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Electoral Bonds: राजनीतिक दलों और कॉर्पोरेट के बीच लेन-देन की SIT जांच वाली याचिका पर 22 जुलाई को होगी सुनवाई

Electoral Bonds: देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सोमवार को राजनीतिक दल और कॉर्पोरेट के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) के जरिए कथित चंदे के मामले की सुनवाई करेगा। इस मामले में कोर्ट के समक्ष एसआईटी (SIT) से...
01:26 PM Jul 19, 2024 IST | MP First

Electoral Bonds: देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सोमवार को राजनीतिक दल और कॉर्पोरेट के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) के जरिए कथित चंदे के मामले की सुनवाई करेगा। इस मामले में कोर्ट के समक्ष एसआईटी (SIT) से जांच कराने की मांग रखी गई है इस पर भी निर्णय लिया जाएगा। आइए इस खबर के बारे में और अधिक जानते हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ इस अहम मामले की सुनवाई करेगी। कोर्ट सूत्रों के अनुसार, इस मामले की जल्द सुनवाई इसलिए होगी क्योंकि वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मामले की जल्द सुनवाई का अनुरोध किया था। इस मामले को लेकर गैर सरकारी संगठनों कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की ओर से याचिका दायर की गई है। याचिका में अधिकारियों को विभिन्न राजनीतिक दलों को शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों के वित्तपोषण के स्रोत की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

राजनीतिक दलों से दान की राशि वसूलने की मांग:

याचिका में अधिकारियों को निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वे राजनीतिक दलों से कंपनियों द्वारा इन दलों को दिए गए दान की राशि वसूल करें, क्योंकि यह एक तरह से भ्रष्टाचार की आय मानी जाएगी। इसमें आरोप लगाया गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में करोड़ों रुपये का घोटाला शामिल है, जिसका खुलासा शीर्ष अदालत की निगरानी में स्वतंत्र जांच से ही हो सकता है। एसआइटी जांच की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में जांच की मांग करते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा, "इस मामले की जांच से पूरी साजिश का खुलासा होगा। इस साजिश में कई कंपनियों के अधिकारी, सरकार के अधिकारी और राजनीतिक दलों के पदाधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा इसमें ईडी/आईटी और सीबीआई जैसी एजेंसियों के संबंधित अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं।"

राजनीतिक दल, कॉर्पोरेट के अलावा सरकारी एजेंसियां भी निशाने पर:

याचिका में आरोप लगाया गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द करने के बाद जनता के सामने जो डेटा प्रस्तुत किया गया था उसमें अहम खुलासे हुए थे। खुलासों से पता चलता है कि बॉन्ड का बड़ा हिस्सा कॉरपोरेट द्वारा राजनीतिक दलों को सरकारी अनुबंध या लाइसेंस हासिल करने या सीबीआई, आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय की जांच से सुरक्षा हासिल करने या अनुकूल नीतिगत बदलावों के विचार के रूप में दिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि कई फार्मा कंपनियां, जो घटिया दवाओं के निर्माण के लिए विनियामक जांच के दायरे में थीं, उन्होंने ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे थे। स्पष्ट रूप से इस तरह की व्यवस्था भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 का स्पष्ट उल्लंघन है।

कोर्ट ने फरवरी में रद्द की थी योजना:

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था। इलेक्टोरल बॉन्ड के तहत राजनीतिक दलों को गुमनाम तरीके से धन देने की अनुमति थी। उस समय कोर्ट ने एसबीआई को तुरंत प्रभाव से चुनावी बॉन्ड जारी करने से रोक दिया था और रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए कहा था। कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के साथ-साथ आयकर अधिनियम और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया था, जिसके तहत दान को गुमनाम बनाया गया था।

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