Gwalior News: मानवीय प्रयासों से 'मुरार नदी' को मिलने जा रहा है नया जीवन
Gwalior News: नदियां हमारी प्रकृति की सबसे अमूल्य धरोहर हैं और इन्हीं से ही हमारा जीवन है। देश में कई नदियां जिम्मेदारों की अनदेखी और लापरवाही के चलते सूख चुकी हैं तो कुछ सूखने के कगार पर हैं। हालांकि, कुछ जागरूक लोगों के चलते कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जब सूख चुकी नदियों को जीवित किया गया है। आज हम आपको ग्वालियर की मुरार नदी (Murar River) के बारे में बताने जा रहे हैं जो लगभग खत्म हो चुकी थी, लेकिन अब मानवीय प्रयासों के चलते इसके जिंदा होने की उम्मीद फिर से जग उठी है।
जन सहभागिता से संभव हो रहा कार्य
मध्यम गति से प्रवाहित हो रही इस नदी का जल देखने में गंगा और यमुना से कम नहीं है। यह ग्वालियर की मुरार नदी है जो वैशाली नदी की सहायक नदी के रूप में जानी जाती है। लोगों के कड़े संघर्ष और जन प्रतिनिधियों की मेहनत के बाद यह नदी ग्वालियर के एक किलोमीटर हिस्से में प्रवाहित होती दिखाई दे रही है। नदी की सुंदरता से प्रफुल्लित लोगों ने अब इस कार्य को गंभीरता के साथ आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है। इस कार्य में बड़ी संख्या में लोग जुड़कर अपनी भागीदारी निभा रहे हैं।
रमौआ बांध से छोड़ा गया पानी
जो तस्वीर हम आपको दिखा रहे हैं यह मुरार के हुरावली इलाके की है जहां एक सीमित क्षेत्र में इस नदी को जीवित करने का प्रयास किया गया है। शहर की सीमा पर बने रमौआ बांध से इस नदी में पानी छोड़ा गया है जिससे कि जल को प्रवाहित होने के लिए प्राकृतिक स्वरूप मिल सके। सूख चुकी मुरार नदी अतिक्रमण की चपेट में है। इसे नाले से नदी बनाने में कड़ा संघर्ष करना पड़ा है। कई बड़े नेता, विधायक, अधिकारी और सरकार के प्रतिनिधियों के लिए इस नदी को जिंदा करना चुनौती भरा काम था।
पूर्व विधायक की भूमिका रही महत्वपूर्ण
पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल ने अपने जीवन के मिशन के रूप में मुरार नदी को बचाने में खूब पसीना बहाया है। जिस रूप में यह नदी आज हमें दिखाई दे रही है उसके पीछे केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रियों से लेकर कई अधिकारियों ने योजना बंद तरीके से काम किया तब कहीं जाकर नदी को जिंदा करने की मुहिम शुरू की गई। जिला प्रशासन, नगर निगम केंद्र और राज्य सरकार के अलावा इस नदी को बचाने के लिए आम लोगों का श्रम सबसे महत्वपूर्ण रहा है।
नदी को नया जीवन देने के प्रति लोगों को एकजुट करने का बीड़ा उठाने वाले मुन्नालाल गोयल इसे उद्गम स्थल से अंतिम छोर तक इसी तरह जल से भरा देखना चाहते हैं। उनका सपना है की नदी के दोनों ओर हरे-भरे पेड़ और पक्की सड़क हो। नदी के कुछ क्षेत्र को दोनों ओर जाली लगाकर सुरक्षित किया जाए। नदी में मिलने वाले सीवर और नालों के लिए कुछ जगह पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएं।
साढ़े तीन किमी हिस्से में बनाई जाएगी दीवार
मुरार नदी को पुनर्जीवित करने के लिए 12 किलोमीटर एरिया में पैचिंग कार्य किया जाना है, जबकि साढ़े तीन किलोमीटर हिस्से में दीवार भी बनाई जाएगी, ताकि नदी में कोई गंदगी न फेंक सके। केंद्र सरकार के 'नमामि गंगे प्रोजेक्ट' के तहत इस नदी के जीर्णोद्धार के लिए लगभग 40 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है। इस प्रोजेक्ट के तहत मुरार नदी को सुंदर व रमणीय स्थल में परिवर्तित करने के लिए कई कार्य किए जाएंगे, लेकिन इस पूरे प्रोजेक्ट में सबसे अहम काम है नदी के अंदर सीवर व नालों की गंदगी को रोकना है।
