Khajuraho Dance Festival: नृत्य समारोह के दूसरे दिन मंच पर साकार हुआ संस्कृति का सौंदर्य
Khajuraho Dance Festival: खजुराहो। मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन छतरपुर के सहयोग से आयोजित 51वें खजुराहो नृत्य समारोह की दूसरी शाम देश के सुप्रसिद्ध नृत्य कलाकारों ने कंदरिया महादेव मंदिर की आभा में बने मंच पर अपनी अद्भुत कला का प्रदर्शन करते हुए वहां मौजूद जनसमारोह का संस्कृति के अनूठे रंगों से परिचय कराया। सांझ की धुंधलाती रोशनी में नृत्य का संसार जगमगा उठा और रात होते-होते परवान चढ़ा। भारतीय कला एवं संस्कृति का प्रतीक बन चुके खजुराहो के इस मंच पर दूसरी शाम तीन नृत्य प्रस्तुतियां सुधिजनों के सामने आईं।
पद्यश्री दर्शना झवेरी ने दी प्रथम प्रस्तुति
इसमें पहली प्रस्तुति थी सुप्रसिद्ध मणिपुरी नृत्यांगना और पद्मश्री दर्शना झावेरी एवं उनके शिष्यों की। एक ऐसी नृत्यांगना जिसने नृत्य को न सिर्फ किया, बल्कि उसे आत्मसात भी किया। अपनी गुरु परम्परा को नृत्य के आकाश में बुलंदियों तक लेकर आईं। गुरु बिपिन सिंह के मणिपुरी घराने की आला दर्जे की नृत्यांगना ने अपनी प्रस्तुति का आरम्भ पारंपरिक रूप से ईश्वर की वंदना से किया। मंगलाचरण में उन्होंने भगवान श्री कृष्ण और राधा को नमन किया। इसके बाद बसंत रास का प्रमुख उत्सव होली मंच पर साकार हुआ। जिसके केंद्र में थे कृष्ण, राधा और गोपियां। होलिका क्रीडम प्रस्तुति ने सुधिजनों को ब्रज की होली सदृश्य दिखाई। होली के रंगों के बाद मनभजन प्रस्तुति दी, जो जयदेव रचित गीत गोविंदम पर आधारित थी। इसमें भगवान श्री कृष्ण और राधा की मधुमयी नोंक-झोंक को दर्शाया। इसके बाद प्रबंद नर्तम, सप्ता, नायिकाभेदा, मांडिला नर्तन और अंत में मृदंग वादन की प्रस्तुति से विराम दिया।
भरतनाट्यम के रूप में थी दूसरी प्रस्तुति
मणिपुरी के बाद अवसर था भरतनाट्यम नृत्य (Khajuraho Dance Festival) को देखने का और मंच पर नमूदार हुईं युवा नृत्यांगना श्रेयसी गोपीनाथ, दिल्ली। उनकी प्रस्तुति थी "द व्हील ऑफ चॉइसेस", जिसे श्रेयसी गोपीनाथ डांस अकादमी के कलाकारों ने प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने मानव स्वभाव की जटिलताओं को प्रदर्शित किया। जहाँ चरित्र न केवल अपने कार्यों से बल्कि दूसरों के कर्मों से भी लगातार संचालित होते हैं। चक्र के मूल में महाभारत का नायक कर्ण है। व्यापक कथा के केंद्र में, उसकी पहचान और यकीनन दुखद नियति उसे एक आकर्षक और रहस्यमय व्यक्ति बनाती है। अपने महान गुणों के बावजूद, कर्ण की यात्रा आंतरिक संघर्षों, नैतिक दुविधाओं, विकल्पों और भाग्य के अथक हाथ से चिह्नित है।
गरूड़ की कथा को पिरोया छाऊ में
अंतिम प्रस्तुति छाऊ की रही जिसे प्रस्तुत किया पद्मश्री शशधर आचार्य एवं उनके साथियों ने। उनकी प्रस्तुति का नाम महानायक गरुड़ था। इस नृत्यनाटिका में उन्होंने नृत्य के माध्यम से बड़े प्रभावी ढंग से दिखाया कि भारतीय आध्यात्मिक वांग्मय में संघर्ष की पराकाष्ठा से प्रकाशित गरुड़ एक महानायक के रूप में प्रतिबिंबित होता है, जो अपने अदम्य शौर्य से गरुड़ भास्कर, गरुड़ वासुकी, गरुड़ वाहन, नरकासुर वध जैसे चरित्रों का अनुपालन करता है और धर्म ग्रंथो में अपनी पूज्य स्थिति को प्राप्त करता है। धर्म ग्रंथों में विदित कथाओ के अनुसार गरुड़ का जन्म समय से पूर्व ही हो गया बावजूद इसके उसमे अपार ऊर्जा संग्रहित था। अपनी ऊर्जा की प्रचंडता के कारण वह अपने माता के मना करने पर भी सूर्य को निगलने के लिए चल पड़ा। वह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए भगवान विष्णु को चुनौती देता है और