Pandhurna Gotmar Mela: यहां परंपरा के नाम पर बरसाए जाते हैं पत्थर, अब तक 10 से अधिक लोगों की जा चुकी जान
Pandhurna Gotmar Mela छिंदवाड़ा: मध्य प्रदेश के पांढुर्णा में परंपरा के नाम पर आज भी लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। सदियों से चली आ रही इस खूनी परंपरा में अब तक 10 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इसके बावजूद हर साल लोग अपने जख्म को भूलकर फिर से उसी उत्साह के साथ इस खूनी परंपरा में शामिल होते हैं। हालांकि इस दौरान भारी संख्या में सुरक्षाकर्मी भी तैनात रहते हैं। आखिर इस गोटमार मेले की क्या कहानी है आइए विस्तार से जानते हैं।
गोटमार मेले में 30 से अधिक लोग घायल
हर साल हजारों की संख्या में लोग गोटमार मेले (Pandhurna Gotmar Mela) में शामिल होते हैं। इस साल अब तक 30 से अधिक लोग इस खूनी परंपरा में घायल हो चुके हैं। वहीं, इनमें 6 की हालत गंभीर बताई जा रही है। घायलों का इलाज जारी है। वहीं, मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल भी तैनात हैं।
पांढुर्णा में परंपरा के नाम पर बरसाए जाते हैं पत्थर
पांढुर्णा में जाम नदी के दोनों तरफ से परंपरा के नाम पर पांढुर्णा और सावर गांव के लोग एक दूसरे के ऊपर पत्थर बरसाते हैं। यहां पत्थर बरसाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस परंपरा के पीछे कई कहानियां प्रचलित है। हालांकि, इतिहास में इन कहानियों का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
मेले को लेकर प्रचलित कहानियां
गोटमार मेले को लेकर स्थानीय लोगों में कई कहानियां प्रचलित हैं। किंवदंती के अनुसार, पांढुर्णा की जाम नदी किनारे 16वीं सदी में विशालकाय किला था। इस किले के राजा जाटबा थे। मोहखेड़े के देवगढ़ किले तक जाटबा नरेश का प्रभुत्व था। इस किले के पास ही मां चंडिका मंदिर हैं। प्रचलित कहानी के अनुसार जाटबा नरेश चंडी माता के बहुत बड़े भक्त थे।
प्रचलित कहानी के मुताबिक, नागपुर के राजा भोसले और उनकी सेना ने जाटबा नरेश के किले पर हमला कर दिया था। उस वक्त जाटबा नरेश की सेनाओं के पास हथियार नहीं थे। ऐसे मुश्किल हालात में जाटबा नरेश और उनकी सेना ने किले से भोसले और उनकी सेनाओं पर पत्थर बरसाने लगे। भोसले राजा की सेना पत्थरों की चोट सहन नहीं कर सकी ऐसे उन्हें परास्त होकर नागपुर वापस लौटना पड़ा। मान्यता है कि तभी से जाटबा नरेश की याद में पोला त्योहार के दूसरे दिन पांढुर्णा की जाम नदी के किनारे बसे दोनों गांव के लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाने की परंपरा को निभाते आ रहे हैं।
गोटमार मेले को लेकर प्रेम प्रसंग से संबंधित एक अन्य कहानी
वहीं, गोटमार मेले को लेकर एक अन्य कहानी प्रेम प्रसंग से भी संबंधित है। सदियों पहले पांढुर्णा का एक युवक सावरगांव की युवती के प्रेम में पड़ गया था। हालांकि, दोनों पक्ष युवक और युवती की शादी के लिए राजी नहीं थे। दोनों भादो की अमावस्या के दूसरे दिन सुबह-सुबह शादी करने के लिए भागने लगे। इसकी भनक गांव वालों को लग गई। इस दौरान नदी के दोनों तरफ बसे सावरगांव और पांढुर्णा के लोगों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी। पत्थरबाजी में नदी के बीच में फंसे युवक और युवती ने दम तोड़ दिया। प्रचलित कहानी के अनुसार दोनों की याद में दोनों गांव के लोग गोटमार खेल खेलते आ रहे हैं।
मेले में शामिल हर लोग जाते हैं देवी मां चंडिका मंदिर
बता दें कि, गोटमार मेले के अवसर पर आराध्य देवी मां चंडिका के मंदिर में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ता है। मेले की आराध्य मां चंडिका के चरणों में माथा टेककर हर कोई गोटमार मेले में शामिल होता है।
600 से अधिक पुलिस बल तैनात
वहीं, एसपी सुंदर सिंह ने गोटमार मेले को लेकर बताया, "पारंपरिक गोटमार खेल (Pandhurna Gotmar Mela) को देखते हुए सिवनी और बैतूल जिले से पुलिस बल को बुलाया गया है। किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो इसको लेकर पूरी व्यवस्था बनाई गई है। पुलिस प्रशासन के द्वारा हर साल 144 धारा लगाई जाती है।"
खूनी परंपरा में उजड़ चुके हैं कई लोगों के परिवार
दुनिया भर में प्रसिद्ध गोटमार मेले की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस मेले में पांढुर्णा और सावरगांव के हजारों लोग शामिल होते हैं। पत्थरबाजी में अब तक कई लोगों की जान जा चुकी है, कई लोग घायल हो चुके हैं। कई लोगों के परिवार उजड़ चुके हैं। उसके बावजूद भी यहां पत्थर बरसाने की खूनी परंपरा लगातार चली आ रही है। इसके बावजूद प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद इस परंपरा को कोई भी बंद नहीं करवा सका है।
गोटमार मेले को लेकर एंबुलेंस की व्यवस्था
कलेक्टर अजय देव शर्मा ने कहा कि यहां पर घायलों की इलाज के लिए पूरे इंतजाम किए गए हैं। पिछले साल 8 एंबुलेंस लगाई गई थी वहीं इस साल 16 एंबुलेंस की व्यवस्था की गई है। किसी प्रकार की कोई समस्या ना हो इसको लेकर सभी जगह भारी संख्या में पुलिस बल तैनात हैं। घायलों के इलाज के लिए कैंप भी बनाए गए हैं ताकि जल्द से जल्द उन्हें प्राथमिक उपचार मिल सके।
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