Minor girl Rape Case: दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग को मिली गर्भपात की अनुमति, माता-पिता उठाएंगे खर्च
Minor girl Rape Case: जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के बाद गर्भवती हुई नाबालिग किशोरी को गर्भपात की अनुमति दे दी है। न्यायमूर्ति जी.एस.अहलूवालिया अपने आदेश में कहा है कि माता-पिता के जोखिम एवं खर्च से पीड़िता का गर्भपात कराया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार एवं गर्भपात करने वाले डॉक्टरों की इसमें कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल मध्य प्रदेश की जबलपुर हाईकोर्ट की प्रिंसिपल पीठ में दुष्कर्म के बाद गर्भवती हुई किशोरी के मामले पर सुनवाई चल रही थी। दायर मामले के बारे में बताया गया है कि सिंगरौली की नाबालिग कुछ महीने पहले घर से अचानक लापता हो गई थी। परिजनों की शिकायत पर जिले के मोरवा पुलिस थाने में अपहरण का मामला दर्ज किया गया था। पुलिस ने लगभग डेढ़ महीने बाद लड़की को खोज निकाला। पुलिस ने नाबालिग किशोरी को मेडिकल जांच के लिए भेज दिया। जांच के दौरान किशोरी के गर्भवती होने की पुष्टि हुई। पुलिस ने किशोरी से पूछताछ के बाद पॉक्सो एक्ट के तहत दुष्कर्म का केस दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।
लड़की के पिता ने गर्भपात कराने की मांगी अनुमति
नाबालिग बेटी के गर्भवती होने की जानकारी मिलने पर लड़की के पिता ने बेटी का गर्भपात कराने के लिए अदालत की शरण ली। हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि किशोरी की उम्र बहुत कम है। वह मानसिक और शारीरिक रूप से गर्भपात के लिए तैयार नहीं हैं। सात ही याचिका में यह भी कहा गया कि लड़की बच्चे को जन्म देना नहीं चाहती है। नाबालिग किशोरी के माता-पिता ने कोर्ट में यह हलफनामा भी पेश किया कि ट्रायल के दौरान इस बात का समर्थन करेंगे कि आरोपी ने उनकी नाबालिग बेटी का अपहरण कर दुष्कर्म किया, जिसके कारण उनकी बेटी गर्भवती हुई थी।
मेडिकल जांच रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने दी गर्भपात की अनुमति
गौरतलब है कि जबलपुर हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस जी.एस.अहलूवालिया की एकलपीठ ने मेडिकल रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद किशोरी को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी। हाईकोर्ट ने गर्भपात के बाद भ्रूण को जांच एजेंसी को सुपुर्द करने का निर्देश दिया है। जांच अधिकारी को भी कोर्ट ने आदेश दिया कि भ्रूण प्राप्त होने के दो दिनों के भीतर डीएनए और फिंगर प्रिंट जांच के लिए भेजें।न्यायमूर्ति जी.एस. अहलूवालिया ने आदेश में कहा है कि किसी भी खतरे की स्थिति में गर्भपात कराने वाले डॉक्टर और राज्य सरकार जिम्मेदार नहीं होंगे। गर्भपात केवल पीड़िता के माता-पिता के जोखिम और खर्च पर ही किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि अगर सिंगरौली सीएमएचओ चाहें तो नाबालिग किशोरी को बेहतर इलाज के लिए किसी ‘मल्टीस्पेशलिटी’ अस्पताल में भेज सकते हैं।
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