Bhopal News: बुजुर्ग की खाद्य नली में फंसे नकली दांत, एम्स के डॉक्टरों ने बिना चीरफाड़ बचाई जान

एक मरीज की खाद्य नली में नकली दांत फंसने से उसकी जान पर बन आई जिसे एम्स के डॉक्टरों द्वारा निकाल कर मरीज की जान बचाई गई।
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Bhopal News: भोपाल। एक मरीज की खाद्य नली में नकली दांत फंसने से उसकी जान पर बन आई जिसे एम्स के डॉक्टरों द्वारा निकाल कर मरीज की जान बचाई गई। इस पूरे मामले में आश्चर्यजनक बात यह थी कि मरीज को भी इसकी जानकारी नहीं थी कि उसकी खाद्य नली में नकली दांत फंस गया है। उसे लगातार दर्द की शिकायत थी। निजी अस्पतालों में चक्कर लगाने के बाद वहां से उसे एम्स भेज दिया गया, जहां मरीज की विस्तारपूर्वक जांच करने पर पता चला कि उसकी खाद्य नाली में नकली दांत की प्लेट फंसी है। इसके बाद डॉक्टरों ने मरीज की सर्जरी करने की योजना बनाई, लेकिन उसके हार्ट में पेसमेकर लगा होने के कारण ऑपरेशन करना कठिन था।

डॉक्टरों ने माना मिर्गी का मरीज, जांच में पता चली हकीकत

एम्स भोपाल के डायरेक्टर प्रो. अजय सिंह ने बताया कि रोगी को बेहोशी के कुछ दौरे पड़े थे। शुरू में इसके पीछे मिर्गी को कारण माना गया था, लेकिन बाद में पता चला कि यह हृदय की समस्या के कारण था जिसके लिए हाल ही उसे पेसमेकर लगाया गया था। डॉ. सिंह ने बताया कि बेहोशी के दौरान रोगी के नकली दांत अनजाने में खाद्य नली के अंदर चले गए जिसकी वजह से खाना निगलने में कठिनाई होने लगी। जांच के बाद पता चला कि नकली दांत उनकी खाद्य नली में फिसल कर वहीं फंस गया है। एंडोस्कोपिक प्रयासों के बावजूद डेन्चर को नहीं निकाला जा सका। इसके बाद रोगी को सर्जिकल ऑपरेशन के लिए एम्स (Bhopal News) भेजा गया।

वीएटीएस तकनीकी से निकाला दांत

डॉ. सिंह ने बताया कि सर्जरी के दौरान डेंचर की स्थिति का सटीक निर्धारण और निगरानी करने के लिए गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. पीयूष पाठक ने एंडोस्कोपी द्वारा मार्गदर्शन दिया। प्रोफेसर सिंह ने इस उपलब्धि के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, यह मामला एम्स भोपाल में उन्नत क्षमताओं और टीमवर्क का एक उदाहरण है। इस तरह की चुनौतीपूर्ण कंडीशन को ठीक करने के लिए न्यूनतम इनवेसिव तकनीकों का उपयोग किया गया। यह जटिल और नाजुक प्रक्रिया उन्नत थोरैकोस्कोपिक (वीएटीएस) तकनीक का उपयोग करके की गई, जिससे पारंपरिक ओपन-चेस्ट सर्जरी से बचा जा सका।

इस तरह डेंचर को निकाला बाहर

सर्जिकल टीम (Bhopal News) का नेतृत्व करने वाले सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. विशाल गुप्ता ने बताया कि नकली दांत एसोफैगल दीवार में गहराई तक घुस गयी थी। उसे छाती के रास्ते सावधानीपूर्वक निकालने की आवश्यकता थी। रोगी को हाल ही में लगाए गए पेसमेकर और संबंधित सर्जिकल जोखिमों को देखते हुए यह एक चुनौतीपूर्ण मामला था। उनके साथ डॉ. योगेश निवारिया (कार्डियोथोरैसिक सर्जरी), डॉ. जैनब (एनेस्थीसिया), और डॉ. श्रीराम और डॉ. गौरव (सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी) भी इस टीम का हिस्सा थे। टीम ने पारंपरिक ओपन चेस्ट सर्जरी के बजाय धोराकोस्कोपिक तकनीक को चुना, ताकि सर्जिकल ट्रॉमा को कम किया जा सके। इस तकनीक ने बड़े चीरे की आवश्यकता को समाप्त कर रोगी की रिकवरी को तेज और दर्द को कम किया।

(भोपाल से सरस्वती चंद्र की रिपोर्ट)

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