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Singrauli Koyla Khadan: धीरौली कोयला खदान को लेकर जीतू पटवारी ने लिखा पत्र, सरकार पर लगा दिया यह बड़ा आरोप

Singrauli Koyla Khadan: भोपाल। सिंगरौली की धिरौली कोयला खदान हमेशा से ही चर्चा में रही है। कोयला खदान और यहां पर काम करने आए मजदूरों के हितों की बात अलग-अलग राजनीतिक दल समय-समय पर करते रहते हैं। अब मध्य प्रदेश...
05:29 PM Oct 20, 2024 IST | Akash Tiwari

Singrauli Koyla Khadan: भोपाल। सिंगरौली की धिरौली कोयला खदान हमेशा से ही चर्चा में रही है। कोयला खदान और यहां पर काम करने आए मजदूरों के हितों की बात अलग-अलग राजनीतिक दल समय-समय पर करते रहते हैं। अब मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी खदान में काम करने वाले मजदूरों और खदान के क्षेत्र से प्रभावित होने वाले लोगों को लेकर एक लेख लिखा है।

व्यवस्था और संरक्षण को ध्यान में रखते हुए पटवारी ने लिखा लेख

दरअसल, जीतू पटवारी ने धीरौली कोयला खदान सिंगरौली में आदिवासी अधिकारों के हनन और उनके पुनर्वास व्यवस्था तथा संरक्षण को रेखांकित करते हुए एक लेख लिखा है। यह लेख सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें पटवारी ने मजदूरों के हितों की बात की है। इस लेख में जीतू पटवारी ने कोयला खदान अडानी समूह को आवंटित किए जाने और उसकी वजह से मजदूरों तथा स्थानीय निवासियों को होने वाली समस्याओं का उल्लेख किया है।

जीतू पटवारी ने अडानी समूह को लेकर उठाए सवाल

उन्होंने अपने लेख में लिखा है, “धीरौली कोयला खदान परियोजना (Singrauli Koyla Khadan) का उद्देश्य क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कोयला उत्खनन करना है, ताकि ऊर्जा उत्पादन की मांग पूरी की जा सके। सिंगरौली क्षेत्र पहले से ही बड़े पैमाने पर ताप विद्युत संयंत्रों और कोयला खनन परियोजनाओं का घर रहा है। अडानी समूह को इस परियोजना का ठेका दिया गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य यहां से कोयला निकालकर विद्युत संयंत्रों को आपूर्ति करना है। हालांकि, इस परियोजना के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं।”

आदिवासियों की भूमि पर कब्जे को लेकर कही यह बात

पटवारी ने अपने लेख में आगे लिखा कि इस परियोजना का सबसे बड़ा विवाद आदिवासियों की भूमि पर कब्जे को लेकर है। इस क्षेत्र में आदिवासी समुदाय पीढ़ियों से रह रहा है, और यह जमीन उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत है। कोयला खदान के लिए भूमि अधिग्रहण करने की प्रक्रिया में इन सरकार द्वारा इन समुदायों को पर्याप्त मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की गई है। इस वजह से आदिवासी समुदाय की जीविका और सांस्कृतिक धरोहर पर खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने आगे लिखा कि भूमि अधिग्रहण की इस प्रक्रिया में न केवल कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया वरन यहां के स्थानीय समुदायों की सहमति भी नहीं ली गई है।

अडानी को 2014 में मिली थी खदान

आपको बता दें कि अडानी समूह को खुद के इस्तेमाल के लिए वर्ष 2014 में हुई कोयला ब्लॉकों की नीलामी में एक खदान (Singrauli Koyla Khadan) आवंटित की गई थी। यह कोयला खदान भी धीरौली कोयला खदान का ही एक हिस्सा थी। हालांकि दो साल बाद उसका आवंटन रद्द कर उसे जिंदल स्टील एंड पावर को दे दिया गया था। कांग्रेस सरकार पर कोयला खदानों की नीलामी में अपनाई गई प्रक्रिया और स्थानीय समूहों को होने वाली परेशानी का जिम्मेदार होने का आरोप लगा रही है।

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