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Cutting Trees For Highway: NHAI ने उज्जैन-झालावाड़ नेशनल हाइवे के निर्माण के लिए काटे हजारों पेड़

Cutting Trees For Highway: आगर मालवा। क्या आपको पता है कि आज जिस हाइवे से आप गुजर हैं वह कितने पेड़ो के बलिदान के बाद बनाई गई है।
04:33 PM Dec 08, 2024 IST | Sanjay Patidar

Cutting Trees For Highway: आगर मालवा। क्या आपको पता है कि आज जिस हाइवे से आप गुजर हैं वह कितने पेड़ो के बलिदान के बाद बनाई गई है। हजारों वृक्षों की कटाई करने के बाद भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण दिल्ली के द्वारा उज्जैन से लेकर चंवली तक कुल 134 किलोमीटर की नवीन टू लेन सड़क का निर्माण संभव हो पाया। इसे उज्जैन-झालावाड राष्ट्रीय राजमार्ग 552G के नाम से जाना जाता है। इस सड़क निर्माण में बाधा बने हजारों पेड़ो को नेशनल हाइवे के निर्माण के दौरान काटा तो गया लेकिन एनएचएआई के द्वारा गाइडलाइन के अनुसार इनके स्थान पर दोगुने मात्रा में पेड़ नहीं लगाए गए।

कटे पेड़ों के बदले लगाने थे दो गुने पेड़

अनुबंध के अनुसार इस मार्ग के निर्माण के बाद पेड़ लगाए जाने थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज स्थिति यही है कि हम बड़ी शान से इस मार्ग से यात्रा तो कर रहे लेकिन इस मार्ग पर पर्याप्त मात्रा में हमें ऑक्सीजन देने वाले पेड़ ही कम हो गए। यदि एनएचएआई काटे गए पेड़ो की जगह सड़क निर्माण के बाद नए पेड़ो को लगा देती तो ऑक्सीजन भरपूर मात्रा में मिल सकती थी। लेकिन न तो जिम्मेदारों ने पर्यावरण संरक्षण की और ध्यान दिया और न ही अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने वाले पक्ष-विपक्ष के नेताओ व जनप्रतिनिधियों ने इसको लेकर कोई रुचि दिखाई। इसलिए इस मार्ग पर जो पेड़ काटे गए थे, उनका स्थान आज भी रिक्त ही पड़ा हुआ है।

710 पेड़ सुसनेर अनुविभाग में काटे गए

अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कार्यालय सुसनेर से प्राप्त जानकारी के अनुसार 710 पेड़ तो सुसनेर अनुभाग की सीमा क्षेत्र में ही एनएचएआई के द्वारा काटे गए। इसके अलावा आगर, घटिया और घोसला के मिलाकर हजारों पेड़ो की बली देकर के उज्जैन-झालावाड़ राष्ट्रीय राजमार्ग 552G की टू लेन सड़क का निर्माण किया गया लेकिन इनके स्थान पर दोगुनी मात्रा में पेड़ो को लगाया नहीं गया।

पर्यावरण को होता है काफी नुकसान

पेड़ों को काटकर सड़क बनाने से पर्यावरण को कई तरह के नुकसान झेलने होते हैं। पेड़ों को काटने से जलचक्र प्रभावित होता है। पेड़ों की कटाई से वनस्पति और जीव नष्ट होते हैं। पेड़ों की कटाई से कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि होती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है। पेड़ों की कटाई से पशु-पक्षियों का आवास नष्ट हो जाता है। पेड़ों की कटाई से बाढ़ और आग लगती है। पेड़ों की कटाई से लकड़ी या इमारती लकड़ी की आपूर्ति सीमित हो जाती है। पेड़ों की कटाई से मिट्टी सूख जाती है, जिससे फसल उगाना असंभव हो जाता है।

साथ ही मरुस्थलीकरण, मृदा अपरदन, कम फसलें, बाढ़, वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। सुसनेर तहसीलदार विजय सेनानी ने कहा कि उज्जैन-झालावाड़ राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में सुसनेर अनुविभाग के अंतर्गत 710 पेड़ो को काटा गया था जिसके स्थान पर दोगुनी मात्रा में पेड़ लगाए जाने थे। सड़क बनने के बाद पेड़ कहीं दिखाई नहीं देते। हमारे द्वारा एनएचएआई को पत्र भेजकर के पेड़ लगाए जाने की मांग की जाएगी।

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