Tadvi Bhil Community: यहां लगता है रिश्तों का मेला, आज भी कायम है यह सदियों पुरानी परंपरा!

Tadvi Bhil Community: आज भी तड़वी भील समाज अपने पुरखों की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा निभा रहे हैं। इसे मेले को रिश्तों का मेला भी कहा जाता है।
tadvi bhil community  यहां लगता है रिश्तों का मेला  आज भी कायम है यह सदियों पुरानी परंपरा

Tadvi Bhil Community: बुरहानपुर। जिले के शाहपुर थाना क्षेत्र के भावसा गांव में आज भी तड़वी भील समाज अपने पुरखों की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा निभा रहे हैं। दरअसल, इस गांव में तड़वी भील समाज प्रसिद्ध दरगाह हजरत चांदशा वली बाबा का संदल निकालते हैं। 1 जनवरी को उर्स मनाया जाता है। इस उर्स यानी मेले को रिश्तों का मेला भी कहा जाता है।

रिश्तों का मेला

इसे रिश्तों का मेला इसलिए कहते हैं क्योंकि इस मेले में आए परिजन युवक-युवती के लिए योग्य रिश्ते तलाशते हैं। युवक-युवती एक दूसरे को परख लेते हैं। इसके बाद दोनों परिवार राजी-खुशी से रिश्ता पक्का करते हैं। तड़वी भील समाज के लोग समाज के रीति-रिवाजों से विवाह संपन्न कराते हैं। इस उर्स में रिश्तेदारों के निमंत्रण पर पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र, गुजरात सहित मध्य प्रदेश के जिलों के तड़वी समाज के लोग आते हैं।

शादी के लिए चली आ रही पुरानी परंपरा

बता दें कि जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर भावसा गांव में आज भी सैकड़ों साल पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाता है। कई सालों से तड़वी भील समाज में यह परंपरा चली आ रही है। रहमत तड़वी और हुसैन तड़वी ने बताया कि उर्स यानी मेले के 15 दिन पहले तड़वी भील समाज के लोग अपने रिश्तेदारों को न्यौता भेजते हैं। इस न्यौते के बाद भावसा गांव के इस मेले में आए रिश्तेदार वैवाहिक रिश्ते तय करते हैं। तय की तिथि के दिन पूरे रीति-रिवाजों से विवाह कराया जाता हैं। दाम्पत्य जीवन में बंधन के बाद बड़ी संख्या में जोड़ा दरगाह पर मत्था टेकने आते हैं। समाज जनों के मुताबिक हजरत चांदशा वली बाबा की दुआओं से रिश्ते तय होते हैं।

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