Sagar Bihari Mandir: सागर में 300 वर्ष प्राचीन बिहारी जी मंदिर की अद्भुत परंपरा, होली पर पुरुष वर्ग तो रंगपंचमी पर महिलाओं संग होली खेलते हैं भगवान
Sagar Bihari Mandir: सागर। बुंदेलखंड की अद्भुत लोक परंपरा सागर एमपी बुंदेलखंड अंचल में हर तरह के त्यौहार और जीवन से जुडे़ प्रमुख प्रसंगों को लेकर तरह-तरह के लोकाचार और परंपराएं देखने मिलती हैं। मध्य प्रदेश के सागर शहर को मिनी वृंदावन कहा जाता है। यहां भगवान के अनेकानेक मंदिर हैं। इन मंदिरों में परंपरागत रूप से होली का त्यौहार मनाया जाता है। शहर के 300 वर्ष से ज्यादा प्राचीन बिहारी जी मंदिर में होली से जुड़ी एक 300 से साल से ज्यादा पुरानी परंपरा है। जिसने बिहारी जी सरकार अपने भक्तों के साथ होली खेलने राजमंदिर से बाहर आते हैं और पूरा माहौल रंग गुलाल से सराबोर हो जाता है।
300 साल से चली आ रही परंपरा
सागर के सर्राफा बाजार में स्थित देव अटल बिहारी जी सरकार का मंदिर सागर शहर ही नहीं बल्कि आसपास के लोगों का आस्था का केंद्र है। यहां होली, दीपावली और सावन के महीने से जुड़ी कई तरह की परंपराओं का पालन होता है। सागर शहर के लोग आस्था और भक्ति के साथ मनाते हैं। देव बिहारी जी मंदिर का निर्माण निंबार्क परम्परा के संत श्री श्री 108 स्वामी दयालदास महाराज ने कराया था। हालांकि, इस मंदिर का कोई लिखित इतिहास नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों की जानकारी अनुसार मंदिर 300 साल से ज्यादा पुराना है।
लोगों में अपार श्रध्दा
मंदिर में विराजमान भगवान के प्रति सागर शहर वासियों में अपार आस्था है और यहां लोग बिहारी जी को सखी रूप में पूजते हैं। होली से जुड़ी परंपरा श्री देव बिहारी जी मंदिर में होली, दीपावली और सावन से जुड़ी अलग-अलग परंपराएं हैं जिनको मंदिर निर्माण के समय से ही स्थानीय लोग आस्था और श्रृद्धा के साथ मनाते आ रहे हैं। इसी तरह से होली से जुड़ी परंपरा मंदिर निर्माण के समय से चली आ रही है। यहां होली के दिन बिहारी जी सरकार अपने भक्तों के साथ होली खेलने राजमंदिर से बाहर निकलते हैं। यहां होली के दिन शाम को ये परंपरा निभायी जाती है। बिहारी जी के साथ होली खेलने के इच्छुक भक्तगण सुबह से ही मंदिर के बाहर इकट्ठा होने लगते हैं।
वृंदावन जैसा होता है नजारा
बिहारी जी के राजनिवास से बाहर निकलने का इंतजार करते हैं। जब बिहारी जी राजनिवास से बाहर निकलते हैं, तो सागर के सर्राफा बाजार का माहौल मथुरा-वृंदावन से कम नजर नहीं आता है। मंदिर के पुजारी अमित चांचोदिया बताते हैं कि होलिका दहन के दूसरे दिन धुरेड़ी के दिन राजमंदिर से बाहर अपने भक्तों के साथ होली खेलने आते हैं। इसमें लोग रंग, गुलाल खेलते हैं और फागें गाते हैं। शाम के समय बिहारी जी की होली शुरू होती है। ये देर रात होली चलती है। भक्तों की मंडली फागें गाती हैं देर रात आरती होती है और फिर प्रसाद वितरण होता है। काफी धूमधाम से होली होती है।
रंगपंचमी पर सिर्फ महिलाएं खेलती हैं होली
रंगपंचमी पर सिर्फ महिलाएं होली खेलती हैं। होली बिहारी जी रंगपंचमी के दिन राजमंदिर में ही सिर्फ महिलाओं के संग होली खेलते हैं। पुजारी अमित चांचोदिया बताते हैं कि बिहारी जी की भक्त महिलाओं ने इस बात पर एतराज किया था कि बिहारी जी के साथ उन्हें होली खेलने नहीं मिल पाती है। क्योकि, होली के दिन जब बिहारी जी शहर से बाहर निकलते हैं, तो पुरूष वर्ग ज्यादा होने के कारण महिलाओं को अवसर नहीं मिल पाता। तब से ये तय किया गया कि रंगपंचमी के दिन बिहारी जी राजमंदिर में ही सिर्फ महिलाओं के साथ होली खेलते हैं। तब पुरूषों को मंदिर में प्रवेश तो मिलता है, लेकिन उन्हें मर्यादा में रहना होता है।
(सागर से कृष्णकांत नगाइच की रिपोर्ट)
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