Gwalior White Stone: सफेद पत्थर का काला कारोबार, निरंकुश खनन माफिया ने व्यापारियों की रोजी-रोटी छीनी, सरकार भी खामोश!
Gwalior White Stone: ग्वालियर। कभी अपने बीहड़ों और डाकुओं के लिए प्रसिद्ध चंबल इन दिनों एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। इसकी वजह है यहां के पहाड़ जो सोना उगलने वाली खान बन चुके हैं। दूर से दिखने वाले ये पहाड़ अब खोखले हो गए हैं। इन पहाड़ों से निकलने वाला सफेद पत्थर, जिसे देश-विदेश में टिंट-मिंट के नाम से जाना जाता है, खनन माफिया की नजर में आ चुका है। इस सफेद पत्थर (Gwalior White Stone) का व्यापार देश में नहीं बल्कि विदेशों में होता है।
विदेशों में एक्सपोर्ट होते ही सीधे रुपयों से डॉलर में हो जाता है कन्वर्ट
अगर हम चंबल अंचल से इस पत्थर का व्यापार करने वालों की बातों पर यकीन करें तो इस चबंल अंचल से सालाना 500 करोड़ से अधिक का सफेद पत्थर विदेश (ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इग्लैंड और अमरीका) में सप्लाई होता है। यहां जो पत्थर का टुकडा 100 रूपए का होता है, वह यूके जाते-जाते डॉलरों में तब्दील हो जाता है। लेकिन अब हालात यह है कि इस सफेद पत्थर पर माफियाओं की नजर है और लगातार यह माफिया अवैध उत्खनन करने में जुड़े हैं। इसमें स्थानीय प्रशासन से लेकर तमाम बड़े राजनेता भी संलिप्त हैं इसलिए यहां पर पत्थर माफिया बेखौफ होकर उत्खनन कर रहे हैं।
यहां के पत्थर उद्यमियों के सामने खड़ा हुआ रोजी-रोटी का संकट
मध्य प्रदेश स्टोन इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष उपेन्द्र तोमर कहते हैं कि यही वजह है कि इस अंचल में अवैध पत्थरों का काला कारोबार जोर- शोर से फल-फूल रहा है। जिसके चलते खनन मफिया, इस पत्थर के लिए एक-दूसरे के खूने के प्यासे होने के साथ- साथ जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन की नाक में दम किए हुए हैं। वही पत्थरों के इस काले कारोबार से जो वैध खदाने चलती हैं, उन लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट भी मंडरा रहा है। क्योंकि जो पत्थर लीगल तरीके से इनके पास पहुंचता था, वह पत्थर अब खनन माफियाओं के द्वारा दूसरी स्टेट यानि राजस्थान भेजा जा रहा है। इसकी वजह से करोड़ों रुपयों के पत्थर (Gwalior White Stone) का कारोबार अब सिर्फ लाखों में सिमट कर रह गया है।
IPS अधिकारी को गंवानी पड़ी अपनी जान
ऐसा नही है कि इस पत्थर के कारोबार का लेखा-जोखा सरकार के पास नही है। सरकार और उसके नुमांइदे इस पत्थर के काले कारोबार को रोकने के लिए ऐडी-चोटी का जोर लगा चुके हैं, लेकिन उन्हे सिर्फ नाकामयाबी मिली। इसके चलते सरकार के होनहार IPS जैसे अधिकारियों ने अपनी जान खनन मफियों के द्वारा गंवा दी। लेकिन शायद सरकार उस जांबाज अफसर की शहादत को भी भुला चुकी है। अब जिनके पास इस खनन को रोकने की जिम्मेदारी है, वह सिर्फ जुबानी बात करने के अलावा जमीनी स्तर पर काम करने में नाकामयाब है।
सत्ताएं बदलती हैं, सत्ता के रहनुमा बदलते हैं.... विकास की तस्वीर बदलती है, लेकिन ग्वालियर चंबल में माफियाओं को लेकर कभी कुछ नहीं बदलता। क्योंकि यहां खनन माफियाओं का जंगल राज चलता है। नरेन्द्र कुमार की मौत के बाद भी यहां कई बार पुलिस पिटी, प्रशासन दुम दबाकर भागा, लेकिन ये माफिया वहीं के वहीं काबिज हैं। साथ ही करोड़ों के राजस्व नुकसान के साथ मुंह चिढ़ा रहे हैं उस शासन को जो अवैध उत्खनन बन्द करने का दम भरता है।
कांग्रेस लगाती है सरकार पर माफिया के संरक्षण का आरोप
वही दूसरी ओर इस खनन माफिया को लेकर कांग्रेस लगातार सरकार पर संरक्षण का आरोप लगाती रही है। कांग्रेस का कहना है कि ग्वालियर चंबल अंचल का यह वाइट स्टोन पूरे विश्व में प्रसिद्ध है लेकिन इन माफिया की वजह से इसे पहचान नहीं मिल पा रही है। मोहन सरकार माफियाओं पर कार्रवाई करने का दावा करती है लेकिन इस ग्वालियर चंबल अंचल में वह क्यों नाकाम साबित हो रही है।
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