Tansen Celebration Festival: नादब्रह्म की साधिकाओं के गायन-वादन से गूंजा मृगनयनी महल, श्रोता हुए मंत्रमुग्ध

Tansen Celebration Festival: तानसेन की याद में संगीत की नगरी ग्वालियर में बीते पांच दिनों से चल रहे स्वर—ताल का आज आखिरी दिन था।
tansen celebration festival  नादब्रह्म की साधिकाओं के गायन वादन से गूंजा मृगनयनी महल  श्रोता हुए मंत्रमुग्ध

Tansen Celebration Festival: ग्वालियर। गान मनीषी तानसेन की याद में संगीत की नगरी ग्वालियर में बीते पांच दिनों से चल रहे स्वर—ताल के सुरीले हार में आखिरी फूल के रूप में अनूठी संगीत सभा सजी। इस सभा में नादब्रह्म की महिला साधिकाओं ने कला पोषक महाराजा मानसिंह की प्रेयसी मृगनयनी के महल "गूजरी महल" को गायन-वादन से गुंजायमान कर दिया। यह सभा महिला कलाकारों पर केंद्रित रही। परंपरानुसार ईश्वर की आराधना के गान ध्रुपद का गायन हुआ। ध्रुपद केन्द्र, ग्वालियर के गुरु एवं शिष्यों ने यह प्रस्तुति दी। उन्होंने राग पूरिया धनाश्री में आलाप, जोड़, झाला से राग को विस्तार देते हुए परिसर में दिव्यता घोल दी।

घट तरंग से झंकृत हुईं किले की प्राचीरें

अगले क्रम में बारी थी एक ऐसे वाद्ययंत्र को सुनने की जो दक्षिण भारत का है और उत्तर भारत में कम ही सुनने को मिलता है। इसे घटम कहते हैं। इस वाद्य की प्रस्तुति देने बैंगलुरू से सुप्रसिद्ध घटम वादक सुकन्या रामगोपाल अपने साथी कलाकारों के साथ पधारीं। उन्होंने सबसे पहले स्वरचित रचना घट तरंग का वादन किया, जो राग कुंतला वराली में निबद्ध थी। संगीत प्रेमी रामगोपाल की घटम पर दौड़ती उंगलियों की कारीगरी देख बस देखते ही रह गए और उसमें से निकलने वाली ध्वनि को शांत होकर सुनते रहे। इसमें उन्होंने राग गोरख कल्याण में माधुर्य से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। अंतिम प्रस्तुति राग मध्यमावती की रही। जिसमें उन्होंने लय में भेद कर सभी को चकित कर दिया।

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राग चारुकेशी में झीनी-झीनी

घटम की खुमारी अभी चढ़ी ही थी कि कोलकाता की मृत्तिका मुखर्जी अपने ध्रुपद गायन के साथ मंच पर आईं और उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरूआत राग-जोग के साथ किया। इसमें उन्होंने चौताल की बंदिश सुर को प्रमाण.... से अपने मधुर कंठ, साधना और गुरु की परम्परा का परिचय दिया। इसके बाद राग चारुकेशी में सूलताल की बंदिश झीनी, झीनी.... से प्रस्तुति को विराम दिया।

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सरोद जुगलबंदी ने घोला मधुरस

अंतिम संगीत सभा की अंतिम प्रस्तुति कोलकाता की त्रोयली एवं मोइशली दत्ता की सरोद जुगलबंदी की रही। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत मधुर राग रागेश्री से की। इस राग में उन्होंने विलंबित तीन ताल और द्रुत तीन ताल में अपना माधुर्य भरा वादन प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का समापन राग भैरवी के साथ किया। उनके साथ तबले पर निशांत शर्मा ने संगत की।

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मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग के लिए जिला प्रशासन ग्वालियर, नगर निगम ग्वालियर, पर्यटन विभाग के सहयोग से उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा यह आयोजन किया गया। यह 100वां उत्सव संगीत प्रेमियों के लिए अनंत स्मृतियां छोड़कर गया है। एक ऐतिहासिक और भव्य समारोह, जिसकी परिकल्पना मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा की गई। संगीत, कला और शिल्पकला जैसे अनूठे अनुभव इस समारोह के माध्यम से मिले।

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