यूनिवर्सिटी कैंपस में दिखेगा मिट्टी का घर, चूल्हे की रोटी और कुएं का पानी, 40 बीघा जमीन पर तैयार हो रहा गांव
Gwalior University Campus Village ग्वालियर: बदलते समय के साथ-साथ शहर क्या ग्रामीण परिवेश में भी बदलाव आने लगा है। गांव से भी अब मिट्टी के घर, कुएं आदि न जाने क्या-क्या सब लुप्त होते जा रहे हैं। मिट्टी की सौंधी खुशबू, तालाब का किनारा, हरे भरे पेड़ों का जंगल और माटी के घर-आंगन ये चीजें गांव की याद दिलाती हैं। आधुनिकता के चक्कर में अब ये नजारे गुम होते जा रहे हैं। आज शहरों में रहने वाली युवा पीढ़ी ने तो गाव देखा तक नहीं है। लेकिन, भारत की संस्कृति, भाव और प्रकृति के खजाने से भरपूर गांव की एक झलक जल्द ही मध्य प्रदेश के ग्वालियर (Gwalior University Developing Village) में देखने को मिलेगी। ग्वालियर का कृषि विश्वविद्यालय 40 बीघा जमीन पर एक कृत्रिम गांव तैयार करा रहा है।
यूनिवर्सिटी कैंपस में मिट्टी का घर, तालाब, खेत सब कुछ
शहर में बसे लोगों को अब गांव का माहौल वहां की प्राकृतिक खूबसूरती से रू-ब-रू कराने के साथ साथ शोध और इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिहाज से ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ने इस अनूठी पहल की शुरुआत की है। यूनिवर्सिटी की लगभग 8 हेक्टेयर जमीन पर गांव को तैयार किया जा रहा है। इस गाव में खेत तैयार किए गए हैं, जिनमें मौसमी फसलें भी उगाई जाएंगी। इस गांव में मिट्टी के कच्चे घर भी बनाए जा रहे हैं। इसके अलावा इस गांव में तालाब भी तैयार किए गए हैं। इन तालाबों में जल संचय किया जाएगा। साथ ही फसल लगाने के लिए भी इस जल का उपयोग किया जाएगा।
यूनिवर्सिटी कैंपस में गांव के माहौल से रू-ब-रू होंगे छात्र और लोग
वहीं, विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अरविंद कुमार शुक्ला ने कहा है, "खेती बाड़ी गांव में होती है और इसके बारे में ग्रामीण तो जानते हैं, लेकिन जो लोग शहरों से आते हैं जिन्हें गांव जाने का मौका नहीं मिलता। वैसे छात्र या शहरी लोग विश्व विद्यालय के इस मॉडल (Gwalior University Campus Village) से जान सकेंगे कि गांव में खेती कैसे होती है। गांव कैसे होते हैं। पुराने समय में गांव में कच्चे घर कैसे हुआ करते थे। मुख्य रूप से हमारे पूर्वज गांव के माहौल में कैसे रहा करते थे। विश्वविद्यालय यह दिखाना चाहता है, क्योंकि यह सब हमारे इकोसिस्टम से संबंधित हैं।"
गांव से गायब हुए मचान भी दिखेंगे
कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु ने कहा कि यूनिवर्सिटी कैंपस में स्थित इस मॉडल में खास आकर्षण ट्री हाउस या मचान भी है। उन्होंने कहा कि गांव मीटर सुरक्षा तंत्र का अहम हिस्सा मचान होता है, जिसपर दूर से ही किसी भी गतिविधि को देख जा सकता है। लेकिन, समय के साथ-साथ लोग इसके बारे में भूल चुके हैं। इसलिए यहां एक मचान भी बनाया जा रहा है जिस पर यूनिवर्सिटी का गार्ड भी बैठेगा और ईकोटूरिज्म के तहत आने वाले सैलानी भी देख सकेंगे। उन्होंने कहा कि, इस कैंपस को नए तरीके से डेवलप किया जा रहा है जो एक ऑक्सीजन रिच जोन बनेगा जो करीब डेढ़ किलोमीटर का होगा।
मिट्टी के घर में चूल्हे की रोटी का स्वाद ले सकेंगे पर्यटक
कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु ने बताया कि, विश्वविद्यालय का यह कृत्रिम गांव कई मायनों में फायदेमंद होगा। एक तो यहां ग्रामीण परिवेश की झलक देखने को मिलेगी। वहीं, यहां आने वाले छात्रों को शोध करने में भी आसानी होगी। इसके साथ ही इस गांव में बनाए जा रहे मिट्टी के घरों में पर्यटक रुक भी सकेंगे। साथ ही चूल्हे पर बने भोजन का स्वाद भी ले सकेंगे। इस गांव में पर्यटकों को कुएं का शुद्ध पानी भी मिलेगा। यहां आने वाले पर्यटक तालाब के किनारे बैठकर शांति का अनुभव भी कर सकेंगे। गांव में मिलने वाला शुद्ध दूध भी यहां मिल सकेगा, क्योंकि फसलों के साथ-साथ यहां गांव की तरह पशुपालन की भी व्यवस्था की जाएगी।
6 महीने बनकर तैयार होगा गांव
पर्यटन और छात्रों के लिए यह गांव काफी फायदेमंद साबित होने वाला है। बेहतरीन सोच के साथ तैयार हो रहा यह कृत्रिम गांव (Rajmata Vijayaraje Scindia Agricultural University) लगभग 6 महीने में बनकर तैयार हो जाएगा। इसके बाद इसे शोधार्थियों, विद्यार्थियों और ईकोटूरिज्म के लिए भी खोल दिया जाएगा। हालांकि, अभी से लोगों में इस कृत्रिम गांव को लेकर लोगों में खासा उत्साह है।
(ग्वालियर से सुयश शर्मा की रिपोर्ट)
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