Sagar News : गुटखे से इस फसल के अस्तित्व पर बना खतरा, खत्म न हो जाए सालों पुरानी विरासत
Sagar News सागर: भारत में पान खाने की परंपरा कई सालों पुरानी है। यहां राजा-महाराजाओं से लेकर आम आदमी तक इसके शौकीन रहें हैं। लेकिन जब से बाजार में गुटखे का प्रचलन बढ़ा है। पान सिर्फ शादी-ब्याह और तीज-तहेवारों पर ही लोगों को खाते देखा जाता है। सागर जिले के बलेह गांव का देसी बंगला पान (Desi Bangla Paan) दूर-दूर तक प्रख्यात है। इस पान की खासियत यह है कि इसे खाने पर मुंह में छिलका नहीं बचता है। यह मुंह में ही पूरी तरह से घुल जाता है, इसलिए बुंदेलखंडी लोगों की यह पहली पसंद है।
क्यों कम हो रही है पान की खेती?
100 सालों से भी अधिक समय से (Sagar News) यहां पान की खेती होती आ रही हैं, लेकिन अब साल दर साल देसी बंगला पान (Desi Bangla Paan) की खेती के में कमी आने से इसके अस्तित्व पर संकट गहराता जा रहा है। एक समय बलेह में 200 परिवार पान की खेती करते थे, लेकिन अब महज 20 परिवार ही बचे हैं, जो इस खेती को कर रहे हैं। पान की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि बाजार में गुटखा आने से पान का मार्केट टूट गया है। जिसका सीधा असर पान की खेती पर पड़ा है। पान की खेती में मुनाफा अवश्य होता है, लेकिन मेहनत भी अधिक होती है। इसलिए धीरे-धीरे पान की खेती कम होती जा रही है।
बाप-दादाओं की विरासत आगे बढ़ा रहें हैं किसान
बलेह गांव के (Sagar News) ही एक किसान दयाशंकर चौरसिया बताते हैं कि हमारे बाप-दादा के समय से यहां पर पान की खेती होती चली आ रही है। हम लोग भी उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन अब बहुत से लोगों ने धंधा बदल लिया है। कुछ किसान तो गांव छोड़कर चले भी गए हैं, क्योंकि पान की खेती में मेहनत बहुत ज्यादा है। अगर मौसम थोड़ा-सा भी खराब हो तो नुकसान हो जाता है।
अगर हवा चले तो बरेजे उड़ जाते हैं और ज्यादा बारिश हो जाए तो पान को नुकसान होता है। पानी कम मिले तो भी पान को नुकसान होता है। एक एकड़ खेती करने के लिए कम से कम 5 लाख की लागत लगती है। अगर एक बार भी नुकसान हो जाए तो किसान टूट जाता है और अगर पैदावार हो तो एक एकड़ से 10 लाख तक की कमाई हो जाती हैं इसमें रोजाना की कमाई होती है।
फेरी लगाकर बेचना पड़ रहा है पान
बलेह गांव के (Sagar News) ही एक अन्य किसान महेश चौरसिया बताते हैं कि यहां कम से कम 100 साल से पान (Desi Bangla Paan) की खेती हो रही है। पूरे बुंदेलखंड में बलेह गांव का पान जाता है। पहले सागर, दमोह और जबलपुर की मंडियों में पान को ले जाते थे, लेकिन अब गुटखा आने की वजह से फेरी लगाकर इसे बेचना पड़ता है। इस खेती में मेहनत अधिक होती है। किसान को पान की खेती के लिए आवश्यक चीजें खुद के खर्चे से खरीदनी पड़ती हैं। उसे इसमें किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता। प्राकृतिक आपदा से नुकसान होने पर सरकारी मदद भी नहीं मिलती है।
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