इन चुनौतियों से पार पाना होगा मुश्किल
मुरार नदी के अंदर 24 नाले मिलते हैं, साथ ही थाटीपुर व मुरार के काफी हिस्से की सीवरेज सीधे नालों के जरिए बहकर मुरार नदी में आती है। भारत के जल शक्ति मंत्रालय की ओर से इस नदी का जीर्णोद्वार करने के लिए एक प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया है। लगभग 40 करोड़ की राशि से इस नदी को जीवित करने की योजना बनाई गई है, लेकिन दिल्ली से जिस कंपनी को यह काम दिया गया है वह इसे गंभीरता से नहीं ले रही।
अतिक्रमण के चलते सिकुड़ गई नदी
अतिक्रमण और कचरा डंप होने के कारण 80 फीट चौड़ी मुरार नदी सिकुड़ गई है। कड़े संघर्ष के बाद नदी का कुछ हिस्सा अतिक्रमण से मुक्त कराकर जीवित अवस्था में लाने का बड़ा प्रयास किया गया है। लगभग 12.5 किलोमीटर तक बहने वाली इस नदी को ग्वालियर की जीवनदायनी नदी कहा जाता था क्योंकि इससे बड़े क्षेत्र में जलस्तर ऊपर रहता था। मुरार नदी के स्वरूप को अगर हकीकत में एक मिशन के तहत सुधारा जाता है तो उससे एक क्षेत्र की पानी समस्या का समाधान कुछ हद तक दूर हो सकेगा।
अतिक्रमण ने रोक दिया पानी का बहाव
नदी के सहारे ही रमौआ डैम से मुरार नदी में पानी छोड़ा जाता था और वह पानी जडुरूआ डेम में पहुंचता था, लेकिन कैचमेंट एरिया व नदी किनारे किए गए अतिक्रमण ने पानी के बहाव को ही रोक दिया है, जिसके कारण जडेरूआ डेम सूखा रहता है। इससे डीडी नगर इलाके में जल स्तर काफी नीचे पहुंच गया है। अगर जडेरूआ डैम पानी से लबालब रहने लगे तो इलाके में जलस्तर ऊपर आ सकेगा, जिससे पानी की समस्या का समाधान हो सकता है, लेकिन इस दिशा में प्रशासन क्या कदम उठाता है उसको लेकर फिलहाल मंथन चल रहा है। पहली दिक्कत अतिक्रमण को हटाने की सामने आ रही है।
नदी का ऐतिहासिक महत्व भी
सन 1754 से पूर्व की यह नदी सातऊं की पहाडिय़ों से निकलती थी। इस नदी पर चार बांध कछाई, जड़ेरूआ, बहादुरपुर, गुठीना पर बने हैं। यह नदी जड़ेरूआ से रमौआ बांध के रास्ते में डिफेंस एरिया नाला, काल्पी ब्रिज, नदी पार टाल, गांधी रोड, मेहरा गांव नाला, नॉर्थ मेहरा गांव नाला, साउथ हुरावली ब्रिज, पृथ्वी नगर, सिरोल गांव, डोंगरपुर रोड, अलापुर नाला, डोंगरपुर रोड जंक्शन, बायपास ब्रिज से गुजरती है। 1985 से पूर्व इस नदी में साफ पानी बहता था।
नदी को नया जीवन देने के लिए कड़े कदम भी जरूरी
समय बीतने के साथ प्रशासन की अनदेखी से यह नदी नाला बन गई है। कड़े संघर्ष के बाद इसे पुनर्जीवित करने की बड़ी पहल की गई है। यानी जनता की जागरूकता और जनप्रतिनिधियों की एकता ने इस नदी को कुछ हिस्से में जिंदा तो कर दिया, लेकिन यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। नदी को उद्गम स्थल से अंतिम छोर तक बहाने के लिए कई घरों पर बुलडोजर चलाने होंगे। इसकी चौड़ाई को भी 5 फीट से बढ़ाकर 80 फिट करना होगा। साथ ही उद्गम स्थल के बांध में लगातार पानी छोड़ना पड़ेगा तभी नदी में जल की धारा दिखाई देगी।
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