Holi 2025: फूलों और पत्तियों से हर्बल रंग, गुलाल बना रही हैं स्वसहायता समूह की आदिवासी महिलाएं
Holi 2025: सागर। महिलाओं की आर्थिक स्थिति बदलने 0तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में आजीविका मिशन की महत्वपूर्व भूमिका है। आजीविका मिशन के स्वसहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं अपने जीवकोपार्जन के लिए नित नए कामों को अंजाम दे रही हैं। होली का त्यौहार नजदीक आ रहा है। रंगों के इस त्यौहार में लोग जम कर रंग गुलाल का इस्तेमाल करते हैं। बाजार में मिलने वाले केमिकल युक्त रंगों तथा गुलाल से लोगो को विभिन्न प्रकार के त्वचीय रोग होने की संभावना रहती है इसलिए बाजार में अब हर्बल रंग तथा गुलाल की मांग बढ़ने लगी है।
आजीविका कमाने के लिए महिलाएं करती हैं अलग-अलग काम
लोगों की इसी मांग को ध्यान में रखते हुए सागर जिले की आजीविका मिशन स्वसहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं इन दिनों होली (Holi 2025) के लिए हर्बल रंग गुलाल बनाने लगी हैं। सागर जिले की राधारानी गौ शाला का संचालन कर रही लक्ष्मी स्वसहायता समूह की आदिवासी महिलाएं अपनी आजीविका के लिए नए नए काम करती हैं। समूह से जुड़ी महिलाएं पिछले साल से होली के अवसर पर प्राकृतिक फूलों तथा वनस्पतियों से गुलाल और रंग बना रही हैं।
टेसू, सेमल और स्थानीय वनस्पति से तैयार होते हैं रंग और गुलाल
महिलाओं ने बताया कि वह टेसू और सेमल के फूल, स्थानीय वनस्पति के फूल, पेड़ की पत्तियों को सुखाकर पीसकर उनसे यह रंग तथा कृत्रिम गुलाल तैयार करती हैं तथा उन्हें पैक कर आजीविका मिशन सागर (Sagar News) के माध्यम से वह बिक्री करती हैं। इनका यह रंग तथा गुलाल पूरी तरह से केमिकल फ्री होने से लोगों को पसंद आता है तथा इसके प्रयोग से मानव त्वचा तथा मानव अंगों पर कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं पड़ता।
गोबर से गौ काष्ठ बनाया जाता है
आजीविका मिशन (Sagar News) के विकासखंड प्रबंधक ने बताया कि आदिवासी महिलाएं पिछले चार वर्षों से राधारानी गौशाला का सफल संचालन कर रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए तथा वनों को कटाई से बचाने के प्रयास के तहत गोबर से गौ कास्ट (गोबर की लकड़ी) कंडे तथा होली में उपयोग होने वाली माला बनाती हैं। इसके साथ पिछले वर्ष से यह हर्बल रंग गुलाल (Holi 2025) भी बना रही हैं। इनके द्वारा बनाए सभी उत्पाद लोगों को पसंद आते हैं और इनकी बिक्री से उन्हें आय की प्राप्ति होती है।
(सागर से कृष्णकांत नगाइच की रिपोर्ट)
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