देश में सबसे पहले इस गांव से होती है होली की शुरुआत, जिस पर्वत से प्रहलाद को फेंका, वो आज भी है गवाह
Holi In Erach एरच (झांसी): होली का त्यौहार आते ही पूरा देश रंग और गुलाल की मस्ती में सराबोर हो जाता है लेकिन शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि पूरी दुनिया को रंगीन करने वाले इस त्योहार की शुरुआत बुंदेलखंड में झांसी के एरच से मानी जाती है। यह कभी हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी। मान्यता है कि होलिका भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठी थीं, जिसमें होलिका तो जल गई थी लेकिन प्रहलाद बच गए थे। एरच कस्बा त्रेता युग में गवाह रहा है, हिरण्यकश्यप की हैवानियत, भक्त प्रहलाद की भक्ति, होलिका के दहन और नरसिंह के अवतार का।
होलिका दहन से होली का प्रारंभ
होली यानी रंगों के त्योहार का प्रारंभ होलिका दहन (Holika Dahan) से माना जाता है। शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक वर्तमान में झांसी जिले का एरच कस्बा त्रेता युग से एरिकक्च के नाम से प्रसिद्ध था। एरिकक्च दैत्यराज हिरण्यकश्यप की राजधानी थी, हिरण्यकश्यप को यह वरदान प्राप्त था कि वह न तो दिन में मरेगा, न ही रात में, न तो उसे इन्सान मार पाएगा और न ही जानवर। इसी वरदान को प्राप्त करने के बाद खुद को अमर समझने वाला हिरण्यकश्यप निरंकुश हो गया था। लेकिन, इस रक्चास राज के घर जन्म हुआ प्रहलाद का। भक्त प्रहलाद की भगवद् भक्ति से परेशान हिरण्यकश्यप ने उसे मरवाने के कई प्रयास किए फिर भी प्रहलाद बच गया।
होली को लेकर क्या है पौराणिक मान्यता?
पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को डिकोली पर्वत से नीचे फिकवा दिया। डिकोली पर्वत और जिस स्थान पर प्रहलाद गिरा वह आज भी निशान मोजूद है। आखिरकार हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका ने प्रहलाद को मारने की ठानी। होलिका के पास एक ऐसी चुनरी थी, जिसे ओढ़कर वह आग के बीच बैठ सकती थी। होलिका वही चुनरी ओढ़ प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान की माया का असर यह हुआ कि हवा चली और चुनरी होलिका के ऊपर से उड़कर प्रहलाद पर आ गई। इस तरह प्रहलाद फिर बच गए और होलिका जल गई।
संधि के बाद गुलाल और रंग लगाकर होली की शुरुआत
इसके तुंरत बाद विष्णु भगवान ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया और गोधुली बेला में अपने नाखुनों (Holi Festival History) से हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। हिरण्यकश्यप के वध के बाद देवताओं और दानवों में चली आ रही लड़ाई खत्म हुई। इस संधि के बाद गुलाल और रंग लगाकर एक दूसरे को बधाई दी गई। इस तरह से होली का त्योहार शुरू हो गया।
सैकड़ों प्रमाण बुंदेलखंड के एरच में मौजूद
होली त्योहार के कथाओं के सैकड़ों प्रमाण बुंदेलखंड के इस एरच कस्बे (Holi In Erach) में मौजूद हैं। डिकोली पर्वत तो प्रहलाद को फेंके जाने की कथा बयां करता ही है। बेतवा नदी का शीतल जल भी प्रहलाद को हर पल स्पर्श कर खुद को धन्य समझता है। होलिका दहन का स्थान हिरण्यकश्यप के किले के खंडहर और कस्बे में सैकड़ों साल पुराना नरसिंह मंदिर सभी घटनाओं की पुष्टि करते हैं। इसके साथ ही यहां खुदाई में प्रहलाद को गोद में बिठाए होलिका की अद्भुत मूर्ति मिली है। हजारों साल पुरानी यह मूर्ति शायद इस गांव की गाथा बयां करने के लिए ही निकली है।
एरच की होली को लेकर क्या कहते हैं साहित्यकार?
साहित्यकार हरगोबिन्द कुशवाहा कहते हैं, "बुंदेलखंड सबसे पुराना नगर एरच ही है। श्रीमद् भागवत के सप्तम अध्याय में होली की शुरुआत से जुड़े प्रमाण दिए गए हैं। इसके साथ ही इस नगरी में अब भी खुदाई में हजारों साल पुरानी ईंटो का निकलना साफ तौर पर इसकी ऐतिहासिकता प्रमाणित करता है। जब इस नगरी ने पूरी दुनिया को रंगों का त्योहार दिया हो तो यहां के लोग भला होली खेलने में पीछे क्यों रहें। लोकगीतों की फाग से शुरू होकर रंग और गुलाल का दौर फाल्गुन महीने से शुरू होकर रंगपंचमी तक चलता है। ठेठ बुंदेली अंदाज में लोग अपने साजो-सामान के साथ फाग गाते हैं। पूरी दुनिया को रंगों का त्योहार देने वाले इस कस्बे के निवासियों में होना होली को लेकर विशेष उत्सव होना लाजमी है।"
(एरच से सुयश शर्मा की रिपोर्ट)
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