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Baba Achalnath Temple: ग्वालियर में चमत्कारी शिवलिंग, अचलनाथ को महाराजा और अंग्रेज भी नहीं हिला पाए थे

Baba Achalnath Temple Gwalior  ग्वालियर: भगवान शिव  का प्रिय महीना सावन शुरू हो गया है। देश के विभिन्न राज्यों में भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिर है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है, जिसको...
04:25 PM Jul 22, 2024 IST | Suyash Sharma

Baba Achalnath Temple Gwalior  ग्वालियर: भगवान शिव  का प्रिय महीना सावन शुरू हो गया है। देश के विभिन्न राज्यों में भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिर है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है, जिसको हटाने के लिए बड़े से बड़े राजा महाराजा लगे रहे,  लेकिन शिवलिंग को हिला भी नहीं सके। शिवलिंग को खिंचवाने के लिए उन्होंने कई हाथियों की भी मदद ली, लेकिन हाथियों का बल भी बेकार हो गया। शिवलिंग को खोदकर निकालने की भी कोशिश की गई, लेकिन खोदते-खोदते पानी निकल आया मगर शिवलिंग का कोई छोर नहीं मिला।

भक्तों की हर कामना पूर्ण करते हैं बाबा अचलनाथ!

मान्यता है कि ग्वालियर में बीच चौराहे पर आज विराजमान भगवान भोलेनाथ का यह चमत्कारी शिवलिंग करीब 750 वर्ष पहले का है। यह मंदिर बाबा अचलनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान अचलनाथ के दरबार में देशभर से श्रद्धालु  मत्था टेकने आते हैं। मान्यता है कि भगवान अचलनाथ दरबार में आए हर श्रद्धालु की इच्छा पूर्ण करते हैं। कहते हैं बाबा अचलनाथ का वरदान भी उनकी प्रतिमा की तरह अचल रहता है। मंदिर में आने वाले हर भक्त की मुराद बाबा पूरी करते हैं। यही वजह है कि यह मंदिर पिछले 700 सालों से सड़क के बीचो बीच स्थापित है।

सावन में अचलनाथ के दरबार में श्रद्धालुओं का तांता

सावन के महीने में बाबा अचलनाथ के दरबार (Baba Achalnath Temple Gwalior) में न केवल उत्तरी मध्य प्रदेश बल्कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात और दिल्ली समेत देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। सावन में श्रद्धालु भगवान शिव को मनाने के लिए विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह पूरी हो जाती है। यही वजह है कि मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मन्नत पूरी होने के बाद भक्त यहां गुप्त दान भी करते हैं।

मंदिर को लेकर क्या है मान्यता?

इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक कथा भी प्रचलित है। प्रचलित कथा के अनुसार इस मंदिर को सिंधिया शासकों ने बनवाया था। जहां भगवान अचलनाथ का मंदिर है, वहां लगभग 700 साल पहले वहां एक पीपल का पेड़ हुआ करता था। सड़क के बीचो बीच पेड़ होने से लोगों को आने जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता था। उस समय सबसे अधिक सिंधिया परिवार को परेशानी से दो-चार होना पड़ता था। जब भी वजय दशमी के शुभ अवसर पर सिंधिया परिवार की शाही सवारी निकलती थी तो इस स्थान पर आकर शाही सवारी को परेशानी होती थी।

चमत्कारी है भगवान अचलनाथ का मंदिर

ऐसे में इस पेड़ को हटाने के लिए सिंधिया शासकों ने इस पेड़ को हटाने का आदेश दिया। जब पेड़ हटाने के लिए मजदूरों ने कार्य शुरू किया तो वहां पर एक पिंडी (Achaleshwar Mahadev Temple) उभर कर आ गई। इस पिंडी को हटाने के लिए मजदूरों ने काफी मेहनत की लेकिन पिंडी नहीं हटी। पिंडी हटाने के लिए पिंडी के अगल-बगल गहरी खुदाई की गई, लेकिन कोई भी इस पिंडी को नहीं हिला सका।

जमीन से पिंडी निकालने में हाथियों की ताकत हो गई फेल

प्रचलित कथा के मुताबिक, जब पिंडी नहीं हटा पाने की जानकारी सिंधिया परिवार को लगी तो उन्होंने पिंडी को हटाने के लिए हाथी भी भेजे। हाथी में जंजीर बांध कर जब पिंडी खीची गई तो जंजीर टूट गई। बाद में भगवान ने तत्कालीन राजा को सपना दिया कि यदि मूर्ति खंडित हो गई तो सर्वनाश हो जाएगा। इसके बाद राजा ने पूजा-अर्चना करवाकर इस पिंडी की विशेष पूजा-पाठ प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। तब से लेकर आज तक मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। श्रद्धालुओं के अनुसार, ग्वालियर स्थित भगवान अचलनाथ के दरबार में सावन के समय विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

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