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Sakat Chauth 2025: जानिए नए साल में कब रखा जाएगा सकट चौथ व्रत, जाने क्यों किया जाता है व्रत

हिंदू धर्म के अनुसार चतुर्थी का बहुत महत्व होता है। चतुर्थी तिथि खासतौर भगवान गणेश को समर्पित होता है।
04:54 PM Dec 02, 2024 IST | Jyoti Patel
Sakat Chauth 2025

Sakat Chauth 2025: हिंदू धर्म के अनुसार चतुर्थी का बहुत महत्व होता है। चतुर्थी तिथि खासतौर भगवान गणेश को समर्पित होता है। कुछ लोग इस तिथि को भगवान गणेश जी के लिए व्रत रखते हैं। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है और माना जाता है कि यह भक्तों की सभी परेशानियों का हर कर जीवन में सुख और समृद्धि का वरदान देते हैं। माघ माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ या सकट व्रत किया जाता है। माघ माह में होने के कारण यह व्रत आमतौर पर जनवरी में आता है। इसे तिल चौथ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश को तिल के लड्डू का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा यह व्रत महिलाएं इस दिन संतान की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रहती हैं और रात में चंद्रमा की पूजा के बाद व्रत खोलती हैं।

कब रखा जाएगा सकट चौथ व्रत

सकट चौथ का व्रत इस बार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 17 जनवरी को सुबह 4 बजकर 6 मिनट से शुरू होकर 18 जनवरी को सुबह 5 बजकर 30 मिनट तक रहेगी। सकट चौथ का व्रत 17 जनवरी शुक्रवार को रखा जाएगा, इस दिन चन्द्रोदय समय रात में 9 बजकर 9 मिनट है. अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त सुबह 9 बजकर 52 मिनट से 11 बजकर 11 मिनट तक है।

क्या है सकट चौथ का महत्व

हर महीने की चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेश की पूजा के लिए समर्पित होता है। इस दिन भक्त चतुर्थी का व्रत रखकर विधि विधान से भगवान गणेश की पूजा करते है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है और माना जाता है यह भक्तों की सभी परेशानियों को हर कर जीवन में सुख और समृद्धि का वरदान देते हैं। इसके साथ ही सकट चौथ व्रत में भगवान गणेश के साथ-साथ चंद्र देव की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस व्रत का करने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और संतान की उम्र लंबी होती है। ऐसा माना जाता है कि यह व्रत करने से जीवन की परेशानियों का अंत हो जाता है। सकट चौथ व्रत के दिन दिन विधि विधान से भगवान गणेश की पूजा करके उन्हें बूंदी के लड्डू, गन्ना, शकरकंद, गुड़ और तिल से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है।

सकट चौथ की कथा

एक बार माता पार्वती स्नान करने जाने से पहले अपने पुत्र गणेश जी स्नान घर के बाहर चढ़ा रहने का आदेश दिया और कहा, जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर नहीं आ जाती किसी को भीतर आने की मत आने देना. बाल गणेश मां की बात मानकर पहरा देने लगे. उसी समय भगवान शिव आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने को कहा. इससे आहत भगवान शिव ने बाल गणेश पर त्रिशूल का वार कर दिया. तेज आवाज सुनकर जब माता पार्वती आईं तो देखा कि भगवान शिव ने उनके पुत्र गणेश जी की गर्दन काट दी है. वे इससे परेशान होकर वे रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दीजिए. शिवजी ने हाथी का सिर लोकर गणेश जी को लगा दिया इस तरह से बाल गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिल गया. इस घटना के कारण ही भगवान गणेश का सिर हाथी का हो गया. इसके बाद से सकट चौथ का व्रत शुरू हो गया और महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ का व्रत करने लगी. यह व्रत बच्चों पर आने वाले सभी संकटों को दूर करने वाला माना जाता है.

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