Teacher Initiative for Education: बच्चे नहीं जाते थे स्कूल तो टीचर ने हर घर के सामने बजाया ढोल, बंद होते सिस्टम में फूंक दी जान

Teacher Initiative for Education: नर्मदापुरम। हम कई बार ऐसे किस्से सुनते हैं कि मन खुशी से झूम जाता है। हमारे बीच में ही ऐसे कई लोग मौजूद हैं, जिन्होंने पूरे समाज के लिए मिशाल पेश की है। ऐसा ही एक...
teacher initiative for education  बच्चे नहीं जाते थे स्कूल तो टीचर ने हर घर के सामने बजाया ढोल  बंद होते सिस्टम में फूंक दी जान

Teacher Initiative for Education: नर्मदापुरम। हम कई बार ऐसे किस्से सुनते हैं कि मन खुशी से झूम जाता है। हमारे बीच में ही ऐसे कई लोग मौजूद हैं, जिन्होंने पूरे समाज के लिए मिशाल पेश की है। ऐसा ही एक मामला नर्मदापुरम के ग्राम लही से सामने आया है। यहां पर एक सरकारी स्कूल के टीचर की पहल ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस टीचर ने यह साबित कर दिया कि अगर शिक्षक चाहे तो दिशाहीन को भी सही रास्ते पर ला सकता है। आचार्य चाणक्य ने भी कहा है कि शिक्षक साधारण नहीं होता। उसके हाथ में वर्तमान और भविष्य को दिशा देने की क्षमता होती है।

सुस्त पड़े सिस्टम में फूंक दी जान:

आपने अक्सर सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों की लापरवाही या गैरहाजरी के किस्से तो जरूर सुने होंगे। लेकिन, आज आपको एक ऐसे सरकारी स्कूल के शिक्षक की पहल को बताएंगे, जिसे सुनकर आप जरूर तारीफ करेंगे। दरअसल, नर्मदापुरम के सिवनी मालवा तहसील के के प्राइमरी स्कूल में बच्चे पढ़ाई के लिए नहीं आते थे। इस बात से यहां के टीचर्स (Teacher Initiative for Education) भी काफी परेशान रहने लगे।

अध्यपकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गई कि बच्चों को स्कूल में कैसे लेकर आएं? आखिर यहां पढ़ाने वाले शिक्षक संजू के माइंड में एक आइडिया आया। संजू ने बच्चों को स्कूल लाने के लिए घर-घर संपर्क किया। वे बच्चों के घर के सामने जाकर ढोल बजाकर उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रेरित करने लगे। कई दिनों तक इस तरह करने से स्टूडेंट्स के पेरेंट्स भी पढ़ाई को लेकर गंभीर हुए और उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल भेजना स्टार्ट कर दिया।

टीचर की तरकीब आई काम:

बता दें कि हालात ऐसे बन गए थे कि स्कूल बंद होने की कगार पर आ गया था। प्राइमरी स्कूल में बच्चे लगातार अनुपस्थित रहते थे। स्कूल खाली पड़े थे और कोई भी पढ़ने नहीं आता था। लेकिन, शिक्षक संजू बारंगे की मेहनत और तरकीब काम आई और स्कूल में बच्चों की उपस्थिति बढ़ने लगी। टीचर को जब पता चलता कि आज यह स्टूडेंट स्कूल नहीं आया है। वे उसके घर के सामने (Teacher initiative for Education) ढोल बजाकर उसे अपने साथ स्कूल लेकर आते। इस कार्य को देख गांव के लोग भी खुश हो गए। अन्य टीचर्स ने भी संजू का हौसला बढ़ाया और गैरहाजिर बच्चे स्कूल पहुंचने लगे। एक अध्यापक का इस तरह का कारनामा देख ग्रामीणों में भी काफी खुशी है। ग्रामीणों का कहना है कि बहुत कम ही टीचर्स ऐसे होते हैं, जो इस तरह का काम करते हैं।

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