Sparrow Day 2025: शहरों में कहां खो गई गौरैया की चहचहाहट, इनकी चूचूं करती आवाज में छिपा है मधुर संगीत
Sparrow Day 2025: उज्जैन। प्राचीनकाल से दो जीव मनुष्य के परम मित्र रहे हैं। पहला श्वान और दूसरी घरेलु गौरैया। सुबह-सुबह हर घर में दस्तक देता ये नन्हा परिंदा प्रायः हर घर में आज से लगभग 25 वर्ष पूर्व देखा जाता था। घर में लगे पंखे के कप में गौरैया अण्डे देती और ये एक पसंदीदा ब्रीडिंग बॉक्स होता था। घर के रोशनदान भी पसंदीदा आवास होते थे। बदलती दुनिया का प्रभाव इस नन्हे परिंदे को हम से दूर लेता चला गया और हम इनकी चहचहाहट को सुनने से वंचित से हो गए। जब इस नन्हे दोस्त की संख्या तेजी से घटने लगी तो पूरे देश मे गौरैया को बचाने की मुहिम चल पड़ी।
इनका रहा प्रमुख योगदान
इसमें सबसे प्रमुख योगदान रहा मोहम्मद दिलावर राकेश खत्री का। दिल्ली में जब पेड़ कटते रहे और कंक्रीट का जंगल खड़ा होने लगा तो इनकी संख्या घटती देख राकेश खत्री ने कृत्रिम घोंसले बनाकर पेड़ और घर की बालकनी में टांगना शुरू किए। ये नन्हें परिंदा शुरू में तो इन घोंसले मे नहीं आया। पर जब ये घोंसले बांस की खप्पचियों से बनाकर उस पर नारियल के बाल चढाए गए तो गौरैया ने इसे पसंद किया और वापस से गौरैया घरो की बालकनी में आने लगी। ये एक शुभ संकेत था। इस नन्हे इंसानी दोस्त को बचाने की।
गौरैया का आना पाजीटिविटी का संकेत
राकेश खत्री ने हजारों कृत्रिम घोंसले निशुल्क बांटकर लोगो से गौरैया को बचाने की गुहार लगाई और दिल्ली व आसपास के लोग घरों मे आर्टिफिशल नैस्ट लगाने लगे। कुछ वर्षों में गौरैया की संख्या बढती हुई दिखी और ये मनुष्य के आसपास फिर से दिखने लगीं। घर मे गौरैया का आना पॉजिटिव तरंगों का संचरण करता है। इस नन्हें पक्षी के करतब देखकर मन को सुकून मिलता है। अण्डे से जब बच्चे निकलकर चूचूं करते हैं और गौरैया उनका ध्यान रखती है। वात्सल्य भाव देख आनंद की अनुभूति होती है।
गौरैया बचाओ अभियान से जुडना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। ये छोटा मित्र हमारा बहुत पुराना मित्र है।
अन्नप्रेमी पक्षी है गौरैया
इसको आकर्षित करने के लिए घर के आसपास पेड पौधे लगाकर बर्डफोडर लगाएं और हैंगिग नेस्ट टांग दे तो ये जरूर आकर इनमे रहने लगते हैं। इनकी चहचहाहट से घर गुलजार रहता है। हाउस स्पैरो या गौरैया एक छोटा सा भूरे रंग का परिदा है, जो अन्न के दाने आहार के रूप मे ग्रहण करता है। इसका भोजन भी वही है जो मनुष्य का है अतः गौरैया व मनुष्य का सहसंबंध पुराने समय से रहा है। शहरीकरण व बदलते परिवेश ने इनकी संख्या तेजी से कम की है। आज पैक्ड आटे का प्रचलन हो गया। इन्हें न तो गेंहू व ज्वार के छोटे दाने मिल पा रहे हैं और न ही शहरों मे अनुकूलता मिल पा रही है। इसलिए गौरैया शहरों से दूर होती जा रही हैं।
नवीन भवनों की डिजाइन
आधुनिकता के चलते मानव ऐशोआराम वाली जिन्दगी जीने का शौकीन हो गया और एअरकंडीशन भवनों की बाढ़ सी आ गई। इससे नए भवनों से रोशनदान नदारद हो गए। फलस्वरूप गौरैया के घोंसले बनाने का पसंदीदा स्थान उसे खोजने पर भी नहीं मिला और इस तरह शहरो से दूर हो गईं। कृत्रिम घोसले टांगने से स्थिति सुधर रही है। गौरैया फिर से घरों में दिख रही हैं। पक्षी में हृदय गति इंसानो के मुकाबले बहुत तेज होती है। ये गति 230 से 240 होती है। इसलिए इनका रक्त प्रवाह तेज होता है, जिससे ये थोडा अधिक ताप भी सहन नहीं कर पाते। शरीर के तापमान को सामान्य बनाने के लिए इनको जल की आवश्यकता बारबार होती है। गर्मियों मे इनकी इस जरूरत को ध्यान में रखकर घर के आंगन व छत पर जल पात्र जरूर रखें ताकि इन्हें बचाया जा सके।
(उज्जैन से विश्वास शर्मा की रिपोर्ट)
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