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Gwalior News: सीएम ने ग्वालियर के JC मिल मजदूरों की देनदारी देने का किया ऐलान, काफी लंबी है संघर्ष की कहानी

Gwalior News: ग्वालियर। आज हम आपको एक ऐसे मिल मजदूरों के संघर्ष की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने लगभग 30 साल तक अपने मेहनताने की लड़ाई लड़ी। मजदूरों ने अब जाकर राहत की सांस ली है। पिछले हफ्ते मध्य...
07:00 PM Sep 02, 2024 IST | Suyash Sharma

Gwalior News: ग्वालियर। आज हम आपको एक ऐसे मिल मजदूरों के संघर्ष की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने लगभग 30 साल तक अपने मेहनताने की लड़ाई लड़ी। मजदूरों ने अब जाकर राहत की सांस ली है। पिछले हफ्ते मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव में मजदूरों की देनदारी देने का ऐलान किया है।

साल 1990 के दशक में ग्वालियर के जेसी मिल पर रौनक और बहार हुआ करती थी। हजारों की संख्या में यहां मजदूर और कर्मचारी काम किया करते थे। रोजगार देने के मामले में जेसी मिल इस अंचल ही नहीं बल्कि प्रदेश का सबसे बड़ा कॉटन मिल था लेकिन 1990 के दशक में मजदूर और मिल के बीच विवाद खड़े होने लगे। और फिर मिल को कई दिक्कतों की वजह से बंद करना पड़ा।

मिल से चल रहा था लोगों का परिवार

ग्वालियर (Gwalior News) के JC मिल में बंद होने के दौरान 8,037 कर्मचारी काम करते थे। इस मिल से लगभग 40 हजार लोगों का भरण पोषण हो रहा था। उस दौर में जेसी मिल की रौनक देखते ही बनती थी। लोगों के चेहरे पर खुशियां होती थी और मिल की जगमगाहट इस पूरे अंचल में काम करने वाले लोगों के लिए रोजगार की बड़ी रोशनी थी। मिल के बंद होने पर कई कर्मचारियों का भुगतान अटक गया, जिसे अब सरकार ने चुकाने की घोषणा की है।

भुगतान में हैं कई उलझनें

भुगतान के मामले में कई पेंच है, जिन्हें सरकार को सुलझाना है। यह भुगतान जेसी मिल की जमीन सहित अन्य संपत्ति का आकलन कर किया जाना है। साल 1992 में जेसी मिल की बिजली काटकर बंद करने के संकेत दिए गए। इसके बाद भी मिल मजदूर हाजिरी लगाने के लिए आते रहे। 1998 में कोर्ट ने जेसी मिल को अधिकारिक रूप से बंद घोषित कर दिया। मिल बंद के समय मिल में 8037 कर्मचारी कार्यरत थे।

जेसी मिल परिसर की कुल जमीन 130 से 140 बीघा है और जेसी मिल के क्वार्टरों पर मिल मजदूरों का कब्जा है। लाइन नंबर-एक, तीन व आठ के मिल मजदूरों को पट्टे भी मिले हैं। मजदूरों के साथ बैंक की भी देनदारी है। 500 से अधिक मजदूरों ने अपने बकाया भुगतान के लिए कोर्ट में भी केस दायर किए हैं लेकिन सरकार की मंशा अब इस संघर्ष की कहानी को समाधान करने की है। मजदूर के हाथ में जब पैसा आएगा तो वह सरकार के साथ खड़ा भी हो सकता है।

इंदौर का हुकुमचंद मिल का मामला

इंदौर की हुकमचंद मिल 12 दिसंबर 1991 को बंद हुई थी। तब से 5,895 कर्मचारी सदस्यता शुल्क का भुगतान करने के लिए भटक रहे हैं। हाउसिंग बोर्ड द्वारा मिल देनदारों का 425 करोड़ 89 लाख रुपए भोपाल स्थित बैंक में जमा कराया जा चुका है। मुख्यमंत्री की मंजूरी मिलने के बाद अब 26 दिसंबर से श्रमिकों के खाते में भुगतान भेजना शुरू होने की संभावना है। उसी की तर्ज पर CM डॉक्टर मोहन यादव ने ग्वालियर के मजदूरों की देनदारी देने का ऐलान कर दिया। इस खबर से मजदूरों में भी काफी खुशी है।

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