Vidisha Kuber Devta: धनतेरस पर करें एशिया के सबसे बड़े धन के देवता कुबेर के दर्शन, 12 फीट ऊंची प्रतिमा के दर्शन से मिलता है शुभ फल!
Vidisha Kuber Devta विदिशा: देश भर में धन के देवता भगवान कुबेर की 4 प्रतिमाएं हैं और ये प्रतिमाएं मध्य प्रदेश के विदिशा, उत्तर प्रदेश के मथुरा, बिहार की राजधानी पटना और राजस्थान के भरतपुर में विराजमान है। कहते हैं इनमें विदिशा जिला पुरातत्व संग्रहालय (Vidisha Archaeological Museum) में रखी प्रतिमा एशिया में भगवान कुबेर की सबसे ऊंची प्रतिमा है।
धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा का विशेष महत्व
धनतेरस के दिन दूर-दूर से श्रद्धालु विदिशा में भगवान कुबेर की पूजा-अर्चना करने आते हैं। आज धनतेरस के शुभ अवसर पर विधि-विधान से भगवान कुबेर की प्रतिमा (Asia Biggest Kuber Devta Idol) की पूजा-आराधना की गई। दरअसल, धनतेरस के दिन धन की देवी माता लक्ष्मी की पूजा विधान है। इसी दिन धन के देवता भगवान कुबेर की पूजा का भी विशेष विधान है। यही वजह है कि धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा-अर्चना की जाती है।
विदिशा में भगवान कुबेर की सबसे ऊंची प्रतिमा
विदिशा जिला संग्रहालय में 12 फीट ऊंची भगवान कुबेर की प्रतिमा स्थापित है। धनतेरस के मौके पर आज (मंगलवार, 29 अक्टूबर को) इस प्रतिमा की विशेष पूजा-अर्चना की गई। पूजा-अर्चना में भारी संख्या में लोग शामिल हुए। पूजा में शामिल सुशील शर्मा ने कहा, "देशभर में मात्र चार स्थानों पर कुबेर भगवान की बड़े आकार की प्रतिमा है। इसमें राजस्थान के भरतपुर, उत्तर प्रदेश के मथुरा और बिहार के पटना में भगवान कुबेर की प्रतिमा स्थापित है। विदिशा पुरातत्व संग्रहालय में स्थापित प्रतिमा एशिया की सबसे बड़ी प्रतिमा है। यह प्रतिमा वर्ष 1955 में बेस नदी में मिली थी। इसी स्थान पर यशी जो कुबेर की पत्नी मानी गई हैं उनकी भी 6 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है।"
2200 साल पुरानी कुबेर देवता की 12 फीट ऊंची प्रतिमा
बता दें कि, विदिशा में संग्रहालय के मुख्य प्रवेश द्वार पर कुबेर की 12 फीट से ऊंची प्रतिमा (Vidisha Kuber Devta) रखी गई है। कहा जाता है कि यह प्रतिमा करीब 2200 वर्ष पुरानी है। इसके साथ ही दूसरे कक्ष में कुबेर की पत्नी यक्षिणी की भी करीब 7 फीट ऊंची समकालीन प्रतिमा रखी गई है। इतिहासकार गोविंद देवलिया के अनुसार, "दोनों ही प्रतिमाएं विदिशा की बैस नदी से प्राप्त हुई थी। यहां कुबेर और उनकी पत्नी साथ में हैं।
प्रतिमा का है विशेष महत्व!
यह प्रतिमा गुप्त काल के बाद की प्रतीत होती है। इसके अलावा तीसरी प्रतिमा संग्रहालय के खुले क्षेत्र में रखी गई है जो राजा के रूप में विराजमान हैं। यह प्रतिमा 6ठी और 7वीं शताब्दी की बनी होगी। इस प्रतिमा को 1955 में नदी से लाया गया। उस समय यह संग्रहालय नहीं बना था। वर्ष, 1964 में संग्रहालय बना और 1965 में इसका उद्घाटन हुआ। इसके बाद प्रतिमा को संग्रहालय में रखा गया।
बैस नदी में उल्टी पड़ी थी प्रतिमा, लोग नहाते एवं धोने के लिए करते थे प्रतिमा का उपयोग
इतिहासकार गोविंद देवलिया के अनुसार, दूसरी सदी ईसा पूर्व की होने के बावजूद इसकी स्थापत्य कला बहुत ही अद्भुत है। प्रतिमा में कुबेर भगवान अपने एक हाथ में धन की गठरी लिए खड़े हैं। यह प्रतिमा बैस नदी के दाना घाट से मिली थी। भगवान कुबेर की प्रतिमा बैस नदी में उल्टी पड़ी थी। लोग इसको पत्थर समझ कर इस पर कपड़े धोया करते थे। बाद में एक स्थानीय चित्रकार की इस प्रतिमा पर नजर पड़ी, तब उन्होंने प्रशासन को इस बारे में बताया। तब भगवान कुबेर की प्रतिमा के बारे में पता चला।"
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