God Wore Woollen Clothes: भगवान को लगने लगी ठंड, पहने ऊनी वस्त्र, भोग में तिल और गुड़ की गजक
God Wore Woollen Clothes: ग्वालियर। ठंड का सीजन शुरू हो गया है। लोगों के संदूकों में बंद गर्म कपड़े निकल आए। क्योंकि, ग्वालियर में मौसम का पारा गिरकर दस डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया और लोगों को ठंड से बचाव के लिए पहनावा से लेकर खान-पान तक में परिवर्तन करना पड़ा। मौसम की मार इंसान ही नहीं बल्कि भगवान तक को झेलनी पड़ रही है। इसलिए ग्वालियर में मौसम बदलते ही भगवान के पहनावा से लेकर खानपान यानी भोग प्रसादी तक में भारी बदलाव हो गया।
मंदिर में गले हीटर
मौसम में ठंडक घुलते ही ग्वालियर में सनातन धर्म मन्दिर, अचलेश्वर मन्दिर, राम मंदिर से लेकर सभी प्रमुख मंदिरों में आरती का समय बदलकर एक घण्टे पहले हो गया है, ताकि रात में ठंड बढ़ने से पहले भगवान को शयन कराया जा सके। मंदिरों में भगवान के वस्त्र तो बदले ही गए है बल्कि गर्भगृह में हीटर से लेकर ब्लोवर तक लगाए गए। अब भगवान को ऊनी वस्त्र पहनाए जाना शुरू हो गए हैं। इसके अलावा अलग-अलग मंदिरों में भगवान को रोज सुबह-शाम लगने वाले भोग प्रसादी के मेनू में भी एकदम बदलाव कर दिया गया। उसमें गर्माहट देने वाले सामान जैसे बाजरा और गुड़ से बने पकवान शामिल किए गए।
नित्यक्रिया में भी हुआ बदलाव
सनातन धर्म मंदिर के मुख्य पुजारी रमाकांत शास्त्री बताते हैं कि सर्दी शुरू होते ही भगवान की नित्य क्रिया में पूरा ही परिवर्तन हो गया। भगवान को अब गर्म वस्त्र पहनाए जा रहे हैं। रात को शयन के समय ऊनी गद्दा और रजाई, शॉल, टोप आदि की विशेष व्यवस्था की जा रही है। पुजारी शास्त्री बताते हैं कि सर्दी के कारण भगवान की रसोई में भी बड़ा बदलाव किए गए हैं। अब भोग में कभी बाजरा के तो कभी मैथी और आलू गोभी के परांठे होते हैं। दूध अब केसरयुक्त चढ़ाया जाता है ताकि ठाकुर जी को सर्दी न लगे। इसी तरह श्रृंगार और दर्शन व्यवस्था में भी परिवर्तन आया है।
भगवान के पट जो पहले सुबह 5 बजे खुलते थे, अब 6 बजे खुलते हैं। शाम को पहले 5 बजे खुलते थे अब 4 बजे खुलते हैं और मंदिर पहले साढ़े नौ बजे बन्द होता था, अब साढ़े आठ बजे बंद हो जाता है। भक्त भी अब प्रसाद के रूप में गर्माहट देने वाले सामान लेकर पहुंच रहे हैं। सनातन धर्म मंदिर में अपने जन्मदिन पर आशीर्वाद लेने पहुंची भावना तोमर कहती हैं कि सर्दी का सीजन है, इसलिए वे भगवान पर चढ़ाने के लिए गजक लेकर आई हैं। क्योंकि, तिल और गुड़ से बनी गजक सर्दी में गर्माहट देती है। जैसे हम लोग अपना आहार बदलते हैं तो भगवान का भोग-प्रसाद भी बदलते हैं।
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