Holika Dahan: इस गांव में होली जलाना मना है पर खेलने पर नहीं पाबंदी, रोचक है वजह
Holika Dahan: सागर। देश का बुंदेलखंड अंचल में एक गांव ऐसा भी है जहां होलिका दहन नहीं किया जाता है यद्यपि यहां के लोग होली बहुत चाव से खेलते हैं। इस गांव के ग्रामीणों ने एक बार होलिका दहन का प्रयास किया तो गांव के अनेक घरों में अपने आप लग गई तब भयभीत ग्रामीणों ने यहां स्थित झारखंडन माता मंदिर में विनती की और गांव की आग बुझ गई। उसी रात गांव के कुछ लोगों के सपने में आकर माता ने कहा कि यहां मैं विराजमान हूं, यहां होली जलाने की जरूरत नहीं है। तभी से इस गांव के लोग होली नहीं जलाते हैं। यह कहानी सागर जिले की देवरी कलां तहसील के ग्राम हथखोय की है जहां पीढ़ियों से ग्रामीण होलिका दहन नहीं करते लेकिन होली खेलने पर यहां कोई प्रतिबंध नहीं है।
इस गांव में नहीं जलाई जाती है होली
हिंदुस्तान के लगभग हर हिस्से में होली का त्यौहार बढे ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बुंदेलखंड के सागर जिले का हथखोह एक ऐसा गांव है, जहां होली का जिक्र आते ही लोग डर जाते हैं। यहां के लोग होलिका दहन नहीं करते हैं। इस गांव में होलिका दहन को लेकर न तो कोई उत्साह दिखता है और न ही किसी तरह की उमंग नजर आती है। देवरी विकासखंड के हथखोह गांव में होली की रात (Holika Dahan) आम रातों की तरह ही रहती है।
इस किंवदंती के चलते नहीं जलाई जाती होली
जब गांव में जाकर इस बात की जानकारी ली गई तो वहां के ग्रामीणों ने कहा कि दशकों पहले गांव में होलिका दहन के दौरान कई झोपड़ियों में आग लग गई थी। तब गांव के लोगों ने झारखंडन देवी की आराधना की और आग बुझ गई। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह आग झारखंडन देवी की कृपा से बुझी थी, लिहाजा होलिका का दहन नहीं किया जाना चाहिए। यही कारण है कि कई पीढ़ियों से हथखोह गांव में होलिका दहन नहीं होता है। गांव के बुजुर्गों की मानें तो उनके बाल सफेद पड़ गए हैं, मगर उन्होंने गांव में कभी होलिका दहन होते नहीं देखा। उनका कहना है कि यहां के लेागों को इस बात का डर है कि होली जलाने से झारखंडन देवी कहीं नाराज न हो जाएं।
लेकिन एक-दूसरे के जमकर रंग और गुलाल लगाते हैं लोग
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि इस गांव में होलिका दहन भले ही नहीं होता हो, लेकिन हम लोग रंग गुलाल लगाकर होली का त्यौहार मनाते हैं। झारखंडन माता मंदिर के पुजारी के मुताबिक हथखोह गांव के लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि देवी ने साक्षात दर्शन दिए थे और लोगों से होली न जलाने को कहा था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है। दशकों पहले यहां होली (Holika Dahan) जलाई गई थी, तो कई मकान जल गए थे और लोगों ने जब झारखंडन देवी की आराधना की, तब आग बुझी थी।
हम आपको बता दें कि झारखंडन धाम में चैत्र नवरात्रि के अवसर पर एक मेले का आयोजन भी किया जाता है जिसमें भाग लेने दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां लोग जिस भी प्रकार की मनोकामना मांगते हैं, उनकी वह मनोकामना पूरी होती है। झारखंडन माता यहां के ग्रामीणों की कुलदेवी भी मानी जाती है।
(सागर से कृष्ण कांत नगाइच की रिपोर्ट)
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