Rang Panchami: रंगपंचमी पर गमी वाले घर होती हैं फागें, वजह जानकर हैरान रह जाएंगे आप
Rang Panchami Festival: सागर। बुंदेलखंड में होली से पंचमी तक ग्रामीण अंचलों में फागें होती हैं। यह मूल रूप से उन घरों पर जाती हैं जहां पिछले एक साल में किसी परिवारजन का निधन हो गया है। फागें जाकर इन घरों में इस त्यौहार में उत्सव और हर्ष का माहौल बनाती हैं। दुख में डूबे हुए लोगों को मुख्य धारा में जोड़ने का प्रयास करती हैं, ताकि वे अपने गम से बाहर निकलकर दोबारा से समाज के बीच आए और अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाएं।
क्या होती है फागें
यह दरअसल बुजुर्गों की टोलियां होती हैं, जो फागें गाती हैं। इनके गाने का अंदाज भी बड़ा ही निराला और मनमोहक होता है। यह नगरिया की थाप, ढोल मंदिरों की धुन पर ताल मिलाते हैं, ये फागें सामाजिक समरसता का उदाहरण भी है, क्योंकि इनमें समाज के सभी जाति एवं वर्गों के लोग सम्मिलित होते हैं। जिस किसी के घर में मृत्यु होती है, उन घरों में यह टोली जाकर फागें गाती हैं ताकि अपने परिजन के जाने के दुख में बैरंग और सूने हो चुके लोग फिर से समाज के ढंग में रंग (Rang Panchami Festival) सकें।
बुंदेलखंड में 13 दिन के बजाय एक साल तक चलता है शोक
सनातन धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार में 13 दिन तक दुःख का माहौल रहता है, इसके बाद वे अपने कामकाज में जुट जाते हैं। परंतु बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में यह शोक (गम) एक साल तक रहता है। इस दौरान वह परिवार सवा महीने तक तो घर से नहीं निकलता है और फिर पूरे 365 दिन अपने परिजन को खोने के दुख से दुखी रहता है। यह परंपरा न केवल ग्रामीण वरन शहरी क्षेत्र के परिवारों में भी देखने को मिलता है।
परिवार के दुख को दूर करने के लिए गाया जाता है फाग
फागें गाने वाले विजय चौरसिया बताते है कि जब किसी परिवार में गमी हो जाती है तो उस परिवार को सांत्वना देने के लिए बैरंग और सूने परिवार को अपने रंग में रंगने के लिए गीत गाया जाता है। राजकुमार रैकवार बताते हैं कि यह बुंदेलखंडी फागें सदियों से परंपरागत रूप से चली आ रही है, हमारे बुजुर्गों के बुजुर्ग भी टोलियां लेकर घर-घर जाते थे। इसमें इतिहास का वर्णन, मंदिरों का वर्णन, देवी-देवताओं का वर्णन, प्रकृति का वर्णन तथा राधा-कृष्ण के प्रेम (Rang Panchami Festival) को गाया जाता है।
(सागर से कृष्णकांत नगाइच की रिपोर्ट)
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