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Gwalior Ramleela: ग्वालियर में होली से पहले होती है रामलीला, आज भी निभाई जाती है पाकिस्तान की यह परंपरा

यह रामलीला असल में ग्वालियर की नहीं बल्कि पाकिस्तान के झंग जिले के रसीदपुर गांव से पलायन कर आई परंपरा है जो मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में फलफूल रही है।
02:08 PM Mar 13, 2025 IST | Sunil Sharma

Gwalior Ramleela: ग्वालियर। जब भी कहीं रामलीला का जिक्र होता है तो हमारे जहन में अपने आप ही दशहरा और दीपावली के त्यौहार याद आ जाते हैं लेकिन ग्वालियर में एक अनोखी रामलीला का मंचन होता है जो केवल होली के अवसर पर ही आयोजित की जाती है। यह रामलीला असल में ग्वालियर की नहीं बल्कि पाकिस्तान के झंग जिले के रसीदपुर गांव से पलायन कर आई परंपरा है जो मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में फलफूल रही है।

117 साल पुरानी परंपरा है रामलीला की

यह रामलीला लगभग 117 साल पुरानी है। इसकी खास बात है कि यह सिर्फ होली पर ही आयोजित का जाती है। पूरे देश में शायद ही कोई दूसरा शहर होगा जहां होली के अवसर पर रामलीला का मंचन किया जाता हो। पहले इसका मंचन पाकिस्तान की झंग जिले की रसीदपुर गांव में होता था। भारत के विभाजन के बाद जब पाकिस्तान बना और वहां का माहौल खराब हुआ तो झंग बिरादरी के लोग पलायन कर पहले दिल्ली और फिर ग्वालियर में आकर बस गए। सन 1948 से यह रामलीला लगातार ग्वालियर में आयोजित हो रही है।

युवाओं को धर्म से जोड़ने के लिए शुरू हुई थी परंपरा

रामलीला समिति के सदस्य बताते हैं कि झंग में युवाओं को नशे की लत से बचाने और धर्म से जोड़ने के लिए पहले धार्मिक नाटकों (Gwalior Ramleela) का मंचन किया जाता था जो कि बाद में बदलकर रामलीला के रूप में परिवर्तित हो गया। इस परंपरा को झंग बिरादरी द्वारा आज भी जीवित रखा गया है। झंग समाज के कुछ बुजुर्गों के अनुसार यह बिरादरी मूल रूप से पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के झंग जिले की निवासी थी। वहां सन 1908 में झंग बिरादरी के युवाओं को होली पर नशे से दूर रखने और धर्म व अध्यात्म से जोड़ने के लिए समुदाय के लोगों ने होलीका अष्टक के दौरान रामलीला मंचन की परंपरा के शुरुआत में यह साधारण नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जाता था लेकिन कुछ वर्षों से रामलीला का स्वरूप ले लिया गया।

देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आ गई परंपरा

जब 1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान बना और वहां हिंदू व पंजाबी समाज के लिए हालात तनावपूर्ण हो गए तब इस बिरादरी ने भी पलायन कर भारत का रुख किया औऱ दिल्ली होते हुए ग्वालियर में आकर बस गए। इस दौरान यह समाज अपनी संस्कृति और अनोखी परंपरा को भी अपने साथ लेकर आया। इस ऐतिहासिक रामलीला को ग्वालियर की शिंदे की छावनी स्थित आदर्श नगर में पूरी भव्यता के साथ दिखाया जाता है।

अपनी संस्कृति को निभाने के लिए होली पर आते हैं ग्वालियर

भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान एक अलग देश बन गया था। पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के झंग जिले के रसीदपुर से झंग बिरादरी के लोग भारत में कई जगह बंट गए पर ग्वालियर में झंग बिरादरी की संख्या अधिक होने और यहां सिंधिया राजघराने की छत्रछाया में झंग बिरादरी के लोगों ने खुद को सुरक्षित महसूस किया और यह रामलीला (Gwalior Ramleela) की परंपरा को आगे बढ़ाया। बिरादरी के कुछ लोग काम धंधे की तलाश में देश के अन्य शहरों तथा विदेश चल चले गए लेकिन होली पर सभी लोग लौटकर ग्वालियर आते हैं और अपना अभिनय निभाते हैं।

(ग्वालियर से सुयश शर्मा की रिपोर्ट)

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