Rani Durgavati: वीरांगना महारानी दुर्गावती का बलिदान दिवस, शौर्य, अदम्य साहस और पराक्रम का प्रतीक थी गोंड राज्य की महारानी

Rani Durgavati: भोपाल। शौर्य, अदम्य साहस और पराक्रम का प्रतीक गोंड राज्य की महारानी वीरांगना दुर्गावती का बलिदान दिवस है। महारानी दुर्गावती ने स्वाभीमान और देश की खातिर अकबरके जुल्मों के सामने झुकने से इंकार कर दिया था। उसका डटकर...
rani durgavati  वीरांगना महारानी दुर्गावती का बलिदान दिवस  शौर्य  अदम्य साहस और पराक्रम का प्रतीक थी गोंड राज्य की महारानी

Rani Durgavati: भोपाल। शौर्य, अदम्य साहस और पराक्रम का प्रतीक गोंड राज्य की महारानी वीरांगना दुर्गावती का बलिदान दिवस है। महारानी दुर्गावती ने स्वाभीमान और देश की खातिर अकबरके जुल्मों के सामने झुकने से इंकार कर दिया था। उसका डटकर मुकाबला किया था। लेकिन अन्त में विपरीत हालातों और विरोधियों से घिरने पर खुद कटार सीने में घोंप कर आजादी के लिए कुर्बान हो गई थी। मातृभूमि की रक्षा में प्राणों का बलिदान कर लहू से इतिहास (Rani Durgavati) के पन्नों पर वीरांगना दुर्गावती नायिका की तरह इतिहास में अमर हो गई थी।

महारानी दुर्गावती के बलिदान को 461 वर्ष

गोंडवाना गढ़ा-मण्डला की महारानी दुर्गावती ने 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर की आक्रान्ता सेनाओं से मातृभूमि की रक्षा करने लोहा लिया था। जबलपुर के निकट नर्रई नाला के पास वीरगति पाई। आज रानी के बलिदान को 461 वर्ष हो जाने के बाद भी लोग उनके शौर्य, अप्रतिम देशप्रेम, साहस, शासन, प्रजा वात्सल्यता और प्राणोत्सर्ग को याद करते हैं। महारानी दुर्गावती के प्रारंभिक जीवन के संबंध में अबुल फजल ने आइने अकबरी में लिखा कि राजकुमारी दुर्गावती महोबा के पास राव परगने के चंदेल वंशीय शासक शालिवाहन की पुत्री थी। अंग्रेज इतिहासकार कनिंघम के अनुसार दुर्गावती कालिंजर के राजा कीरतसिंह की पुत्री थी।

रानी दुर्गावती का विवाह दलपतिशाह के साथ 

उनका जन्म सन 1524 में हुआ था। रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का विवाह गढ़ा-मंडला के सम्राट संग्रामशाह के ज्येष्ठ पुत्र दलपतिशाह के साथ हुआ था। उन्होंने अनेक मंदिर, मठों, धार्मिक प्रतिष्ठानों सहित प्रजाहित में जलाशयों का निर्माण, धर्मशाला और संस्कृत पाठशालाओं की व्यवस्था की थी। महारानी नित्य नर्मदा स्नान करती थी। इसके लिए राज प्रसादों से नर्मदा तट तक कई गुप्त और अभेद्य रास्ते बनवाएं गए थे। उनके राज्य में संस्कृत पंडितों और कवियों को राज्य सम्मान प्राप्त था। रानी को विद्या, ज्ञानार्जन और साहित्य के प्रति अत्यधिक रुचि थी। दुर्गावती का राज्य छोटे-बड़े 52 गढ़ों से मिलकर बना था।

 मालवा के बाजबहादुर की सारी फौज का सफाया

जिसमें सिवनी, पन्ना, छिंदवाड़ा, भोपाल, तत्कालीन होशंगाबाद और नर्मदापुरम, बिलासपुर, डिंडौरी, मंडला, नरसिंहपुर, कटनी तथा नागपुर शामिल थे। मोटे तौर पर राज्य विस्तार उत्तर से दक्षिण 300 मील और पूर्व से पश्चिम 225 मील कुल 67 हजार 500 वर्ग मील के क्षेत्र में था। रानी ने कभी दूसरों के राज्यों पर न तो आक्रमण किया और न साम्राज्यवादी तरीकों की विस्तारवादी नीति अपनाई थी। गोंड़वाने पर मालवा के बाजबहादुर ने आक्रमण (Rani Durgavati) किया था। तब पहली बार संघर्ष में बाजबहादुर का फतेह खां मारा गया और दूसरी बार कटंगी की घाटी में बाजबहादुर की सारी फौज का सफाया हुआ।

रानी दुर्गावती को गढ़ा मण्डला की अपराजेय शासक

बाजबहादुर की पराजय ने रानी दुर्गावती को गढ़ा मण्डला का अपराजेय शासक बना दिया। गढ़ा-मण्डला की समृद्धि से प्रभावित आसफ खां के नेतृत्व में दस हजार घुड़सवार और तोपों, गोला-बारूद से लैस मुगल सैनिकों ने दमोह की ओर से गोंडवाना राज्य पर हमला कर दिया था। मंत्रियों ने रानी को पीछे हटने और संधि करने की सलाह दी थी। लेकिन स्वाभिमानी महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति से बात करना मुनासिब नहीं समझा था। जब मुगल सेना का तोपखाना जबलपुर के बारहा ग्राम के पास नर्रई नाला के निकट पहुंचा तो रानी ने कूटनीति का परिचय देते हुए मंत्रियों से कहा कि रात्रि में ही मुगल सेना पर आक्रमण करना होगा।

 कटार घोप कर 24 जून 1564 को प्रणा त्यागे

रानी के सलाहकारों ने रानी की रणनीति का समर्थन नहीं किया। जिसके बाद विषम परिस्थितियों में रानी स्वयं सैनिक वेश में अपने प्रिय हाथी सरमन पर सवार होकर दो हजार पैदल सैनिकों की टुकड़ी के साथ निकल पड़ी थी। जहां रानी और किशोर पुत्र असाधारण वीरता के साथ मुगल सेना पर टूट पड़े। इसी बीच रानी की कनपटी और आंख के पास तीर लगने से रानी घायल हो गई। उन्हें लगा कि मुगलों की सेना को पराजित करना संभव नहीं है। तो उन्होंने युद्ध स्थल में स्वयं की छाती पर कटार घोप कर 24 जून 1564 को प्रणा त्याग दिया थे। वीरांगना दुर्गावती की शासन व्यवस्था, रण-कौशल और शौर्य की अलग-अलग कालखंडों में इतिहासकारों ने समीक्षा की है।

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