एक ऐसी महिला विधायक जिसे न जिला मिला न किला बचा, कुर्सी और पार्टी के बीच में लटक गईं निर्मला?
Bina MLA Nirmala Sapre भोपाल: राजनीति में एक एक कदम फूंक-फूंक कर रखने का रिवाज है। एक बार में ही लंबी छलांग लगाने वाले अक्सर अधर में लटक जाते हैं। यही हाल इस समय मध्य प्रदेश की एक पहली बार की महिला विधायक का देखने में आ रहा है। बीना से विधायक निर्मला सप्रे (MP Congress MLA Nirmala Sapre) 2023 में पहली बार विधायक बनीं चुनाव सप्रे ने कांग्रेस पार्टी से जीता लेकिन लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी में भरे मंच पर सीएम के सामने शामिल हो गईं।
निर्मला सप्रे की सदस्यता पर रार!
बीजेपी के आने के बाद से ही लगातार निर्मला सप्रे की राजनीति अधर में लटकी दिखाई दे रही है। वैसे तो यह मामला पुराना हो चुका है, लेकिन फिर एक बार सुर्खियों में तब आया जब निर्मला सप्रे ने दल बदल (Bina MLA Nirmala Sapre ) को लेकर अपना जवाब विधानसभा में भेजकर कहा कि उन्होंने दलबदल नहीं किया वो तो कांग्रेस के ही साथ हैं।
कमल थामते वक्त निर्मला सप्रे की शर्तें
बीना के विकास से जुड़ी 15 मांगों के साथ कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में एंट्री ली। अब न जिला मिला, न किला बचा और तो और कुर्सी भी खतरे में पड़ गई। बीना से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची निर्मला ने 8 महीने में ही पलटी मार दी और सीएम मोहन यादव की मौजूदगी में कांग्रेस छोड़ बीजेपी का पटका पहन लिया। बीजेपी ज्वाइन करने के लिए निर्मला ने बीजेपी के सामने 15 शर्तें रखी थी, जिसमें बीना को सागर से अलग कर नया जिला बनाने बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव जिताने समेत कई मांगें शामिल थीं।
लंबी है मांगों की फेहरिस्त
बीना नदी परियोजना में 22 गांवों को बढ़ाकर 151 गांव जोड़े जाएं, खुरई तहसील में आने वाली बीना विधानसभा की 25 पंचायतों को बीना तहसील में जोड़ा जाए, खिमलासा को पूर्ण तहसील का दर्ज मिले, मंडी बमौरा को नगर पंचायत का दर्ज मिले, बीपीएल, रिफाइनरी और जेपी पावर प्लांट जो में स्थानीय लोगों को 50% आरक्षण, बीना में पेट्रोकेमिकल कोर्स के साथ पॉलिटेक्निक कॉलेज, बीना विधानसभा के शहरी क्षेत्र के आस पास 40 किलोमीटर का रिंग रोड समेत कई मांगें शामिल हैं।
लंबे समय से चली आ रही जिला बनाने की लड़ाई
इसी दौरान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव 9 सितंबर को बीना पहुंचते हैं। ये पहले ही भांप लिए गया था कि जब सीएम बीना पहुंचेंगे तो जिला बनाने की मांग तेजी से उठेगी। इसलिए 4 बार सीएम का दौरा निरस्त हुआ और जब हुआ भी तब तक परिसीमन आयोग गठित हो चुका था। यानी की घोषणा संभव ही नहीं थी। गौर रहे कि सागर जिले की 2 अहम विधानसभाएं खुरई और बीना के बीच जिला बनाने की लड़ाई पुरानी है।
आखिर कहां फंसा है पेंच?
खुरई में बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह (Former MP Home Minister Bhupendra Singh) जिला बनाने पर अड़े हैं। ऐसे में सरकार बीना को जिला बनाने की निर्मला की जिद भला पूरी कैसे करती। जिले की इसी लड़ाई में भूपेंद्र समर्थक कई बार खुरई बंद भी कर चुके हैं। यही वजह रही कि खुरई की जिद में बीना भी अटक गया और सागर का परिसीमन नहीं हो सका।
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वहीं, बीना को जिला बनाने का मामला अटका तो निर्मला भी नाराज होकर बीजेपी से झटक गईं। निर्मला ने बीजेपी के लिए काम बंद कर दिया नाराज आलाकमान ने बीना उपचुनाव के लिए निर्मला की जगह किसी अपने को टिकट देने पर विचार शुरू कर दिया। यह बात निर्मला को और नागवार गुजरी और वे बीजेपी की सदस्यता लेने के बाद भी मुकर गईं। विधानसभा के नोटिस पर निर्मला ने जवाब दिया है कि उन्होंने कभी बीजेपी की सदस्यता ली ही नहीं। वे अब भी कांग्रेस की कर्मठ कार्यकर्ता हैं।
संकट में निर्मला सप्रे की विधायकी!
हालांकि सरकार ने निर्मला की ज्यादातर मांगें पूरी कर दीं, लेकिन जिला बने बिना कार्यकर्ता और साथियों के विरोध ने उन्हें उपचुनाव लड़ने से पीछे हटा दिया। निर्मला सप्रे की हालत अब ऐसी हो चुकी है कि न तो उनको जिला मिला न किला बचा और विधायकी भी संकट में आ गईं। निर्मला का सम्मान न तो क्षेत्र में बचा न कार्यकर्ताओं में और न पार्टी में उनकी पहुंच रही। अब भले ही बीजेपी या कांग्रेस उन्हें पार्टी में वापस भी ले ले, लेकिन निर्मला का सियासी दबदबा अब दम तोड़ने के कगार पर है।
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