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Mahakumbh Third Amrit Snan: मौनी अमावस्या को है महाकुंभ का तीसरा अमृत स्नान, जानें शुभ मुहूर्त

यह भी माना जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन गंगा नदी का जल अमृत में बदल जाता है। इसलिए इस दिन गंगा में स्नान करने का अलग ही महत्व होता है।
01:28 PM Jan 25, 2025 IST | Preeti Mishra
Mahakumbh Third Amrit Snan

Mahakumbh Third Amrit Snan: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के संगम तट में चल रहे महाकुंभ 2025 के तीसरे अमृत स्नान की तिथि नजदीक आ रही है। महाकुंभ में अभी तक दो अमृत स्नान हो चुके हैं। पहले दो अमृत स्नान 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा और 14 जनवरी मकर संक्रांति के दिन आयोजित किये गए थे। वहीं अब तीसरा अमृत स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या (Mahakumbh Third Amrit Snan) के दिन आयोजित किया जाएगा।

महाकुंभ 2025 तीसरा अमृत स्नान

महाकुंभ का तीसरा अमृत स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या (Third Amrit Snan on Mauni Amavasya) के संयोग में होगा, जिसे माघी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान के लिए जुटेंगे। धार्मिक मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन आसमान से अमृत बरसता है, जिससे पानी आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए महाकुंभ में इस दिन अमृत स्नान (Mahakumbh Third Amrit Snan) का विशेष महत्व है। यह भी माना जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन गंगा नदी का जल अमृत में बदल जाता है। इसलिए इस दिन गंगा में स्नान करने का अलग ही महत्व होता है।

मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान का महत्व

मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान का हिंदू धर्म में अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व (Significance of Amrit Snan on Mauni Amavasya)है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन पर, आकाशीय ऊर्जाएं संरेखित होती हैं, जिससे पवित्र नदियों, विशेष रूप से गंगा में डुबकी लगाने से अत्यधिक शुद्धिकरण होता है। ऐसा कहा जाता है कि यह अनुष्ठान पापों को शुद्ध करता है, आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है और मोक्ष की ओर ले जाता है। यह दिन बढ़े हुए ब्रह्मांडीय स्पंदनों का भी प्रतीक है, जो मौन और ध्यान के लाभों को बढ़ाता है। प्रयागराज जैसे स्थानों में गंगा, यमुना और सरस्वती जैसी नदियों का संगम इस अनुष्ठान का केंद्र बिंदु बन जाता है, जो दिव्य आशीर्वाद और आध्यात्मिक नवीनीकरण की तलाश में लाखों भक्तों को आकर्षित करता है।

अमृत स्नान कैसे अलग है शाही स्नान से?

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्राचीन परंपराओं का सम्मान करने के लिए इस महाकुंभ से पहले मुगलों के समय से प्रचलित शाही स्नान शब्द को बदलकर अमृत स्नान कर दिया। इसके पीछे उद्देश्य मूल नामकरण की पवित्रता को पुनर्जीवित करना है। अमृत स्नान के दिन सभी 13 अखाड़ों के नागा, साधु और संत सबसे पहले स्नान करते हैं। इनके बाद ही सामान्य जन स्नान कर सकते हैं। राज्य सरकार और मेला प्रशासन अमृत स्नान के पहले अखाड़ों के पवित्र संगम में डुबकी लगाने के समय का ऐलान करता है। सभी साधु-संत अपने नियत समय में अखाड़े निकलते हैं और निर्धारित समय तक अखाड़े में वापस आ जाते हैं।

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