Judge Rohit Arya Joins BJP: सोशल मीडिया पर चर्चित MP हाईकोर्ट के पूर्व जज रोहित आर्य बीजेपी में शामिल

Judge Rohit Arya Joins BJP: सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा चर्चित जजों में से एक जस्टिस रोहित आर्य (Justice Rohit Arya) अपनी सेवानिवृत्ति के तीन महीने बाद ही भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) में शामिल हो गए हैं। रोहित...
judge rohit arya joins bjp  सोशल मीडिया पर चर्चित mp हाईकोर्ट के पूर्व जज रोहित आर्य बीजेपी में शामिल

Judge Rohit Arya Joins BJP: सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा चर्चित जजों में से एक जस्टिस रोहित आर्य (Justice Rohit Arya) अपनी सेवानिवृत्ति के तीन महीने बाद ही भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) में शामिल हो गए हैं। रोहित आर्य उस समय सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मामले में कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी (Munawar Farooqui) को जमानत देने से इनकार कर दिया। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को खारिज कर दिया था। आइए पूरी खबर के बारे में विस्तार से जानते हैं।

अधिकारियों से लेकर कलेक्टरों को लगाते थे फटकार

सोशल मीडिया पर मशहूर जस्टिस आर्य कलेक्टरों, पुलिस अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों को डांटते हुए कोर्ट क्लिप्स को लोग बड़े चाव से देखते हैं। दूध में मिलावट को लेकर नौ जिला कलेक्टरों को डांटने से लेकर सरकारी अधिकारियों की ढिलाई के खिलाफ बोल्ड बयानबाजी तक सोशल मीडिया पर उनके कई वीडियो हैं। जस्टिस आर्य कई मामलों की सुनवाई करते हुए अधिकारियों को खास अंदाज में डांटते और फटकारते नजर आते रहे हैं।

बीजेपी कार्यालय में ग्रहण की सदस्यता

पूर्व जज आर्य ने मध्य प्रदेश के भोपाल में बीजेपी के राज्य कार्यालय में एक कार्यक्रम में डॉ. राघवेंद्र शर्मा से अपनी सदस्यता ग्रहण की। आर्य का जन्म वर्ष 1962 में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1984 में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया। इसके बाद वह 2003 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता बन गए थे। 2013 में उन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। 2015 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। वह तीन महीने पहले ही 27 अप्रैल, 2024 को सेवानिवृत्त हुए थे।

मुनव्वर फारुकी केस से मिली राष्ट्रीय पहचान 

वैसे तो जज आर्य सोशल मीडिया पर पर छाए रहते हैं, लेकिन उन्हें सबसे बड़ी पहचान कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी के मामले से मिली। दरअसल, फारुकी और नलिन यादव को उन्होंने जमानत देने से साफ इनकार कर दिया था। उन्होंने तर्क दिया था कि संविधान के अनुसार भाषाई, धार्मिक और क्षेत्रीय विविधताओं के बावजूद सद्भाव और सामान्य भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना प्रत्येक नागरिक और राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है। ऐसा उल्लंघन करना स्वीकार योग्य नहीं है। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनके फैसले को पलटते हुए फारुकी को जमानत दे दी थी।

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