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Krishna Janmashtami 2024 : भागवत गीता के इन श्लोक के जाप करने से बदल जाएगी आपकी जिंदगी

Krishna Janmashtami 2024: हिन्दू धर्म में कृष्ण हर साल जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाती है। जन्माष्टमी का त्योहार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था जाने...
05:50 PM Aug 22, 2024 IST | Jyoti Patel
Krishna Janmashtami 2024

Krishna Janmashtami 2024: हिन्दू धर्म में कृष्ण हर साल जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाती है। जन्माष्टमी का त्योहार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था जाने इसलिए इस दिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहा जाता है। इस बार जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जा रही है।

इस पावन अवसर पर हम आपको भगवान श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए कुछ संदेशों के बारे में बताएँगे। ये तो हम सभी जानते है श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से समस्त संसार को गीता का अमृत संदेश दिया था। श्रीमद् भागवत गीता इंसान का कठिन से कठिन परिस्थितियों में सही मार्गदर्शन करती है। आज हम आपको गीता के कुछ ऐसे शोलोक के बारें में बताएँगे जिनसे आपको जीवन में सकारत्मक भाव और मन की शांति प्राप्त होगी।

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्रात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:॥

अर्थ: मनुष्य को अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिये और अपना अध: पतन नहीं करना चाहिये; क्योंकि आत्मा ही आत्मा का मित्र है और आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) शत्रु है

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद का अपना ही नाश कर बैठता है।

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

अर्थ: विषयों वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ: कर्म करने मात्र में तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी नहीं। तुम कर्मफल के हेतु वाले मत होना और अकर्म में भी तुम्हारी आसक्ति न हो।

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