगौर पर्व की पूर्व संध्या पर महिलाएं अपनी हथेलियों को मेहंदी से सजाती हैं। त्यौहार के अंतिम दिन पारंपरिक जुलूस के साथ गण और गौरी की मूर्तियों को किसी तालाब या पास की नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।

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यह है गणगौर का महत्व

हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला पर्व गणगौर (Gangaur Festival MP) दाम्पत्य सुख का पर्व माना जाता है। गणगौर होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक लगातार 16 दिनों तक चलने वाला त्योहार है। यह माना जाता है कि माता गौरी होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा अठारह दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें फिर लेने के लिए आते हैं। चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है। गण (शिव) तथा गौर (पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियाँ मनपसन्द वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। गणगौर पूजन में कन्याएं और महिलाएं अपने लिए अखण्ड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि की कामना करती है और गणगौर से प्रतिवर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं।

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सुखी वैवाहिक जीवन के लिए करती है भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा

इस दिन कुँवारी लड़कियां एवं विवाहित महिलाएं भगवान शिव (इसर जी) और मां पार्वती (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छींटे देते हुए गीत गाती हैं। इस दिन पूजन के समय रेणुका की गौर बनाकर उस पर महावर, सिन्दूर और चूड़ी चढ़ाने का विशेष प्रावधान है। चन्दन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है। इस पर्व में मां गौरी और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के उपरांत अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रीत के रूप में भी प्रचलित है। गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं।

क्या है गणगौर त्यौहार की कहानी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पतिस्वरूप में पाने के लिए महादेव की प्रतिमा बनाकर उनके सामने 15 दिन तक कठोर तपस्या की थी। इसके बाद 16वें दिन भगवान शिव, माता पार्वती की निष्ठा और तपस्या से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें अपने साथ विवाह करने का वरदान दिया। भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को अपनाने के बाद गाजे-बाजे के सात माता पार्वती के परिवार ने भगवान शिव के साथ उनको विदा किया था। राजस्थान में मनाए जाने वाले इस गणगौर के त्यौहार (Gangaur Festival MP) में ईशर को भगवान शिव व गणगौर को माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है।

(बैतूल से मनोज देशमुख की रिपोर्ट)

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