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होलिका दहन के बाद धधकते अंगारे घर ले जाते हैं लोग, उसी से जलता है घर का चूल्हा, जानिए मालवा की अनोखी परंपरा

​​Agar Malwa Holi Rituals आगर मालवा: होलिका दहन के बाद होली शुरू हो जाती है, लेकिन देश में होलिका दहन को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं, इनमें से कुछ अजीब भी हैं। ऐसी ही एक प्रथा मालवा क्षेत्र में भी प्राचीन...
10:46 AM Mar 13, 2025 IST | Amit Jha

Agar Malwa Holi Rituals आगर मालवा: होलिका दहन के बाद होली शुरू हो जाती है, लेकिन देश में होलिका दहन को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं, इनमें से कुछ अजीब भी हैं। ऐसी ही एक प्रथा मालवा क्षेत्र में भी प्राचीन समय से चली आ रही है। होलिका दहन (Holika Dahan Significance) के बाद घरों में आग लाने की परंपरा है। माना जाता है कि यह नई अग्नि होती है। अग्नि को धधकते हुए अंगारों के साथ घर पर लाने से सुख-समृद्धि आती है।

होलिका दहन के बाद धधकते अंगारे घर लाते हैं लोग

होलिका दहन का मालवा क्षेत्र में खास महत्व है। कहते हैं इस दिन होलिका की आग में जहां रोग, द्वेष और बुराइयां नष्ट हो जाती हैं। वहीं, उसकी भस्म का भी बहुत महत्व है। जलती हुई होली में से लोग भस्म एवं धधकते हुए अंगारे घर लेकर जाते हैं। होलिका की भस्म को साल भर घर में रखा जाता है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आगर मालवा समेत सुसनेर एवं ग्रामीण अंचल में लोग परंपरागत तरीके से होलिका की आग को घर ले जाते हैं और उसी आग से चूल्हा जलाया जाता है। इसके बाद यहां इस आग को साल भर बुझाया नहीं जाता है। बल्कि होलिका की आग से जलाए गए चूल्हे की आग को राख में गाड़ कर रखा जाता है और अगले दिन फिर इसी आग से चूल्हा जलाया जाता है। इस प्रकार साल भर एक ही आग से चूल्हा जलाने की परंपरा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में देखी जाती है।

प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिए होलिका दहन

आगर मालवा सुसनेर के पंडित गोविंद शर्मा कहते हैं, "होलिका दहन से आरोग्यता (Agar Malwa Holi Rituals) आती है। राक्षस प्रवृत्तियों का नाक्ष होता है, वातावरण सुगंधित होता है। आज रात्रि में शुभ मुहूर्त में होलिका का दहन होगा। वहीं, अगले दिन धुलेंडी की सुबह से ही रंग- गुलाल का उड़ना शुरू हो जाएगा। लोग प्रेम के साथ एक दूसरे को रंग लगाएंगे। प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिए होलिका दहन किया जाता है।"

यह कथा है प्रचलित

शास्त्रों के अनुसार, ढुंढा नामक राक्षसी प्राणियों को पीड़ा पहुंचाया करती थी। उसके प्रभाव से अन्न, गेहूं, चना जौ आदि की फसलों को कीड़े नुकसान पहुंचाते थे। पीड़ित लोग एकत्रित हुए और तृणकष्ठ की विशाल ज्वाला से उस राक्षसी को भयभीत कर दिया। राक्षसी उस क्षेत्र से पलायन कर गई और उस क्षेत्र का सुरक्षा मिली तभी से होलिका दहन प्रारंभ हुआ। संयोग से उसी पूर्णिमा में होलिका ने जलती हुई ज्वाला में भक्त प्रहलाद को लेकर प्रवेश किया और होलिका जल गई एवं प्रहलाद बच गए। मान्यता है कि तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है।

(आगर मालवा से संजय पाटीदार की रिपोर्ट)

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