मध्य प्रदेश के इस शहर में आज भी तोप से खोला जाता है रोजा! सैकड़ों साल से चली आ रही अनूठी परंपरा
Ramadan Special रायसेन: मध्य प्रदेश के रायसेन के ऐतिहासिक किले से आज भी रोजेदारों को तोप की गूंज से मिलती है सेहरी और इफ्तार की सूचना। रायसेन किले पर लगभग 200 साल से रोजेदारों के लिए अनूठी परंपरा निभाई जा रही है। नवाबी काल में शुरू हुई ये परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है। रमजान माह के लिए तोप चलाने की अनुमति जिला प्रशासन द्वारा दी जाती है।
MP के इस शहर में तोप से खोला जाता है रोजा!
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 47 किलोमीटर दूर रायसेन जिला बसा हुआ है। यहां रमजान माह में सुबह लगभग बजे और शाम के वक्त अगर कोई बाहरी शख्स पहुंच जाए तो वह यहां गूंजने वाली तोप की आवाज से न केवल चौंक जाएगा।बल्कि किसी आशंका का अनुमान भी लगा बैठेगा। लेकिन, हकीकत इससे कहीं अलग है। दरअसल, यहां रमजान माह के पवित्र दिनों में इफ्तारी और सेहरी की सूचना देने के लिए किले की पहाड़ी से 2 वक्त तोप चलाई जाती है। जिसकी आवाज सुनकर शहर सहित आसपास के लगभग 12 गांवों के रोजेदार रोजा खोलते हैं और इस तोप की आवाज़ भी लगभग 15 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है। यह परंपरा नवाबी काल से चली आ रही है जब सेहरी और इफ्तारी की सूचना देने के लिए कोई साधन नहीं हुआ करते थे।
रमजान में तोप दागने में 70 हजार रुपए खर्च
करीब 200 साल पहले रायसेन किले पर राजा और नवाबों का शासन हुआ करता था। उन दिनों से ही लोगों को सूचित करने के लिए तोप के गोले दागे जाने की शुरुआत हुई थी। इसके बाद साल 1936 में भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह ने बड़ी तोप की जगह एक छोटी तोप चलाने के लिए दी। इसके पीछे वजह यह थी कि बड़ी तोप की गूंज से किले को नुकसान पहुंच रहा था। रायसेन के किले से इस तोप को चलाने की प्रक्रिया भी कम रोचक नहीं है। दरअसल, इसके लिए जिला प्रशासन बाकायदा एक माह के लिए लाइसेंस जारी करता है। तोप चलाने के लिए आधे घंटे की तैयारी करनी पड़ती है। इसके बाद तोप दागी जाती है। जब रमजान माह समाप्त हो जाता है, तब तोप की साफ-सफाई कर सरकारी गोदाम में जमा कर दी जाती है। पूरे महीने तोप दागने में करीब 70 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं।
सेहरी और इफ्तारी के लिए चलाते हैं तोप
रमजान का पवित्र माह शुरू चल रहा है। अल्लाह की इबादत में रोजे रखे जा रहे हैं। इस पूरे माह रोजेदारों के लिए सेहरी और इफ्तार का समय सबसे अहम होता है।आजकल जहां आधुनिक संसाधनों से सेहरी और इफ्तारी की सूचना देने का चलन है। वहीं, मध्य प्रदेश का रायसेन जिला ऐसा है जहां आज भी परंपरागत और अनूठे तरीके से सेहरी और इफ्तारी की सूचना पहुंचाई जाती है। दरअसल, रायसेन के किले पर सुबह सेहरी से पहले और शाम को इफ्तारी के वक्त तोप दागने की परंपरा है, जो करीब 200 साल से चली आ रही है। इतना ही नहीं हिंदू परिवार के सदस्य भी ढोल पीटकर रोजेदारों को जगाते हैं।
मस्जिद से बल्ब जलाकर मिलता है सिग्नल
तोप चलाने से पहले दोनों टाइम टांके वाली मरकाज वाली मस्जिद से बल्ब जलाकर सिग्नल मिलता है। सिग्नल के रूप में मस्जिद की मीनार पर लाल या हरा रंग का बल्ब जलाया जाता है। उसके बाद किले की पहाड़ी से तोप चलाई जाती है। ऐसा बताया जाता है राजस्थान में तोप चलाने की परंपरा है। उसके बाद देश में मध्य प्रदेश का रायसेन ऐसा दूसरा शहर है, जहां पर तोप चलाकर रमजान माह में सेहरी और इफ्तारी की सूचना दी जाती है।
राजा और नवाबी शासनकाल से चली आ रही तोप चलने की परंपरा
तोप चलाने वाले शाखावत खान कहते हैं, "तोप चलने की परंपरा तो राजा और नवाबी शासनकाल से चली आ रही है। पहले बड़ी तोप चलाई जाती थी।जिसकी गूंज कई किलोमीटर दूर तक जाती थी, लेकिन उसकी आवाज काफी तेज गूंजती थी और उससे किले को क्षति होने की आशंका था। ऐसे में 1936 से छोटी तोप चलाई जाती है। जिसे भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह ने दी थी, तब से अब तक 87 साल से यही छोटी तोप चलाई जाती रही है।"
27 सालों से तोप चला रहे हैं शखावत खान
शखावत खान कहते हैं, "हमारे पुरखे सदियों से तोप चलाने का काम करते आ रहे हैं। पहले हमारे पर दादा, फिर दादा, फिर हमारे पिताजी, उसके बाद हमारे चाचा और मैं और मेरा छोटा भाई साहिद पिछले 27 सालों से तोप चलाकर इफ्तारी और सेहरी की सूचना दे रहे हैं। फिर, हमारे बाद हमारे बच्चे तोप चलाने का काम करेंगे।
तोप की आवाज सुनने दूर-दूर से आते हैं लोग
वहीं, भोपाल से तोप चलने का साक्षी बनने आए शफीक खान कहते हैं ये बहुत अच्छा पल होता है, जब हम तोप चलने के साक्षी बनते हैं। इसके अलावा रायसेन के सैयद ओसाफ कहते हैं कि हमारे रायसेन के लिए गौरव की बात है कि रायसेन में तोप चलाकर सेहरी और इफ्तार की जानकारी दी जाती है। मोहम्मद सहीद कहते हैं कि तोप चलाकर सेहरी और इफ्तारी कराई जाती है।
(रायसेन से अजय गोहिल की रिपोर्ट)
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