Gwalior Petha News: मीठे में अब पेठा हो जाए! मावे में मिलावट के बाद 10 साल में बढ़ा पेठे का कारोबार, गर्मी आते ही लगातार बढ़ रही डिमांड
Gwalior Petha News ग्वालियर: क्या आपको पता हैं कि ताजमहल से भी पुरानी है पेठे की कहानी। शाहजहां की एक मांग पर बनी थी यह लोकप्रिय मिठाई। इस लोकप्रिय मिठाई को देश ही नहीं विदेश में भी बड़े चाव के साथ खाया जाता है। अमूमन जब भी पेठे की बात की जाती है तो मुंह में पानी भर आता है और सबसे पहले जेहन में आगरा शहर का नाम दिमाग में आता है, लेकिन अब ग्वालियर में बने पेठे की मिठास इंदौर, भोपाल और जबलपुर ही नहीं बल्कि नागपुर और कानपुर तक पहुंच रही है। वर्तमान में यह पेठा ग्वालियर के दाना ओली में 35 फ्लेवरों में तैयार किया जा रहा है। कुछ फ्लेवर तो सालों से पेठे का व्यापार करने वाले व्यापारियों ने कारीगरों की मदद से खुद ही ईजाद किए हैं
किस सीजन में कितनी खपत?
व्यापारियों के अनुसार पेठे की खपत सबसे ज्यादा गर्मियों के सीजन में होती है, जबकि सर्दियों में इसकी सेल घटकर 10% तक रह जाती है। पेठे का कारोबार संभाल रहे व्यापारियों का कहना है कि मावे की मिठाई में लगातार मिलावट की चर्चा पिछले 10 साल से हो रही है, तब से ही पेठे की खपत में बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसके बाद पेठा बनाने वाली व्यापारियों ने इसके फ्लेवर पर काम करना शुरू कर दिया। यहां के पेठा व्यापारी अलग-अलग शहरों में 8 और 10 किलो के डिब्बे में पेठा पैक कर हर रोज सप्लाई कर रहे हैं, जबकि गर्मियों में तो स्थिति वेटिंग की बनी रहती है। सामान्य दिनों में जो ऑर्डर को 3 दिन में पूरा कर पाते हैं, उसकी सप्लाई गर्मियों में 5 से 6 दिनों में कर पाते हैं।
क्या है ग्वालियर में पेठे के दाम?
ग्वालियर में बिकने वाली पेठे की कीमत 110 रुपए से लेकर ₹500 तक होती है, जबकि यह पेठा दूसरे शहरों में इन दामों से अधिक दामों में भेजा जाता है। विक्रेताओं का कहना है कि जो पेठा ग्वालियर में 110 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है, वह भोपाल के लिए ₹180 किलो के हिसाब से भेजा जाता है। वहीं, नागपुर में 250 रुपए प्रति किलो और कानपुर में ₹300 प्रति किलो के हिसाब से भेजा जाता है।
कहां से आता है कच्चा पेठा?
जब इतने बड़े पैमाने पर पेठा तैयार होता है तो सवाल यह है कि आखिर कच्चा पेठा कहां से आता है। विक्रेता कच्चा पेठा सर्दी के मौसम में विक्रेता ₹10 किलो के हिसाब से शिवपुरी और विजयपुर से मंगवाते हैं। इन दोनों जगह के कच्चे पेठे से बनी मिठाई में स्वाद अधिक होता है, जबकि फरवरी माह में बेंगलुरु का पेठा शुरू हो जाता है जो जुलाई अगस्त तक आता है।
कितने फ्लेवर में तैयार होता है स्वादिष्ट मीठा-पेठा?
बता दें कि पेठे के हर फ्लेवर को तीन कैटेगरी में बांटा गया है। पहले कैटेगरी में सूखे दूसरे (Petha business in Gwalior) में चाशनी वाला और तीसरी कैटेगरी में प्रीमियम क्वालिटी का पेठा रखा गया है। इस तरह से लगभग 100 तरह की वैरायटी का पेठा ग्वालियर में बनाया जा रहा है। विक्रेताओं का कहना है कि यहां से पानी ग्लोरी, मलाई चाप, रसभरी, इलायची, अंगूर, काजू, संतरा, पेठा, सैंडविच और मलाई मुरब्बा दूसरे शहरों में सबसे ज्यादा सप्लाई किया जाता है। गर्मियों में 250 से 300 किलो पेठा हर रोज शहर में खपत हो जाता है।
किसने की थी स्वादिष्ट पेठे की खोज?
ऐसा कहा जाता है कि पेठे की खोज का श्रेय मुगल बादशाह शाहजहां को जाता है। आगरा में शाहजहां की शासन काल के दौरान इस मिठाई की खोज हुई थी। माना जाता है कि जब ताजमहल का निर्माण कराया जा रहा था, तब बादशाह ने अपनी रसोइयों को एक ऐसी मिठाई बनाने को कहा जो ताजमहल की तरह शुद्ध साफ और सफेद हो बादशाह के इस आदेश को पूरा करते हुए शाही रसोई ने पेठे यानी सफेद कद्दू की मदद से इस मिठाई को तैयार किया था। इसे बनाने के लिए उन्होंने सफेद कद्दू को टुकड़ों में काटकर उसे गर्म पानी में उबाला और फिर चीनी मिलाकर उसे मीठा स्वाद दिया गया। इस तरह सफेद कद्दू से बनी यह मिठाई तैयार हुई और उसे पेठा नाम दिया गया। कहा जाता है कि ताजमहल के निर्माण में लगे मजदूरों को भी खाने के लिए या मिठाई दी जाती थी। इसे खाकर उन्हें काम करने के लिए एनर्जी भी मिलती थी।
(ग्वालियर से सुयश शर्मा की रिपोर्ट)
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