Ahilya Award Honours: अहिल्या पुरस्कार से सम्मानित हुए रामजन्म भूमि आंदोलन प्रमुख चंपत राय
Ahilya Award Honours: इंदौर। शहर में आज अहिल्या पुरस्कार सम्मान से राम जन्म भूमि आंदोलन के प्रमुख चंपत राय को पुरस्कृत किया गया। इस दौरान इंदौर के एक सभागृह में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें शिरकत करने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी पहुंचे। इस दौरान चंपत राय ने राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े हुए कई प्रसंग के बारे में जानकारी दी। मोहन भागवत ने भी इस दौरान कई तरह की बातों का जिक्र किया, जो सुर्खियों में बनी हुई हैं।
अहिल्या पुरस्कार से सम्मानित हुए चंपत राय
इंदौर में आज अहिल्या उत्सव समिति के द्वारा अहिल्या पुरस्कार सम्मान से राम जन्म भूमि आंदोलन के प्रमुख रहे चंपत राय को सम्मानित किया गया। इस दौरान मोहन भागवत ने मंच से संबोधित करते हुए कहा कि आपको द्वादशी को अब प्रतिष्ठा द्वादशी कहना चाहिए। मोहन भागवत ने कहा कि 15 अगस्त को भारत को राजनीतिक स्वतंत्रता तो मिल गई और संविधान का निर्माण भी कर लिया गया। लेकिन, संविधान अपने भाव के अनुसार चला नहीं। राम, कृष्ण, शिव भारत को जोड़ते हैं। मोहन भागवत ने आगे कहा कि राम मंदिर आंदोलन नहीं बल्कि यज्ञ था। आज अयोध्या में राम मंदिर बन गया यही हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
चंपक राय ने किया आंदोलन से जुड़ी घटनाओं का जिक्र
चंपत राय ने जब कार्यक्रम को संबोधित किया तो हॉल जय श्री राम के नारे से गूंज उठा। वहीं मंच से चंपत राय ने राम मंदिर जन्म आंदोलन से जुड़ी हुई कई घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जब सम्मान का यह विषय मेरे पास आया तब मैं यही कहा था कि मेरा नाम लेना उचित नहीं होगा। यह सम्मान अज्ञात कार सेवकों का है। अयोध्या में भी तीन मंदिरों के विध्वंस की गाथा अंग्रेजों के समय की है। चंपत राय ने जानकारी देते हुए बताया कि 6 मार्च 1983 को पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया गया।
इसमें कांग्रेस के एक विधायक दाऊ दयाल जी कई बार बोल चुके थे कि अयोध्या, काशी, मथुरा को मुक्त करने का समय आ गया है। इसके बाद दाऊ दयाल जी ने इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिखकर इस्तीफा दे दिया। अप्रैल 1984 में संतों को बुलाया गया। दिल्ली में वहां पर संतो के बीच भी इसी बात को रखा गया। उसके बाद धीरे-धीरे लड़ाई आगे बढ़ती गई। धीरे-धीरे पता चला रिकॉर्ड में 75 लड़ाइयों का वर्णन है फिर 1934 में हिंदुओं ने तीन ढांचों को तोड़कर तहस-नहस कर दिया। लेकिन, इसका हर्जाना अंग्रेजों ने हिंदुओं से ले लिया। 1992 में उन नौजवानों से मिलने गया, जिन्होंने 1949 में मूर्ति रख दी थी।
मूर्ति हटाने के लिए लिखी गई चिट्ठी
1950 में एक और घटना हुई जब नेहरू ने मूर्ति हटाने के लिए चिट्ठी लिख दी। के. के. नायर जैसे न्यायमूर्ति ने इसके लिए मना कर दिया। इसके बाद नाबालिग की ओर से रामलाल के नाम से मुकदमा दायर किया गया। नाबालिग के अधिकारों के चलते मुकदमा स्वीकृत हो गया। इसके बाद धीरे-धीरे लड़ाई आगे बड़ी और आज फैसला सभी के सामने है। इस लड़ाई में जिसने भी साथ दिया वह सब इस पुरस्कार के लिए ज्ञात-अज्ञात रूप से साक्षी बने हुए हैं।
यह राम मंदिर आज हिंदुस्तान के मूंछ का मंदिर है और सभी को वहां दर्शन करने जाना चाहिए। वहीं, कोर्ट में मुकदमे के समय वकील के द्वारा 170 घंटे खड़े होकर इस केस को लड़ा गया। इस दौरान वकील के बारे में भी चंपत राय ने कई खुलासे किए। बता दें कि इंदौर में हर साल अहिल्याबाई पुरस्कार सम्मान से किसी बड़े शख्सियत को पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के हाथों पुरस्कृत किया जाता है। इस साल यह पुरस्कार चंपत राय को देकर सम्मानित किया गया।
(इंदौर से संदीप मिश्रा की रिपोर्ट)
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