उनसे युद्ध कर उन्हें और उनके सभी अस्त्रों को पराजित करता है, तत्पश्चात भगवान विष्णु ने उन्हें अपने वाहन के रूप में स्थान प्रदान किया। इस चरित्र की विविधता को दर्शाने के लिए छऊ की तीन शैलियां सरायकेला, मयूरभंज और पुरुलिया तीनों में अद्भुत कलात्मक सामंजस्य दिखाई दिया। जहां सरायकेला छऊ इसे शास्त्रीय छुअन प्रदान कर रहा था, वहीं मयूरभंज छऊ इसे स्पष्ट रूप से चित्रित कर रहा था। पुरुलिया छऊ इसकी आक्रामक तेवर को प्रस्तुत करने में अद्भुत तारतम्यता को दर्शा रहा था।
छतरपुर जिले के शिल्प सर्वाधिक प्राचीन : डॉ. सुधीर कुमार छारी
कलाविदों एवं कलाकारों के मध्य संवाद की लोकप्रिय गतिविधि कलावार्ता का पहला दिन खजुराहो (Khajuraho Dance Festival) के शिल्प सौंदर्य और छतरपुर जिले के शैल चित्र पर केंद्रित रहा। महाराजा छत्रसाल यूनिवर्सिटी के शोध निदेशक एवं विभागाध्यक्ष डॉ. सुधीर कुमार छारी मुखातिब हो रहे थे कलाकारों और कलाप्रेमियों से। उन्होंने कहा कि छतरपुर जिले में उन्होंने 3000 से अधिक शैल चित्रों की खोज की है। जो 45000 से 20000 ईस्वी पूर्व के हैं। ये शैल चित्र विश्व के सर्वाधिक प्राचीन शैल चित्र हैं। उन्होंने इनकी तकनीक, रंग और विषय पर बात की। उन्होंने बताया कि ये सीधी रेखा में बनाए गए चित्र हैं और इन्हें बनाने के लिए केवल लाल रंग का उपयोग किया गया है, जबकि दूसरी जगहों पर अन्य रंग के शैल चित्र भी पाए गए हैं। उन्होंने बताया कि खजुराहो के शिल्पों में अनूठा सौंदर्य देखने को मिलता है, जिसमें स्त्री पेंटिंग करती, अंगड़ाई लेती, बाल बनाती, श्रृंगार करती इत्यादि मुद्राओं में हैं, जो सौंदर्य से भरपूर हैं।
मंच पर साकार हुई बालमन की कल्पनाएं
51वें खजुराहो नृत्य समारोह की दूसरी शाम का शंखनाद हुआ बालमन की नृत्य प्रस्तुतियों के साथ। खजुराहो बाल नृत्य महोत्सव के दूसरे दिन भरतनाट्यम और कथक प्रस्तुतियों से मंच सजा। पहली प्रस्तुति कुमारी इदीका देवेन्द्र, भोपाल की भरतनाट्यम नृत्य की हुई। उनकी प्रथम प्रस्तुति नटेश कौतुवम् थी। जो राग नट्टै एवंं ताल आदि में निबद्ध थी। इस प्रस्तुति में समस्त ऋषि मुनि, देवता और असुरों द्वारा पूजित, नृत्य के स्वामी नटराज को नमन किया गया। दूसरी प्रस्तुति थी शब्दम, यह एक पारंपरिक भरतनाट्यम रचना है जो ताल मिश्र चापू और रागमालिका में निबद्ध है। इसमें नायिका श्री कृष्ण की लीलाओं को दर्शाती है और उनके मनमोहक रूप का वर्णन करती है।
अंतिम प्रस्तुति तिल्लाना थी, जिसका अर्थ है ताल में लीन नृत्यांगना। यह प्रस्तुति नृत्य की ओर आत्मसमर्पण है, साधना की परिकाष्ठा है। यह तिल्लाना चरूरश्र जाति (4 मात्रा) खंड जाति (5 मात्रा) एवंं संकीर्ण जाति (9 मात्रा) मे निबद्ध है। इसके साहित्य में भगवान् कार्तिकेय की स्तुति की गई। यह रचना राग शिवरंजिनी और ताल आदि में निबद्ध थी। इसके बाद कथक की प्रस्तुति ग्वालियर की कुमारी सौम्य जैन ने दी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में सर्वप्रथम भगवान शिव (Khajuraho Dance Festival) को समर्पित शिव रुद्राकष्टकम, जिसके बोल थे नमामि शमीशन निर्वाणरूपम...। दूसरी प्रस्तुति में शुद्ध नृत्य प्रस्तुत किया, जो ताल तीनताल में निबद्ध था। तीसरी प्रस्तुति ठुमरी की थी, जिसमें राधा कृष्ण का प्रेम और पनघट की स्नेहिल छेड़ छाड़ को बड़े ही मनमोहक ढंग से नृत्य में बांधा। अंतिम प्रस्तुति में जयपुर घराने का तिरवत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर बाल नृत्य कलाकारों का मनोबल बढ़ाने सुप्रसिद्ध कला समीक्षक डॉ.ताप्ती चौधरी भी पधारीं।
(खजुराहो से गौरव मिश्रा की रिपोर्ट)
यह भी पढ़ें: