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Jagannath Rath Yatra 2024: कल निकलेगी पूरी में जगन्नाथ रथ यात्रा, जानें समय, इसका इतिहास और महत्व

Ratha Yatra 2024: रथ यात्रा पुरी, ओडिशा में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। इसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को भव्य रथों पर बिठाकर गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है, जो कि...
02:40 PM Jul 06, 2024 IST | Preeti Mishra

Ratha Yatra 2024: रथ यात्रा पुरी, ओडिशा में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। इसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को भव्य रथों पर बिठाकर गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है, जो कि जगन्नाथ मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर है। रथ यात्रा (Ratha Yatra 2024) का दिन हिंदू चंद्र कैलेंडर के आधार पर तय किया जाता है। यह आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष के दौरान द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। भगवान जगन्नाथ की यात्रा पुरे विश्व में प्रसिद्ध है।

इस वर्ष कब है रथ यात्रा

इस वर्ष रथ यात्रा 7 जुलाई दिन रविवार को शुरू होगी और इसका समापन दशमी तिथि को 16 जुलाई को होगा। भगवान जगन्‍नाथ की पूजा मुख्य रूप से पुरी शहर के प्रसिद्ध जगन्‍नाथ मंदिर में की जाती है। जगन्नाथ मंदिर चार हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है, जिन्हें चार धाम तीर्थयात्रा के रूप में जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ की पूजा उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा के साथ की जाती है। बता दें कि रथ यात्रा (Ratha Yatra 2024) की रस्में, रथ यात्रा के दिन से बहुत पहले शुरू हो जाती हैं। रथ यात्रा से लगभग 18 दिन पहले भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा को प्रसिद्ध स्नान कराया जाता है जिसे स्नान यात्रा के नाम से जाना जाता है। स्नान यात्रा का दिन ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है जिसे लोकप्रिय रूप से ज्येष्ठ पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।

महीनों पहले शुरू हो जाती है रथ यात्रा की तैयारी

रथ यात्रा (Ratha Yatra 2024) के लिए एक विशिष्ट प्रकार की लकड़ी का उपयोग करके विशाल रथों का निर्माण महीनों पहले शुरू हो जाता है। इस कार्यक्रम को अनुष्ठानों, संगीत और नृत्य द्वारा चिह्नित किया जाता है। दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु सांप्रदायिक भक्ति और एकता का प्रदर्शन करते हुए रथों को रस्सियों से खींचते हुए उत्सव में भाग लेने के लिए पुरी में एकत्रित होते हैं। इस त्यौहार का न केवल धार्मिक महत्व है बल्कि यह ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी प्रदर्शित करता है। रथ यात्रा में प्रत्येक देवता के पास एक रथ होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ में 18 पहिए होते हैं तो वहीं भगवान बलभद्र के रथ में 16 पहिए होते हैं। इसी तरह सुभद्रा के रथ में 14 पहिए होते हैं।

कहां तक जाती है रथ यात्रा

रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ की गुंडिचा माता मंदिर की वार्षिक यात्रा की याद दिलाती है। ऐसा कहा जाता है कि पौराणिक राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी रानी गुंडिचा की भक्ति का सम्मान करने के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के साथ मुख्य मंदिर में अपना नियमित निवास छोड़ देते हैं और कुछ दिन गुंडिचा मंदिर में बिताते हैं। बता दें की रानी गुंडिचा द्वारा ही भगवान जगन्नाथ के सम्मान में जगन्नाथ मंदिर बनवाया गया था। रथ यात्रा से एक दिन पहले, भगवान जगन्नाथ के भक्तों द्वारा गुंडिचा मंदिर की सफाई की जाती है। गुंडिचा मंदिर की सफाई की रस्म को गुंडिचा मार्जन के रूप में जाना जाता है।

देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ की तलाश में जाती हैं गुंडिचा मंदिर

रथ यात्रा के बाद चौथे दिन को हेरा पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ की पत्नी देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ की तलाश में गुंडिचा मंदिर जाती हैं। हेरा पंचमी को पंचमी तिथि के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हेरा पंचमी रथ यात्रा के चौथे दिन मनाई जाती है और आमतौर पर षष्ठी तिथि पर मनाई जाती है।

देवशयनी एकादशी से पहले लौट आते हैं भगवान जगन्नाथ

गुंडिचा मंदिर में आठ दिनों तक आराम करने के बाद भगवान जगन्नाथ अपने मुख्य निवास स्थान पर लौट आते हैं। इस दिन को बहुदा यात्रा या वापसी यात्रा के रूप में जाना जाता है और रथ यात्रा के आठवें दिन दशमी तिथि पर मनाया जाता है। बहुदा यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ मौसी मां मंदिर में थोड़ी देर के लिए रुकते हैं। यह मंदिर देवी अर्धशिनी को समर्पित है। भगवान जगन्नाथ देवशयनी एकादशी से ठीक पहले अपने मुख्य निवास पर लौटते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ चार महीने के लिए शयन पर चले जाते हैं।

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