Vidisha Lok Sabha Seat Result विदिशा सीट पर शिवराज सिंह की प्रचंड जीत, साढ़े 5 लाख वोटों से हुए विजयी

Vidisha Lok Sabha Seat Result विदिशा: मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट पर एक बार फिर भाजपा का कब्जा हो गया है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यहां प्रचंड जीत हासिल की है। शिवराज सिंह चौहान विदिशा...
vidisha lok sabha seat result विदिशा सीट पर शिवराज सिंह की प्रचंड जीत  साढ़े 5 लाख वोटों से हुए विजयी

Vidisha Lok Sabha Seat Result विदिशा: मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट पर एक बार फिर भाजपा का कब्जा हो गया है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यहां प्रचंड जीत हासिल की है। शिवराज सिंह चौहान विदिशा से 8 लाख से अधिक मतों से विजयी हुए हैं। कांग्रेस नेता  प्रताप भानु को करारी  हार का सामना करना पड़ा है।

विदिशा में शिवराज सिंह चौहान की ऐतिहासिक जीत

विदिशा लोकसभा क्षेत्र से शिवराज सिंह चौहान ने रिकॉर्ड तोड़ मतों से ऐतिहासिक जीत हासिल की है। शिवराज सिंह को कुल 11,16,460 मत मिले। वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी प्रतापभानु शर्मा को 2,95,052 मत मिले। इस तरह से शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस प्रत्याशी को 8,20,868 मतों से हराया है।

भाजपा के लिए सबसे  सुरक्षित सीट

विदिशा लोकसभा सीट प्रदेश की सबसे  हाईप्रोफाइल सीट कही जाती है। इस सीट से भाजपा की कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी और देश की पूर्व विदेश मंत्री दिवंगत सुषमा स्वराज ने भी संसद तक का सफर पूरा किया। इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है। विदिशा लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1967 में हुआ था। उस समय भारतीय जनसंघ के पंडित शिव शर्मा यहां से सांसद चुने गए थे। 1977 के चुनाव तक इस सीट पर जनसंघ का ही कब्जा रहा। 1980 और 84 के चुनाव में कांग्रेस के प्रताप भानु शर्मा ने जीत दर्ज की थी।

इस बार थी नाक की लड़ाई

बता दें कि 1991 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने यह सीट छोड़ दी तो उपचुनाव हुआ और शिवराज सिंह चौहान यहां से सांसद चुने गए।  शिवराज सिंह चौहान 1996, 1998, 1999 और 2004 का चुनाव भी लगातार जीतते रहे। हालांकि, उनके मुख्यमंत्री बनने पर यह सीट खाली हो गई।

इसके बाद यहां 2006 में उपचुनाव हुआ और बीजेपी के रामपाल सिंह यहां से सांसद बने। उसके बाद दो बार सुषमा स्वराज और साल 2019 में रमाकांत भार्गव यहां से बड़े अंतर से जीत कर संसद पहुंचे थे। इस बार एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी।  वैसे एग्जिट पोल ने पहले ही साफ कर दिया था कि शिवराज सिंह चौहान अब केंद्र की राजनीति में पहुंचने वाले हैं।

एक नजर शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक सफर पर

शिवराज सिंह चौहान देश की राजनीति के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक हैं। 18 सालों तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को एमपी की जनता 'मामा जी' कहकर संबोधित करते हैं। शिवराज सिंह चौहान के नाम एमपी के सबसे अधिक बार मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड दर्ज है। वे चार बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान छठी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे।  मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा के कद्दावर नेता शिवराज सिंह भाजपा के  राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं।

शिवराज सिंह का भरा पूरा परिवार

शिवराज सिंह चौहान का जन्म 5 मार्च 1959 को हुआ। उनके पिता का नाम प्रेमसिंह चौहान और माता सुंदरबाई चौहान है। शिवराज सिंह ने भोपाल के बरकत उल्लाह विश्वविद्यालय से  स्नातकोत्तर (PG) तक शिक्षा प्राप्त की है। सन 1975 में आदर्श उच्च मध्य विद्यालय में छात्रसंघ अध्यक्ष बने।  उन्होंने आपात काल का विरोध किया और 1976-1977 में भोपाल जेल में बंद रहे। साल 1992 में साधना सिंह के साथ उनका विवाह हुआ।

विद्यार्थी परिषद में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

शिवराज सिंह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  के समर्पित कार्यकर्ता हैं। शिवराज सिंह चौहान 1977-78 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री बने।  1975 से 1980 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मध्य प्रदेश के संयुक्त मंत्री रहे। 1980 से 1982 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के प्रदेश महासचिव, 1982-83 में परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य, 1984-85 में भारतीय जनता युवा मोर्चा मध्य प्रदेश के संयुक्त सचिव और  1985 से 1988 तक महासचिव और 1988 से 1991 तक युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे।

बुधनी से पहली बार बने विधायक

शिवराज सिंह चौहान 1991 में पहली बार बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। इसके बाद 1991 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से पहली बार सांसद बने। शिवराज सिंह चौहान 1991-92 में अखिल भारतीय केशरिया वाहिनी के संयोजक और 1992 में अखिल भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव बने। 1992 से 1994 तक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महासचिव नियुक्त। 1992 से 1996 तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति, 1993 से 1996 तक श्रम और कल्याण समिति और 1994 से 1996 तक हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य रहे।

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