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Historical Monuments Gwalior: बाबर के आदेश पर तहस-नहस की गई थीं ग्वालियर किले की बावड़ी में मौजूद 26 गुफाएं

Historical Monuments Gwalior: ग्वालियर। मध्य प्रदेश का ग्वालियर शहर अपनी ऐतिहासिक स्मारकों, किलों और संग्रहालय के लिए जाना जाता है। इसके साथ ही साथ यह एक प्रगतिशील औद्योगिक शहर भी है। इतिहास में ग्वालियर को एक अलग स्थान प्राप्त है। वैसे...
04:54 PM Mar 10, 2025 IST | Pushpendra

Historical Monuments Gwalior: ग्वालियर। मध्य प्रदेश का ग्वालियर शहर अपनी ऐतिहासिक स्मारकों, किलों और संग्रहालय के लिए जाना जाता है। इसके साथ ही साथ यह एक प्रगतिशील औद्योगिक शहर भी है। इतिहास में ग्वालियर को एक अलग स्थान प्राप्त है। वैसे तो ग्वालियर में घूमने के लिए सैलानियों के लिए बहुत सी जगहें हैं लेकिन जब बात ग्वालियर किले की आती है तो यह एक अलग ही खुशी देता है। ग्वालियर किला, फूल बाग सूरजकुंड, हाथीपूल मान मंदिर महल, जय विलास महल आदि किसी भी पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं।

लोगों को ये गुफाएं करती हैं आकर्षित

परंतु जब बात ग्वालियर किले की हो तो इसकी कुछ और ही बात होती है। ग्वालियर किले की तलहटी में 26 गुफाएं हैं। इसमें प्राचीन जैन प्रतिमाएं आज भी बनी हुई हैं। किले की तलहटी में हमेशा साफ पानी बहता रहता है। यह बावड़ी एक ही पत्थर से बनी हुई है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी यहां पहुंचते हैं। इतिहासकारों की माने तो इस किले की तलहटी क्षेत्र में बनी गुफाओं में जैन तीर्थंकर प्रतिमाओं का निर्माण तोमर शासक राजा डूंगर सिंह ने 1425 -59 ई. के समय कराया था। इसका अभिलेख भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण के पास आज भी मौजूद है।

आज भी है स्वच्छ पानी की झिरें

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सुरक्षा की दृष्टि से बावड़ी पर चैनल गेट लगा रखा है। आज भी इस बावड़ी से हर समय स्वच्छ पानी बहता रहता है। इसके अंदर साफ पानी की झिरें बनी हुई हैं, जिससे यहां पानी भरता रहता है। यह बावड़ी गुफा नंबर एक में है। इतिहासकारों की मुताबिक एक पत्थर की बावड़ी स्थल पर 26 गुफाएं भी बनी हुई है। इसमें जैन तीर्थंकर की बड़ी और छोटी प्रतिमाएं हैं। यहां पर उन्हें खड़े और बैठे हुए दर्शाया गया है। प्रतिमाओं के बाद पीठ पर शिलालेख खड़े हुए हैं। यहां 26 गुफाओं के दूसरे छोर पर हनुमान मंदिर भी मौजूद है। मुगल शासन काल के दौरान बाबर ने इन प्रतिमाओं को तहस-नहस किया था।

दूर-दूर से आते हैं सैलानी 

वर्तमान समय में यह बावड़ी अब यह स्मारक राष्ट्रीय संरक्षित धरोहर है। इस बावड़ी को पुरातत्व विभाग (Historical Monuments Gwalior) ने वर्ष 1904 में राष्ट्रीय सुरक्षित स्मारक घोषित किया था। इस बावड़ी को ASI की भाषा में (नॉन लिविंग टेंपल) के नाम से भी जाना जाता है, जिसे देखने पर्यटक दूर-दूर से यहां पर पहुंचते हैं।

(ग्वालियर से सुयश शर्मा की रिपोर्ट)

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